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जन-जन का चेहरा एक कविता || Bihar Board Class 12th Hindi

जन-जन का चेहरा एक

गजानन माधव मुक्तिबोध

गजानन माधव मुक्तिबोध का परिचय

1.      जीवनकाल : 13 नवंबर 1917-11 सितंबर 1964

2.      जन्मस्थान : श्योपुर, ग्वालियर, मध्यप्रदेश

3.      माता-पिता : पार्वती बाई और माधवराज मुक्तिबोध



4.      शिक्षा : उज्जैन, विदिशा, अमझरा, सरदारपुर में प्रारम्भिक शिक्षा

5.      1930 में उज्‍जैन के माधव कॉलेज से ग्वालियर बोर्ड की मिडिल परीक्षा में असफल 1931 में सफलता प्राप्‍त, 1935 में माधव कॉलेज से इंटरमीडीएट। 1937 में बी.ए में असफल, 1938 में सफलता, 1953 में नागपुर में हिन्दी से एम.ए

6.      अभिरुचि : अध्ययन-अध्यापन, लेखन, पत्रकारिता, राजनीति

7.      कृतियाँ : चाँद का मुँह टेढ़ा है, भूरी-भूरी खाक धूल (कविता संग्रह), काठ का सपना, विपात्र, सतह से उठता आदमी, नई कविता का आत्मसंघर्ष, मुक्तिबोध रचनावली, (6 खंडों में)

जन-जन का चेहरा एक कविता

चाहे जिस देश प्रांत पुर का हो
जन-जन का चेहरा एक !

एशिया की, यूरोप की, अमरीका की
गलियों की धूप एक ।
कष्ट-दुख संताप की
,
चेहरों पर पड़ी हुई झुर्रियों का रूप एक !
जोश में यों ताकत से बंधी हुई
मुट्ठियों का एक लक्ष्य !
पृथ्वी के गोल चारों ओर के धरातल पर
है जनता का दल एक
, एक पक्ष ।
जलता हुआ लाल कि भयानक सितारा एक
,
उद्दीपित उसका विकराल सा इशारा एक ।
गंगा में
, इरावती में, मिनाम में
अपार अकुलाती हुई
,
नील नदी, आमेजन, मिसौरी में वेदना से गाती हुई,
बहती-बहाती हुई जिंदगी की धारा एकः
प्यार का इशारा एक
, क्रोध का दुधारा एक ।
पृथ्वी का प्रसार
अपनी सेनाओं से किए हुए गिरफ्तार
,
गहरी काली छायाएँ पसारकर,
खड़े हुए शत्रु का काले से पहाड़ पर
काला-काला दुर्ग एक
,
जन शोषक शत्रु एक ।
आशामयी
'लाल-लाल किरणों से अंधकार
चीरता सा मित्र का स्वर्ग एक
;
जन-जन का मित्र एक ।
 विराट् प्रकाश एक
, क्रांति की ज्वाला एक,
धड़कते वक्षों में है सत्य का उजाला एक,
लाख-लाख पैरों की मोच में है वेदना का तार एक,
हिये में हिम्मत का सितारा एक ।
चाहे जिस देश
, प्रांत, पुर का हो
जन-जन का चेहरा एक ।

एशिया के, यूरोप के, अमरीका के
भिन्न-भिन्न वास स्थान
;
भौगोलिक, ऐतिहासिक बंधनों के बावजूद,
सभी ओर हिंदुस्तान, सभी ओर हिंदुस्तान ।
सभी ओर बहनें हैं
, सभी ओर भाई हैं।
सभी ओर कन्हैया ने गायें चराई हैं
जिंदगी की मस्ती की अकुलाती भोर एक
;
बंसी की धुन सभी ओर एक ।
दानव दुरात्मा एक
,
मानव की आत्मा एक ।
शोषक और खूनी और चोर एक ।
जन-जन के शीर्ष पर
,
शोषण का खड्ग अति घोर एक ।
दुनिया के हिस्सों में चारों ओर
जन-जन का युद्ध एक
,
मस्तक की महिमा
व अंतर की ऊष्मा
से उठती है ज्वाला अति क्रुद्ध एक ।
संग्राम का घोष एक
,
जीवन संतोष एक ।
 क्रांति का
, निर्माण का, विजय का सेहरा एक,
 चाहे जिस देश, प्रांत, पुर का हो
 जन-जन का चेहरा एक

जन-जन का चेहरा एक पाठ का सारांश

गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित कविता ‘जन-जन का चेहरा एक’ में विश्व की विभिन्न जातियों एवं संस्कृतियों के बीच एकरूपता को दर्शाया है| कवि के अनुसार प्रत्येक महादेश, प्रदेश तथ नगर के लोगों में एक सी प्रवृति पायी जाती है| कवि ने इस कविता में पीड़ित संघर्षशील जन का चित्र उतारा गया है , जो अपने मानवोचित अधिकारों के लिए कार्यरत हैं - यह संघर्ष विश्व के सभी क्षेत्रों में फूट रहा है जो न्याय , शांति , बन्धुत्व पाना चाहता है । इस प्रकार यह संघर्षशील जनता एक ही है , एक सूत्र से पिरोयी गयी है । जन एक ही धरातल पर खड़ा है , उसकी सोच भी एक ही है , उसकी पीड़ाएँ भी समान हैं । इसी कारण जन - जन का चेहरा एक है , वह जन फिर कहीं का हो , जन प्रकृति एक है , धूप , कष्ट , दु : ख संताप एक है , चेहरे पर पड़ी झुर्रियों का रूप भी एक है और संघर्षशील मुट्ठियों का लक्ष्य भी एक ही है । यही नहीं यह एकता , एकरूपता बड़ी विलक्षण है । हर स्थान पर एक ही है- जनता का दल , उसका पक्ष भी एक ही है । यह लाल सितारा जो तुम देखते हो सर्वत्र एक ही है । समस्त नदियों की धारा भी समान ही है । शत्रु पक्ष एक , दुर्ग एक , सेनाएँ एक जन शोषक शत्रु भी एक ही है , सूर्य एक जो लाल - लाल किरणों से अन्धकार चीर देता है । विभिन्न प्रतीकों के माध्यम से जन - जन के चेहरे की एकता स्थापित की गयी है । सत्य का उजाला एक , सबकी वेदनाएँ समान , हिम्मत एक समान । इसके साथ भारत का अपना अस्तित्व अलग है मात्र कुछ मामलों में । यहाँ सभी ओर भाई हैं सभी ओर जन - जन का चेहरा एक बहनें हैं , सर्वत्र कन्हैया ने गायें चरायी हैं । उसकी बंसी की धुन सर्वत्र एक ही है , दानव दुरात्मा भी सर्वत्र एक ही है , फिर भी मानवात्मा एक ही है । यहाँ शोषक खूनी चोर एक से ही हैं । कवि ने साफ किया है , भौगोलिक सीमाएँ भी मानव की एकता को नहीं तोड़ पाती हैं । गम भी एक , खुशियाँ भी एक चाहे विश्व का कोई देश हो । इस प्रकार देश की सीमाएँ बदलाव नहीं ला सकती । सर्वत्र जन - जन का चेहरा एक ही है|

 

जन-जन का चेहरा एक Objective Question

1.    मुक्तिबोध का जन्म कब हुआ था?
a) रामगढ़
b) भोपाल
c
) श्योपुर
d) वाराणसी

2.    मुक्तिबोध ने एम.ए. किस विषय से किया था?
a) अंग्रेजी
b) इतिहास
c
) हिन्दी
d) भूगोल

3.    निराला की तरह मुक्तिबोध कैसे कवि हैं?
a)क्रांतिकारी
b)सम्मान
c)
पलायनवादी
d)इनमें से कोई नहीं

4.    भारत : इतिहास और संस्कृति किस विषय से संबंधित है?
a)इतिहास
b)समाजशास्त्र
c)
ललित कला
d)पुरातत्व

5.    इनमें से मुक्तिबोध की कौन सी रचना है?
a)हार जीत
b)जन जन का चेहरा एक
c)
अधिनायक
d)पद

6.    गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म कब हुआ था?
a)1917
b)1928
c)
1930
d)1927

7.    ज्वाला कहां से उठती है?
a)गैस से
b)चूल्हा से
c)
लकड़ी से
d)जनता से

8.    मुक्तिबोध ने सितारा किसे कहा है?
a)राजा को
b)जनता को
c)
चिड़िया को
d)इनमें से कोई नहीं

9.    मुक्तिबोध ने किस पत्र का सम्पादन किया था?
a) नया खून
b) नया सबेरा
c
) नया रंग
d) नया जमाना

10.  विराट प्रकाश के साथ किसकी ज्वाला एक है?
a) क्रान्ति की
b) संघर्ष की
c
) हुंकार की
d) शोषण की

 

 

जन-जन का चेहरा एक Question Answer

 

1.      'जन-जन का चेहरा एक' , से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर- जन जन का चेहरा एक कविता में कवि ने कहा है कि एशिया, यूरोप, अमेरिका अथवा कोई भी अन्य महादेव या प्रदेश में निवास करने वाले समस्त प्राणियों के शोषण तथा उत्पीड़न के प्रतिकार का स्वरूप एक जैसा है| उसमें एक अदृश्य एवं अप्रत्यक्ष एकता है| उनकी भाषा, संस्कृति एवं जीवन शैली भिन्न हो सकती है लेकिन उन सभी के चेहरे में कोई अंतर नहीं दिखता अर्थात उनके चेहरे पर हर्ष एवं विषाद, आशा तथा निराशा की प्रतिक्रिया एक जैसी होती है|

2.      बँधी हुई मुट्ठियों का क्या लक्ष्य है?
उत्तर - मुट्ठी बँधकर एक शक्ति बन जाती है पाँचों अंगुलियाँ एक साथ बँधकर एक शक्ति बन जाती हैं यह संगठन का प्रतीक बन जाती हैं और संगठन में विलक्षण शक्ति होती है । किसी भी परिस्थिति में किसी भी संघर्ष से संगठन मार्ग निकालकर विपरीत हालातों को भी अनुकूल बना लेता है । यह संगठित शक्ति इतनी विलक्षण होती है कि जार , नीरो , नन्द जैसे आततायी भी मिट्टी में मिलाये जा सकते हैं । कितना ही बड़ा शत्रु क्यों न हो , जनशक्ति के सम्मुख बौना हो जाता है और बन्द मुट्ठी जनता की वह शक्ति है , जिसमें संकल्प समाया है , दृढ़ता समायी है। प्रखर तेज चमक रहा है यह सब कुछ भस्म करने की शक्ति रखता है।

3.      कवि ने सितारे को भयानक क्यों कहा है? सितारे का इशारा किस ओर है?
उत्तर- यहाँ ‘सितारा’ जनता का प्रतीक है। जनता ही वह शक्ति है जो किसी देश का निर्माण करती है । जब शोषक , पीड़क , जनविरोधी वर्ग सितारे को छेड़ता है तो जनता रूपी सितारा निराला रूप धारण कर लेता है । वह गा उठता है| यह सितारा एक ही इशारा करता है , हट जाओ , गद्दी छोड़ दो , अब हम राज्य संभालेंगे क्योंकि तुमने सारे मूल्यों को मिट्टी में मिला दिया है , अब तुम्हें हटना ही होगा । यह जनता रूपी सितारा जब दमकता है अपराधी , अत्याचारी , शोषक वर्ग की आँखें चुंधियाँ जाती हैं और उसकी चमक निरन्तर बढ़ती ही जाती है अर्थात् एक बार जन आक्रोश उबल पड़ा , फट पड़ा , फिर वह ज्वालामुखी बन जाता है और वह अपने भविष्य को सही दिशा देकर ही शांत होता है ।

4.      नदियों की वेदना का क्या कारण है?
उत्तर- नदी एक धारा है , सतत् गतिशील , हर क्षण नवीन , परम पवित्र , शक्तिवाहिनी , जीवनदायिनी , यही है हमारी जनता - स्वच्छ पवित्र , कर्त्तव्य पथ पर आरूढ़ , सतत् गतिशील , निर्माण का संकल्प लिये । नदी के सामने अवरोध आता है वह उसकी गति को नहीं रोक पाता यही हालत जनता की भी है - कोई भी अवरोध उसके सामने ठहर नहीं पाता है पर आज जनता रूपी नदी अपवित्र होती जा रही है , गतिहीनता ओढ़ती जा रही है , उसकी स्वच्छता , निर्मलता , सहज - स्वाभाविकता धूमिल हो गयी है , उसकी जीवनी शक्ति कुंठित होती जा रही है - यह स्थिति बड़ी पीड़ादायक है । यही है नदियों की वेदना का कारण । वे यही चाहती हैं , जनता उनके समान ही सतत् गतिशील रहे , कर्मठ बनी रहे , स्वच्छ रहे , पवित्र रहे और कल्याणकारी भी रहे।

5.      अर्थ स्पष्ट करें-
आशामयी लाल - लाल किरणों से अंधकार
 चीरता सा मित्र का स्वर्ग एक
 जन-जन का मित्र एक
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रगतिशील चेतना के कवि मुक्तिबोध की कविता 'जन-जन का चेहरा एक' से लिया गया है । कवि के कहने का अर्थ यह है कि सूर्य को लाल किरणे अंधकार का नाश करते हुए मित्र के स्वर्ग के समान है| समस्त मानव समुदाय का वह मित्र है| विशेष अर्थ यह प्रतीत होता है कि विश्व के तमाम देशों में संघर्षरत जनता जो अपने अधिकारों के प्रति न्याय, शांति एवं बंधुत्व के लिए प्रयत्नशील है, उसे आशा है कि मनोहारी किरणे में स्वर्ग के आनंद के समान दृष्टिगोचर हो रही है|

6.      समूची दुनिया में जन - जन का युद्ध क्यों चल रहा है?
उत्तर- समाज के कई वर्ग हैं - एक पूँजीपति , दूसरा मजदूर जिसे सर्वहारा भी कहा जाता है । यह वर्ग मजदूर है । किसान है । यह श्रम करता है पर उसके श्रम पर ऐश उड़ाते हैं पूँजीपति यहाँ तक तो ठीक है । पर जब उनके श्रम का उचित मूल्य उसे नहीं प्राप्त होता , उनका शोषण किया जाता है , उत्पीड़न किया जाता है , उनकी रोटी छीनी जाती है इस स्थिति में उनका आक्रोश भड़क उठता है और संघर्ष खूनी भी हो उठता है । यहाँ अस्तित्व की लड़ाई है , अस्तित्व सर्वहारा का ही खतरे में होता है , शोषक का नहीं । आज का युग सर्वहारा के लिए पीड़ादायक है , महँगाई , बेरोजगारी , भ्रष्टाचार की शिकार आम जनता ही होती है , पूँजीपति पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है । इन स्थितियों से दुखी शोषण से परेशान सर्वहारा संघर्ष के पथ पर चल देता है और जन - जन का युद्ध प्रारम्भ हो जाता है ।

7.      प्यार का इशारा और क्रोध का दुधारा से क्या तात्पर्य है?
उत्तर- प्यार और क्रोध मानवीय वृत्तियाँ हैं । इनका रूप समान ही होता है , वह चाहे जिस जाति से हो , धर्म से हो या देश से हो प्रेम का इशारा सर्वत्र समान ही रहता है , वह मानवीय वृत्ति है और मानवीय वृत्तियाँ समान रहती हैं । क्रोध भी मनोवेग है उसका रूप भी समान ही रहता है । यह क्रोध व्यक्तिगत होता है तब उसका कोई भी रूप हो सकता है पर जब यह क्रोध शोषण , अन्याय , अत्याचार के विरुद्ध उमड़ता है तो उसका रूप भी एक ही होता है , सर्वत्र एक ही होता है , उसके उबाल में परिवर्तन नहीं होता , उसके कई रूप न होकर , एक ही रूप नजर आता है।

 

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