पाठ-3
सम्पूर्ण क्रांति
जयप्रकाश
नारायण✍
जयप्रकाश नारायण का परिचय
o
जन्म : 11 अक्टूबर 1902
o
निधन : 08 अक्टूबर 1979
o
जन्म स्थान : सिताब दियारा गाँव (उत्तर प्रदेश के बलिया और
बिहार के सरन जिले में फैला)
o
पुकार का नाम : बचपन में बाउल।
बड़े होने पर जेपी के नाम से प्रसिद्ध फिर लोकनायक के रूप में प्रसिद्ध।
o
माता-पिता : फूलरानी तथा हरसूदयाल
o
पत्नी : प्रभावती देवी ( प्रसिद्ध गांधीवादी ब्रजकिशोर प्रसाद की पुत्री)
o
शिक्षा : आरंभिक शिक्षा घर पर, आगे की शिक्षा के लिए पटना
कॉलेजिएट गए। 1922 में शिक्षा प्राप्ति के लिए अमेरिका गएा माँ की अस्वस्थता
के कारण पीएच.डी. नहीं कर पायेा
o
राजनीतिक जीवन : 1929 में काँग्रेस में शामिल, 1932 सविनय अवज्ञा आंदोलन के
दौरान जेल गए। जेल से निकलकर काँग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन 1939,
1943 में पुनः जेल गए 1952 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी
का गठन 1954 में विनोबा भावे के सर्वोदय आंदोलन से जुड़े 1974 में छात्र आंदोलन का
नेतृत्व किया। आपातकाल के दौरान जेल गए इनके मार्गदर्शन में जनता पार्टी का गठन
हआा
o
कृतियाँ : रिकंस्ट्रकशन ऑफ इंडियन
पोलिटी
o
सम्मान : 1965 में समाज सेवा के लिए मैग्सेसे
सम्मान, 1998 में भारत रत्न
सम्पूर्ण क्रांति पाठ का सारांश
"संपूर्ण क्रांति" जयप्रकाश नारायण द्वारा 5 जून 1974 को पटना के
गांधी मैदान में दिए गए ऐतिहासिक भाषण का अंश है। इस भाषण में उन्होंने युवाओं को
जागरूक करते हुए कहा कि भारत को स्वराज्य तो मिल गया है, लेकिन सुशासन के लिए अभी
लंबा संघर्ष बाकी है। उन्होंने नेहरूजी का उदाहरण देते हुए बताया कि देश की जनता
को सुशासन पाने के लिए मीलों सफर तय करना होगा।
जेपी ने अपने भाषण में
क्रांति के विचार प्रस्तुत किए और युवाओं से अपील की कि वे अन्याय, भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी के
खिलाफ आवाज उठाएँ। उन्होंने कहा कि सिर्फ नारे लगाने से गरीबी खत्म नहीं होगी, इसके लिए संपूर्ण क्रांति
जरूरी है, जैसी भगत सिंह चाहते थे। भाषण में उन्होंने रामधारी सिंह दिनकर की कविता का
उल्लेख किया और छात्रों से स्वयं नेतृत्व संभालने की अपील की।
अपने जीवन संघर्ष को साझा
करते हुए उन्होंने बताया कि अमेरिका में पढ़ाई के दौरान उन्हें वेटर का काम करना
पड़ा, बर्तन धोने पड़े और कारखानों में मजदूरी करनी पड़ी। इसके बावजूद उन्होंने
शिक्षा प्राप्त की।
जेपी ने सरकार द्वारा
आंदोलन को दबाने के लिए अपनाए गए दमनकारी तरीकों की निंदा की और इसे लोकतंत्र पर
हमला बताया। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनकी लड़ाई किसी व्यक्ति विशेष से नहीं, बल्कि गलत नीतियों और
भ्रष्टाचार के खिलाफ है। इस ऐतिहासिक भाषण में उन्होंने देश के युवाओं को संपूर्ण
क्रांति के लिए आगे आने का आह्वान किया।
SAMPOORN
KRANTI OJECTIVE QUESTION
1.
जयप्रकाश जी जब वेल्लोर अस्पताल जा
रहे थे तो वे कहाँ रुके थे ?
(a) मद्रास
(b)चेन्नई
(c)मास्टर नगर
(d)इनमे से कोई नहीं
2.
सम्पूर्ण क्रान्ति का नारा किसने दिया
था ?
(a)दिनकर जी
(b)जयप्रकाश नारायण
(c)मोरारजी देसाई
(d)इनमें से कोई नहीं
3.
संपूर्ण क्रांति है
(a) भाषण
(b)
निबंध
(c)
कहानी
(d)
इनमें से कोई नहीं
4.
1974 ई. में छात्र आंदोलन का नेतृत्व
किसने किया?
(a)लालू प्रसाद यादव
(b)मनमोहन सिंह
(c)जयप्रकश नारायण
(d)डॉ. राजेंद्र प्रसाद
5.
जयप्रकाश नारायण को भारत की जनता किस
नाम से याद करती है ?
(a)समाजनायक
(b)देशनायक
(c)लोकनायक
(d)जननायक
6.
'संपूर्ण क्रांति' का मुख्य
उद्देश्य क्या था?
(a)
केवल राजनीतिक सुधार
(b) सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सुधार
(c) केवल आर्थिक सुधार
(d) केवल शैक्षिक सुधार
7.
जयप्रकाश नारायण ने 'संपूर्ण क्रांति' का आह्वान कब
किया था?
(a)
1942
(b) 1952
(c) 1974
(d) 1980
8.
जयप्रकाश नारायण किस आंदोलन से जुड़े
थे?
(a)
सविनय अवज्ञा आंदोलन
(b) भारत छोड़ो आंदोलन
(c) संपूर्ण क्रांति
आंदोलन
(d) उपरोक्त सभी
9.
जयप्रकाश नारायण ने किसे 'संपूर्ण क्रांति' का आधार माना?
(a)
केवल राजनीतिक परिवर्तन
(b) सत्ता परिवर्तन
(c) समाज का संपूर्ण
परिवर्तन
(d) शिक्षा में सुधार
10.
जयप्रकाश नारायण किस राज्य से संबंधित
थे?
(a)
उत्तर प्रदेश
(b) बिहार
(c) महाराष्ट्र
(d) मध्य प्रदेश
11.
भ्रष्टाचार की जड़ क्या है ?
(a) दलविहीन सरकार
(b)
सरकार की गलत नीतियाँ
(c)
लोक कल्याणकारी कार्यक्रम
(d)
इनमें से कोई नहीं
12.
मद्रास में जयप्रकाश नारायण अपने किस
मित्रा के यहाँ ठहरे थे ?
(a)कृष्ण अय्यर
(b)राज गोपाल अय्यर
(c)संकर अय्यर
(d)ईश्वर आयर
13.
जयप्रकाश नारायण किस खर्चे को कम करना
चाहते थे?
(a)चुनाव
(b)दान
(c)नेता
(d)राजनितिक पार्टी
14.
जयप्रकाश नारायण पटना में किस कालेज
के छात्र थे ?
(a)साइंस कालेज
(b)बी.एन. कालेज पटना
(c)पटना कालेज
(d)कामर्स कालेज
15.
सम्पूर्ण क्रांति की जनसभा में किसने
कविता सुनाई ?
(a)रेणु
(b)दिनकर
(c)धरमवीर भारती
(d)गंगाशरण सिंह
16.
मद्रास में जायप्रकाश जी को किसने
कविता सुनाई ?
(a)रेणु
(b)दिनकर
(c)धरमवीर भारती
(d)गंगाशरण सिंह
17.
जयप्रकाश नारायण का जन्म कब हुआ था ?
(a)1979
(b)1929
(c)1902
(d)1942
18.
जयप्रकाश नारायण को भारत रत्न का
पुरस्कार कब प्राप्त हुआ था ?
(a) 1979
(b)
1998
(c)
1905
(d)
1947
19.
सम्पूर्ण क्रान्ति का ऐतिहासिक भाषण
जयप्रकाश जी ने किस स्थान पर दिया था ?
(a) गाँधी चौक, गया
(b)
रमना मैदान, आरा
(c)
गाँधी मैदान, पटना
(d) सदाक्त आश्रम
20.
छात्र संघर्ष समिति का गठन किसलिए हुआ
था?
(a) छात्रों के अनुशासन के लिए
(b)
छात्रों के सत्ता प्राप्ति
के लिए
(c) छात्राओं के
ज्ञानवर्द्धन हेतु
(d)
छात्रों द्वारा सत्ता में
भ्रष्टाचार और अशान्ति दूर करने हेतु
21.
इण्डियन एक्सप्रेस के मालिक कौन थे ?
(a) रामनाथ गोयनका
(b)
रामदास बिरला
(c)
महेश डालमियाँ
d)इनमे से कोई नहीं
22.
जयप्रकाश जी हिन्दू विश्वविद्यालय में
प्रवेश क्यों नहीं चाहते थे ?
(a) वहाँ कठोर अनुशासन था
(b)
वहाँ अराजकता थी
(c)
वहाँ सरकारी फण्ड प्राप्त
होता था
(d)
उनका मन नहीं माना
23.
आई.एस. सी. की
परीक्षा जयप्रकाश जी ने कहाँ से उत्तीर्ण की ?
(a)
प्रयाग विश्वविद्यालय
(b)
काशी विश्वविद्यालय
(c)
बिहार विद्यापीठ
(d)
पटना जेल से
24.
1975 में जयप्रकाश
नारायण को किस सरकार ने जेल में डाला था?
(a)
इंदिरा गांधी सरकार
(b) मोरारजी देसाई सरकार
(c) लाल बहादुर शास्त्री
सरकार
(d) अटल बिहारी वाजपेयी
सरकार
25.
जयप्रकाश नारायण को मरणोपरांत कौन सा
सर्वोच्च सम्मान मिला?
(a)
भारत रत्न
(b) पद्म विभूषण
(c) गांधी शांति
पुरस्कार
(d) नोबेल पुरस्कार
26.
अमेरिका मे पढ़ाई के दौरान जयप्रकाश
नारायण ने कौन सा काम किया ?
(a)बगानों मे काम कछिया
(b)लोहे के कारखाने में काम
किया
(c)बर्तन धोने का
(d)
इनमें से सभी
27.
जयप्रकाश नारायण भ्रष्टाचार के लिए
मुख्य जड़ क्या मानते थे?
(a)कालाबाजार
(b)घूसखोरी
(c)चोरी
(d)चुनावी खर्चे
28.
आई.एस.सी । पास करने के
बाद जयप्रकाश नारायण आगे की पढ़ाई के लिए कहा गए ?
(a)इंग्लैंड
(b)अमेरिका
(c)आस्ट्रेलिया
(d)जापान
29.
जयप्रकाश नारायण मार्क्सवादी कब बने ?
(a)1921
(b)1922
(c)1923
(d)1924
30.
लेनिन की मृत्यु कब हुई थी ?
(a) 1924
(b)
1929
(c) 1930
d) 1936
31.
जयप्रकाश नारायण रचित पाठ का नाम क्या
है?
(a) हँसते हुए मेरा अकेलापन
(b)
प्रगति और समाज
(c)
बातचीत
(d)
सम्पूर्ण क्रान्ति
32.
जयप्रकाश नारायण कहा के रहने वाले थे
?
(a)पंजाब
(b)बिहार
(c)उत्तर प्रदेश
(d)गुजरात
33.
जवाहरलाल नेहरू को जयप्रकाश नारायण
कहा करते थे ?
(a)हमराही
(b)भाई
(c)गुरु
(d)साथी
34.
इलाज के लिए जयप्रकाश नारायण कहा गए
थे?
(a)बंगलौर
(b)बेल्लौर
(c)मैसूर
(d)चितुर
35.
जयप्रकाश नारायण की मृत्यु कब हुई?
a)1979
b)1970
c)1982
d)2020
36.
संपूर्ण क्रांति आंदोलन किसके खिलाफ
था?
(a)
ब्रिटिश सरकार
(b) कांग्रेस सरकार
(c) जनता पार्टी सरकार
(d) भारतीय जनता पार्टी
37.
जयप्रकाश नारायण की पत्नी का नाम क्या
था?
(a)
कस्तूरबा गांधी
(b) प्रभावती देवी
(c) अरुणा आसफ अली
(d) सरोजिनी नायडू
ANSWER
1.a 2.b 3.a 4.c 5.c 6.b 7.c 8.c 9.c 10.b 11.b 12.d 13.a 14.a 15.a 16.b
17.c 18.b 19.c 20.d 21.a 22.c 23.c 24.a
25.a 26.d 27.d 28.b 29.d 30.a 31.d 32.b 33.b 34.b 35.a 36.b 37.b
SAMPOORN
KRANTI SHORT QUESTION
1.
आंदोलन के नेतृत्व के संबंध में
जयप्रकाश नारायण के क्या विचार थे?
उत्तर: जयप्रकाश नारायण का मानना
था कि आंदोलन का संचालन सभी की सलाह से होगा, विशेषकर छात्रों की राय सुनी जाएगी, लेकिन अंतिम निर्णय उन्हीं
का होगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि ऐसा नहीं हुआ, तो आंदोलन बिखर सकता है।
2.
बापू और नेहरू की किस विशेषता का
उल्लेख जे.पी. ने अपने भाषण में किया है?
उत्तर: जे.पी. ने बापू की महानता
का उल्लेख किया कि वे आलोचना का बुरा नहीं मानते थे और समझाने का प्रयास करते थे।
उन्होंने नेहरू को बड़ा भाई बताया, जिन्होंने उनकी आलोचना का कभी विरोध नहीं किया
और स्नेह बनाए रखा।
3.
चुनाव सुधार के बारे में जयप्रकाश जी
के प्रमुख सुझाव क्या हैं?
उत्तर: जे.पी. का मानना था कि
चुनाव प्रक्रिया निष्पक्ष और स्वतंत्र होनी चाहिए। मतदाता को उम्मीदवार चुनने का
अधिकार मिले। जाति, धनबल और बाहुबल का प्रभाव खत्म हो। झूठे भाषण और धोखाधड़ी
भी समाप्त होनी चाहिए।
4.
दिनकर जी का निधन कहाँ और किन
परिस्थितियों में हुआ था?
उत्तर: दिनकर जी रामनाथ गोयनका के
अतिथि थे। रात में दिल का दौरा पड़ा, उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया, पर डॉक्टरों के प्रयास के
बावजूद वे बच नहीं सके और वहीं उनका निधन हो गया।
5.
जयप्रकाश नारायण कम्युनिस्ट पार्टी
में क्यों नहीं शामिल हुए?
उत्तर: जे.पी. का मानना था कि
गुलाम देशों के कम्युनिस्टों को स्वतंत्रता संग्राम से अलग नहीं रहना चाहिए। वे
आजादी के दीवाने थे और कांग्रेस के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो
गए।
6.
जयप्रकाश नारायण के छात्र जीवन और
अमेरिका प्रवास का परिचय दें।
उत्तर: जे.पी. ने पटना कॉलेज में
आई.एस.सी. की पढ़ाई की, फिर असहयोग आंदोलन में भाग लेकर पढ़ाई छोड़ी। अमेरिका में
मजदूरी कर पढ़ाई की, बर्तन धोए, वेटर का काम किया, फिर बी.ए. के बाद स्कॉलरशिप मिली और पढ़ाई आसान
हो गई।
7.
भ्रष्टाचार की जड़ क्या है? क्या आप जे.पी.
से सहमत हैं?
उत्तर: जे.पी. के अनुसार, सरकारी नीतियाँ भ्रष्टाचार
की जड़ हैं। इससे भूख, महँगाई और रिश्वतखोरी बढ़ रही है। सरकारी दफ्तर, बैंक, अस्पताल, शिक्षा और पुलिस विभाग सभी
इससे प्रभावित हैं। मैं जे.पी. से सहमत हूँ और इसे रोकने के लिए कठोर कानून, पारदर्शिता और नैतिक शिक्षा
को बढ़ावा देने का सुझाव दूँगा।
8.
दलविहीन लोकतंत्र और साम्यवाद में
क्या संबंध है?
उत्तर: दलविहीन लोकतंत्र सर्वोदय
का सिद्धांत है, जो ग्राम सभाओं के आधार पर दलविहीन प्रतिनिधित्व की वकालत करता है। मार्क्सवाद
भी इसे समर्थन देता है, क्योंकि साम्यवाद के विकास के साथ राज्य का अस्तित्व समाप्त
हो जाता है और एक लोकतांत्रिक, दलविहीन समाज स्थापित होता है।
SAMPOORN
KRANTI EXPLANATION
1. “अगर कोई डेमोक्रेसी का दुश्मन है तो वे लोग
दुश्मन हैं, जो जनता के शान्तिमय कार्यक्रम में बाधा डालते हैं, उनकी गिरफ्तारियाँ
करते हैं उन पर लाठियाँ चलाते हैं, गोलियाँ चलाते हैं “
उत्तर:
यह पंक्तियाँ जयप्रकाश
नारायण के 1974 के पटना के गांधी मैदान में दिए गए भाषण से ली गई हैं। वे सरकार की नीतियों की
आलोचना करते हुए कहते हैं कि लोकतंत्र में जनता को सभा करने और विरोध जताने का
अधिकार है, लेकिन सरकार इसे दबाने के लिए लाठीचार्ज, गिरफ्तारियाँ और हिंसा करती है। ऐसे लोग ही लोकतंत्र
के असली दुश्मन हैं, क्योंकि वे जनता की आवाज़ को कुचलते हैं और उनके अधिकारों
को छीनते हैं।
2. “व्यक्ति से नहीं हमें तो नीतियों से
झगड़ा है , सिद्धान्तों से झगड़ा है , कार्यों से झगड़ा है। ”
उत्तर- यह पंक्तियाँ जयप्रकाश नारायण के 1974 के पटना के गांधी मैदान में दिए गए भाषण से ली
गई हैं। जयप्रकाश नारायण कहते हैं कि उनका विरोध किसी व्यक्ति से नहीं, बल्कि सरकार की गलत नीतियों
से है। वे मानते हैं कि नीतियाँ जनता के कल्याण के लिए होनी चाहिए, लेकिन सरकार स्वार्थी और
जनविरोधी फैसले ले रही है। इसलिए वे नीतिगत बदलाव की माँग करते हैं।
संपूर्ण क्रांति पाठ
बिहार प्रदेश 'छात्र संघर्ष समिति' के मेरे युवक साथियो, बिहार प्रदेश के असंख्य
नागरिक भाइयो और बहनो ।
अभी-अभी रेणु जी ने जो
कविता पढ़ी, अनुरोध तो वास्तव में उनका था, सुनाना तो वह चाहते थे; मुझसे पूछा गया कि वह कविता
सुना दें या नहीं; मैं ने स्वीकार किया। लेकिन उसने बहुत सारी स्मृतियाँ, और अभी हाल की बहुत दुखद
स्मृति को जाग्रत कर दिया है। इससे हृदय भर उठा है। आपको शायद मालूम न होगा कि जब
मैं वेल्लोर अस्पताल के लिए रवाना हुआ था, तो जाते समय मद्रास में दो दिन अपने मित्र श्री
ईश्वर अय्यर के साथ रुका था। वहाँ दिनकर जी, गंगाबाबू मिलने आए थे । बल्कि, गंगाबाबू तो साथ ही रहते थे; और दिनकर जी बड़े प्रसन्न
दिखे। उन्होंने अभी हाल की अपनी कुछ कविताएँ सुनाई और मुझसे कहा कि आपने जो आंदोलन
शुरू किया है, जितनी मेरी आशाएँ आपसे लगी। थीं उन सबको पूर्ति, आपके इस आंदोलन में, इस नए आवाहन में, देश के तरुणों का आपने जो
किया है, मैं देखता हूँ। (तालियाँ) तालियाँ हरगिज न बजाइए, मेरी बात चुपचाप सुनिए ।
अब मेरे मुँह से आप हुंकार
नहीं सुनेंगे। लेकिन जो कुछ विचार मैं आपसे कहूँगा वे विचार हुंकारों से भरे होंगे
। क्रांतिकारी ने विचार होंगे, जिन पर अमल करना आसान नहीं होगा। अमल करने के लिए बलिदान
करना होगा, कष्ट सहना होगा, गोली और लाठियों का सामना करना होगा, जेलों को भरना होगा। जमीनों
की कुर्कियाँ होंगी। यह सब होगा। यह क्रांति है मित्रचे, और संपूर्ण क्रांति है। यह
कोई विधानसभा के विघटन का ही आंदोलन नहीं है। वह तो एक मंजिल है, जो रास्ते में है। दूर जाना
है,
दूर जाना है। जवाहरलाल
नेहरू के शब्दों में अभी न जाने कितने मीलों इस देश की जनता को जाना है उस
स्वराज्य को प्राप्त करने के लिए, जिसके लिए देश के हजारों-लाखों जवानों ने कुर्बानियाँ दी
हैं; जिसके लिए सरदार भगतसिंह, उनके साथी, बंगाल के सारे क्रांतिकारी साथी, महाराष्ट्र के साथी, देशभर के क्रांतिकारी सभी
गोली का निशाना बने, या तो फाँसी पर लटकाए गए; जिस स्वराज्य के लिए लाखों-लाख देश की जनता
बार-बार जेलों को भरती रही है। लेकिन आज सत्ताइस-अट्ठाइस वर्ष के बाद का जो
स्वराज्य है, उसमें जनता कराह रही है। भूख है, महँगाई है, भ्रष्टाचार है, कोई काम नहीं जनता का निकलता है बगैर रिश्वत दिए
। सरकारी दफ्तरों में, बैंकों में, हर जगह; टिकट लेना है उसमें, जहाँ भी हो, रिश्वत के बगैर काम नहीं
जनता का होता । हर प्रकार के अन्याय के नीचे जनता दब रही है। शिक्षा-संस्थाएँ
भ्रष्ट हो रही हैं। हजारों नौजवानों का भविष्य अँधेरे में पड़ा हुआ है । जीवन उनका
नष्ट हो रहा है। शिक्षा दी जाती है-गुलामी की शिक्षा। शिक्षा पाकर दर-दर ठोकरें
खाना नौकरी के लिए । नौकरियाँ मिलती ही नहीं । दिन पर दिन बेरोजगारी बढ़ती जाती
है। गरीब की बेरोजगारी बढ़ती जाती है। 'गरीबी हटाओ' के नारे जरूर लगते हैं, लेकिन गरीबी बढ़ी है पिछले
वर्षों में ।
तो मित्रो ! आज की स्थिति यह है। और इस स्थिति में वहाँ दिनकर जी ने कुछ हमें
अपने शब्द सुनाए, बड़े हृदयग्राही थे । और उसी रात जब विदा हुए उसी रात को
हमारे मित्र रामनाथ जी गोयनका ('इंडियन एक्सप्रेस' के मालिक) के घर पर वह मेहमान थे। रात को दिल का
दौरा पड़ा, तीन मिनट में उनको अस्पताल पहुँचाया गोयनका जी ने, तीन मिनट में। 'विलिंगडन नर्सिंग होम' शायद उसे कहते हैं। सारा
इंतजाम था वहाँ पर। पटना का अस्पताल तो ...... पता नहीं तीन घंटे में भी तैयार न
हो पाता। सभी. डॉक्टर सब तरह के औजार लेकर तैयार थे। लेकिन दिनकर जी का हार्ट फिर
से जिंदा नहीं हो पाया। उसी रात उनका निधन हो गया। ऐसी चोट लगी, उनकी यह कविता सुनके; उनका वह सुंदर, सौप्य, जोशीला चेहरा याद आ गया। आज
लगता है, हमारे दो मित्रों की कितनी कमी है। आज भाई बेनीपुरी जी होते, उनकी लेखनी में जो ताकत थी, आज के जुलूस का, आज की इस सभा का जो वर्णन
वह देते, एक-एक शब्द में अंगार होते। आज दिनकर जी जो कविता लिखते, नए भारत के नवनिर्माण के
लिए, जो देश के युवकों और छात्रों और देश के साधारण व्यक्तियों, नर और नारियों के द्वारा आज
से हो रहा है शुरू, प्रारंभ हो गया है, वह कविता शायद इस नवीन क्रांति का एक अमर
साहित्य बन जाती । लेकिन आज दोनों ही नहीं हैं; न दिनकर जी हैं, न बेनीपुरी जी ।
तो मित्रो ! ये स्मृतियाँ
जगी हैं और इनका भार हृदय पर है। मैं तो थक गया हूँ लेकिन आज बड़ी भारी जिम्मेदारी
हमारे कंधों पर आई है और मैंने इस जिम्मेदारी को अपनी तरफ से माँग करके नहीं लिया
है। तरुणों से, छात्रों से बराबर कहता रहा हूँ-जब पहला हमने आवाहन किया था 'यूथ फॉर डिमॉक्रेसी' का; लोकतंत्र में युवकों का
क्या रोल है, यह हमने जो बताया था, उसमें लिखा था और उसके बाद बराबर कहता रहा हूँ, संचालन समिति में बहस करता
रहा हूँ- 'हम बूढ़े हो गए, हमारी सलाह ले लीजिए । हम दूसरी पीढ़ी के हो गए। आप नई
पीढ़ी के लोग है। देश का भविष्य आपके हाथों में है। उत्साह है आपके अंदर, शक्ति है आपके अंदर, जवानी है आपके अंदर, आप नेता बनिए। मैं आपको
सलाह दूँगा । तो छात्रों ने कहा-जयप्रकाश जी, मार्गदर्शन से काम नहीं चलेगा, आपको नेतृत्व स्वीकार करना
पड़ेगा। मैं टालता रहा, टालतां रहा; लेकिन अंत में वेल्लोर जाते समय मैंने उनके
आग्रह को स्वीकार किया। स्वीकार करते समय मैंने अनुभव किया अपनी अयोग्यता का, और नम्रतापूर्वक यह स्वीकार
किया। परंतु छात्रों से भी, आप सबसे भी यह अनुरोध है कि नाम के लिए मुझे नेता नहीं बनना
है। मुझे सामने खड़ा करके और कोई हमें 'डिक्टेट' करे पीछे से कि क्या करना है जयप्रकाश नारायण
तुम्हें, तो इस नेतृत्व को कल मैं छोड़ देना चाहूँगा। मैं सबकी सलाह लूँगा-तालियाँ नहीं, बात सुनिए, बात समझिए सबकी बात सुनूँगा
। छात्रों की बात, जितना भी ज्यादा होगा, जितना भी समय मेरे पास होगा, उनसे बहस करूँगा, समझेंगा और अधिक से अधिक
उनकी बात मैं स्वीकार करूंगा। आपकी बात स्वीकार करूँगा, जम संघर्ष समितियों की; लेकिन फैसला मेरा होगा। इस
फैसले को इनको मानना होगा और आपको मानना होगा । तब तो इस नेतृत्व का कोई मतलब है, तब यह क्रांति सफल हो सकती
है। और नहीं, तो आपस के झगड़ों में, बहसों में, पता नहीं कि हम किधर बिखर जाएँगे और क्या नतीजा निकलेगा ।
बहुत दिनों से सार्वजनिक
जीवन में हूँ। 1921 में, जनवरी के महीने में, इसी पटना कॉलेज में आई० एससी० का विद्यार्थी था।
हमारे साथ, हमारे निकट के साथी थे, वे सब छात्रवृत्ति पानेवाले थे । मुझे भी छात्रवृत्ति मिलती
थी । सब अव्वल दर्जे के, 'क्रीम' थे उस समय के विद्यार्थियों में । और हम सबने एक साथ
गाँधीजी के आवाहन पर असहयोग किया। असहयोग करने के बाद करीब डेढ़ वर्ष यों ही मेरा
जीवने बीता। चूंकि मैं साइंस का विद्यार्थी था, तो राजेंद्र बाबू के सचिव या मंत्री या मित्र या
जो कहिए-मधुराबाबू उनके जामाता बाबू फूलदेवसहाय धर्मा थे, उनके पास भेज दिया गया कि
फूलदेव बाबू के साथ रहो और उनकी लैबोरेटरी में, उनकी प्रयोगशाला में कुछ प्रयोग करो और उनसे कुछ
सीखो । महामना मदन मोहन मालवीय जी के लिए मेरे हृदय में पूजा का भाव है, परंतु हिंदू विश्वविद्यालय
में भी दाखिल होने के लिए मैं तैयार नहीं था, क्योंकि सरकारी रुपया, सरकारी एड, मदद विश्वविद्यालय को मिलती
थी। स्वतंत्र नहीं था वह, पूर्ण रूप से राष्ट्रीय विद्यालय नहीं था। तो मैं किसी
विद्यालय में नहीं गया । बिहार विद्यापीठ में मैंने परीक्षा दी-आई० एससी० की। पास
तो करना ही था, पास कर गया । उसके बाद बचपन में-जब हाईस्कूल में था-मैंने स्वामी सत्यदेव के
भाषण सुने थे अमेरिका के बारे में। कोई धनी घर का नहीं हूँ। थोड़ी सी खेती और
पिताजी नहर विभाग में जिलादार, बाद में रेवेन्यू असिस्टेंट हुए। नॉन-गजटेड अपासर थे। उनकी
हैसियत नहीं थी कि वह मुझे अमेरिका भेजें। तो मैंने सुना था कि अमेरिका में मजदूरी
करके लड़के पढ़ सकते हैं। मेरी इच्छा थी कि आगे पढ़ना है मुझे; आंदोलन तो गिराव पर आ गया
है;
चढ़ाव पर था, उतर चुका है; इस बीच अमेरिका से कुछ
शिक्षा प्राप्त करके आ जाऊँ। इसीलिए अमेरिका गया-अमेरिका गया। कुछ लोग हैं जो
हमारे पता नहीं कि उन्हें किस नाम से पुकारूँ-मुझे आज वर्षों से गालियाँ देते रहे
हैं। कितनी गालियों मुझे दी गई हैं। चूंकि अमेरिका में मैंने पढ़ा, इसलिए मैं अमेरिका का दलाल
बना हूँ। 'निवसत को दे दो तार, जयप्रकाश की हो गई हार', ये नारे लगाए।
मित्रो, अमेरिका में बागानों में
मैंने काम किया, कारखानों में काम किया-लोहे के कारखानों में। जहाँ जानवर मारे जाते हैं, उन कारखानों में काम किया।
जब यूनिवर्सिटी में पढ़ता था, छुट्टियों में काम करके इतना कमा लेता था कि कुछ खाना हम
तीन-चार विद्यार्थी मिलकर पकाते थे, और सस्ते में हम लोग खा-पी लेते थे। एक कोठरी
में कई आदमी मिलकर रह लेते थे, रुपया बचा लेते थे, कुछ कपड़े खरीदने, कुछ फीस के लिए । और बाकी हर दिन रविवार को भी
छुट्टी नहीं एक घंटा रेस्त्राँ में, होटल में या तो बर्तन धोया या वेटर का काम किया, तो शाम को रात का खाना मिल
गया, दिन का खाना मिल गया। किराया कहाँ से मकान का हमको आया ? बरावर दो-तीन लड़के कितने
वर्षों तक दो चारपाई नहीं थी कमरे में - एक चारपाई पर मैं और कोई न कोई अमेरिकन लड़का
रहता था । हम दोनों साथ सोते थे, एक रजाई हमारी होती थी । इस गरीबी में मैं पढ़ा हूँ। इतवार
के दिन या कुछ 'ऑड टाइम' में, बह जो होटल का काम है-उसको छोड़ करके, जूते साफ करने का काम 'शू शाइन पार्लर' में, उससे ले करके कमोड साफ करने
का काम होटलों में करता था। वहाँ जब बी० ए० पास कर लिया, स्कॉलरशिप मिल गई; तीन महीने के बाद असिस्टेंट
हो गया डिपार्टमेंट का, 'ट्यूटोरियल क्लास' लेने लगा, तो कुछ आराम से रहा इस बीच में । इन लोगों से
पूछिए । मेरा इतिहास ये जानते हैं और जानकर भी मुझे गालियाँ देते हैं।
अमेरिका में विस्कासिन में, मैडिसन में, मैं घोर कम्युनिस्ट था। वह
लेनिन का जमाना था, वह ट्राटस्की का जमाना था। 1924 में लेनिन परे थे. और 1924
में मैं मार्क्सवादी बना था और दावे के साथ कह सकता हूँ कि उस समय तक जो भी
मार्क्सवाद के ग्रंथ छपे थे अंग्रेजी में, हम लोगों ने पढ़ डाले थे। रात-रात को रोज एक
रशियन टेलर था, दर्जी था, उसके यहाँ हमारे क्लास लगते थे। और वहाँ से जब भारत लौटा था, घोर कम्युनिस्ट बनकर लौटा
था;
लेकिन मैं काँग्रेस में
दाखिल हुआ। कम्युनिस्ट पार्टी में क्यों नहीं दाखिल हुआ ? मैंने जो लेनिन से सीखा था, वह यह सीखा था कि जो गुलाम
देश हैं, वहाँ के जो कम्युनिस्ट हैं, उनको हरगिज वहाँ की आजादी की लड़ाई से अपने को अलग नहीं
रखना चाहिए-यद्यपि उस लड़ाई का नेतृत्व, जिसको मार्क्सवादी भाषा में 'बुर्जुआ क्लास' कहते हैं, उस क्लास के हाथ में हो; पूँजीपतियों के हाथ में
उसका नेतृत्व हो, फिर भी कम्युनिस्टों को अलग नहीं रहना चाहिए । अपने को
आइसोलेट नहीं करना चाहिए ।
पहली बात जो मैंने नोट की
है. आपसे कहने के लिए वह इस सरकार के बारे में है, आज से तीन दिन हुए । गफूर साहब मिलने आए थे, बहुत प्रेम से मिले। उसके
दो दिन के बाद चंद्रशेखर बाबू मिलने आए, बहुत प्रेम से मिले। लेकिन प्रधानमंत्री से ले
करके, दीक्षित जी से नीचे ..... सब लोग मुझे डिमॉक्रेसी का सबक सिखाते हैं। इनमें से
किसी को कोई अधिकार नहीं है कि जयप्रकाश नारायण को लोकतंत्र की शिक्षा दें, लेकिन वे जयप्रकाश नारायण
को शिक्षा देने की हिम्मत करते हैं और इनकी .... हरकत देखिए - शांतिमय प्रदर्शन, शांतिमय जुलूस के लिए
हजारों लोग आ रहे हैं। प्रदेश के कोने-कोने से, छात्र आ रहे हैं, किसान आ रहे हैं, मजदूर आ रहे हैं, मध्यम वर्ग के लोग आ रहे हैं, कहीं पैदल आ रहे हैं, कुछ बस से आ रहे हैं, कहीं रेलों से आ रहे हैं, कोई ट्रक भाड़े पर ले करके, डीजल अपना खरीद करके, ले करके आ रहे हैं।
जहाँ-तहाँ रोका है इनको, लड़कों को पीटा है, गिरफ्तार किया है-अनायास, कोई कारण नहीं है। और यहाँ
हमसे आकर के सब मीठी-मीठी बातें करते हैं। इन्होंने जिद की कि इस रास्ते से जुलूस
नहीं जाएगा, इसमें यह खतरा है, वह खतरा है। मुझे कोई खतरा दिखाई नहीं दिया। लेकिन जब
उन्होंने कहा कि शायद जेल तोड़ने की कोशिश हो और शायद उन्हें गोली चलानी पड़े तो
मैंने कहा, इसकी जिम्मेदारी में नहीं लेता हूँ। आंदोलन हमाय किसी दूसरे उद्देश्य से हो
रहा है, बीच में यह 'डाइवर्शन' हो जाए, रास्ता ही भटक जाएँ हम लोग, ग्रह नहीं चाहते। तो चलिए, जो आप कहते हैं, वही मान लेता हूँ। तो ये
बिगड़े भी होंगे छात्र लोग। उधर से जाना था आप इधर से क्यों आए ? हालाँकि वे उन लड़कों को ले
आए और एक दूसरी बिल्डिंग में खड़ा करके जो लड़के हमारी छात्र संघर्ष समिति के जहाँ
जेल में हैं-उनको जुलूस दिखाने के लिए ले आए। मैं नहीं जानता हूँ कि अंग्रेजी
सरकार के जमाने में भी इस प्रकार का व्यवहार कभी हुआ हो। लोग रेलों से उतार दिए गए, बसों से उतार दिए गए। टिकट
था उनके पास । बेटिकट लोग थे, उनको उतार दिया अलग। मुजफ्फरपुर की रिपोर्ट आपने अखबारों
में पढ़ी होगी । सारे डिवीजन में क्या-क्या नहीं हुआ है। शर्म नहीं आती इन लोगों
को ? डिमॉक्रेसी की बात करते हैं। लोकतंत्र में, डिमॉक्रेसी में जनता को अधिकार नहीं है कि जहाँ
भी चाहें शांतिपूर्ण सभा करें अपनी ? जहाँ भी चाहें शांतिपूर्ण प्रदर्शन करें वे ? राज्यपाल के यहाँ जाना हुआ
तो लाखों की तादाद में जाएँ ? असेंबली के सामने जाएँ ? उनको पूरा अधिकार है। हिंसा करे कोई, तो दूसरी बात है।
हमसे मिलने आए पुलिस के एक
उच्च अधिकारी ने कहा, बड़े उच्चाधिकारी ने कहा-नाम लेना यहाँ ठीक नहीं होगा -कि
मैंने दीक्षित जी के मुँह से सुना है कि 'जयप्रकाश नारायण नहीं होते तो बिहार जल गया होता
।'
जब जयप्रकाश नारायण के बारे
में ऐसा आप सोचते हैं, तो जयप्रकाश नारायण के लिए यह सारा क्यों होता है ? तो, उनके नेतृत्व में यह
प्रदर्शन और यह सभा होने वाली है, क्यों लोगों को रोकते हैं आप ? जनता से घबड़ाते हैं आप ? जनता के आप प्रतिनिधि हैं ? किसकी तरफ से शासन करने
बैठे हैं आप ? आपकी हिम्मत कि लोगों को पटना आने से रोक लें ? उनकी राजधानी है। आपकी राजधानी है ? यह पुलिसवालों का देश है ? यह जनता का देश है। दूब आना
चाहिए इन लोगों को। ऐसी नीचता का व्यवहार । बहुत कठोर शब्द का प्रयोग कर रहा हूँ, मैं कठोर शब्द का प्रयोग
नहीं करता, लेकिन यह नीचता का व्यवहार है। अगर कोई डिमॉक्रेसी का दुश्मन है, तो वे लोग दुश्मन हैं, जो जनता के शांतिमय
कार्यक्रमों में बाधा डालते हैं, उनकी गिरफ्तारियाँ करते हैं। उन पर लाठी चलाते हैं, गोलियाँ चलाते हैं। यह
डिमॉक्रसी है ? इसे बदलना चाहती है जनता-जयप्रकाश नारायण, छात्र, युवक; क्योंकि जो भी आंदोलन इस देश में आज उठेगा उसका
नेता युवक रहेगा, छात्र रहेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है हमको।
मित्रो, एक बात तो यह कहनी थी। मैं
जानता हूँ कि डॉक्टर रहमान यहाँ बैठे होंगे, तो वे कुछ चिंता में पड़े होंगे, कि इस जोर से बोलने का असर
मेरे हृदय पर बुरा होगा। मैं भी समझता हूँ। अब जरा अपने को बाँध के बोलूँगा ।
अभी हाल में मैं वेल्लोर
में था, तो हमारे परम मित्र और स्नेही उमाशंकर जी दीक्षित पटना आए थे। उन्होंने मेरे
संबंध में कुछ अच्छी बातें कहीं। साथ-साथ कई प्रश्न उन्होंने उठाए। मेरा उनका बहुत
पुराना संबंध है। 32-33 का आंदोलन जो चला था, उसमें वह 'अंडरग्राउंड' बंबई के-- बंबई में वह रहते ही थे-अंडरग्राउंड
नेता थे। और सदानंद जी ने जो फ्री प्रेस के मालिक भी थे उसकी स्थापना की थी
उन्होंने उनको 'ब्रेन ऑफ बांबे' कहा था। मुझे भी कोई बड़ी पदवी दी थी, पर में अपनी प्रशंसा नहीं
करूंगा । उस समय दीक्षित जी से हमास परिचय और हमारी घनिष्ठता, मित्रता हुई। और 'अंडरग्राउंड जमाने की जो
मित्रता होती है, वह ठोस होती है-चाहे हम कही रहें, वह कहीं रहें ठोस रहती है।
उसके बाद हम एक दूसरे के मित्र आज तक बने हुए हैं।
कुछ ऐसे मित्र हैं, जिनके भाव अच्छे हैं। हमारे पुराने मित्र, जो सोशलिस्ट पार्टी में थे
या जो नहीं भी थे, ... चाहते हैं कि जयप्रकाश नारायण और इंदिरा जी में कुछ
मेल-मिलाप हो। तो मित्रो, मेरा किसी व्यक्ति से झगड़ा नहीं है। किसी व्यक्ति से झगड़ा
नहीं है चाहे वे इंदिरा जी हों या कोई हों। हमें ते नीतियों से झगड़ा है, सिद्धांतों से झगड़ा है, कायों से झगड़ा है। जो
कार्य गलत होंगे, जो नीति गलत होगी जो सिद्धांत-प्रिंसिपल्स गलत होंगे, जो पॉलिसी गलत होगी चाहे वह
कोई भी करे-मैं विरोध करूँगा, अपन अकल के मुताबिक । हम लोग इनकी तरह नौजवान थे उस जमाने
में, लेकिन यह जुर्रत होती थी हम लोगों की कि बापू के सामने हम कहते थे कि हम नहीं
मानते हैं बापू यह बात । और बापू में इतनी महत्ता थी इतनी महानता थी कि बुरा नहीं
मानते थे। फिर भी बुलाकर हमें प्रेम से समझाना चाहते थे, समझाते थे। तो, उनकी भी आलोचना की है
मैंने। उस जमाने में तो मैं घोर माक्र्सवादी था । बाद में लोकतांत्रिक समाजवादी
बना । किंतु बापू की मृत्यु के बाद, कई वर्षों के बाद-1954 में-मैं सर्वोदय में आया, गया (बिहार) में । जवाहरलाल
जी थे, एक बड़े भाई थे; चैं उनको 'भाई' कहता ही था । उनका बड़ा स्नेह था हमारे ऊपर । पता नहीं, क्यों मुझे वह मानते थे
बहुत। मैं उनका बड़ा आदर और प्रेम करता था, लेकिन
उनकी कटु आलोचना करता था। उनमें भी बड़प्पन था। अक्सर तो उन्होंने हमारी
आलोचनओ का बुरा नहीं माना, लेकिन पटना फायरिंग पर जो
मैंने बयान दिया था मैं मानता हूँ कि बहुत सख्त भाषा का मैंने प्रयोग किया था-उस
पर वह बहुत नाराज हुए। लालबहादुर जी ने कश्मीर के मामले में कुछ किया उन्होंने, मैंने उनकी भी आलोचना की।
उनको तार भी दिया कि यह बहुत गलत काम आपने किया है; इससे कश्मीर के सवाल को हल करने में आपको दिक्कत
होगी। थोड़े ही दिनों में, 18 महीनों में वह चल बसे। देश का दुर्भाग्य है ।
इंदिरा जी से जो मेरे मतभेद हैं, वे जवाहरलाल जी के साथ जो मतभेद थे, उनसे कहीं ज्यादा गंभीर और 'सीरियस' हैं। जवाहरलाल जी से
परराष्ट्र नीतियों के संबंध में स्वराष्ट्र के संबंध में अधिक उनसे हमारा मतभेद
नहीं था- तिब्बत के मामले में मतभेद था, चीन के मामले में था, हंगरी के मामले में था। और
मैं कोई गर्व नहीं करता हूँ, मैंने उस समय जो आलोचना की, हंगरी के मामले में जो कुछ कहा, जवाहरलाल जी को बाद में
मानना पड़ा । तिब्बत के बारे में मेरी बात तो नहीं मानी उन्होंने । लेकिन जब चीन
ने उनको धोखा दिया, तो उस धोखे के कारण उनके हृदय को ऐसी चोट लगी कि दो बरस में
चले गए, सँभल नहीं सके । ऐसा घाव लगा जब चीन ने आक्रमण कर दिया । वह कभी उम्मीद नहीं
करते थे, आशा नहीं करते थे कि चीन ऐसा करेगा, थोड़ी इनकी भी गलती थी । तो, परराष्ट्र नीतियों के संबंध
में मतभेद था उनसे; अंतर्देशीय प्रश्नों में नहीं था उतना मतभेद ।
अब एक बात ले लीजिए, जिसके चलते बहुत ज्यादा करप्शन राजनीति में है । वह क्या है
? इलेक्शन का खर्चा, चुनाव का खर्चा । करोड़ों
रुपए वे चुनाव पर खर्च करेंगे । एक तरफ 'गरीबी हटाओ का नारा लगाएँगे, समाजवाद का नारा लगाएँगे, और यह सब रुपया ब्लैक
मार्केटियर लोगों से आप इकट्ठा करेंगे-'अनअकाउंटेड मनी', करोड़ों रुपए, जिसका कोई हिसाब नहीं, कोई किताब नहीं ।
आज से नहीं, बरसों से मैं पुकार रहा हूँ कि भाई, इस चुनाव की पद्धति में आमूल परिवर्तन होना चाहिए, चुनाव का खर्च कम करना
चाहिए अगर चाहते हैं आप कि गरीब उम्मीदवार खड़ा हो सके, मजदूर उम्मीदवार खड़ा हो
सके; किसान उम्मीदवार खड़ा हो सके । गरीब पार्टी जो गरीब की पार्टी है, वह अपने उम्मीदवार खड़ा कर
सके । सुनता है कोई ?
प्रेस रिपोटों से पता चलता है कि इस आंदोलन के द्वारा मैं दलविहीन लोकतंत्र की
स्थापना करना चाहता हूँ । दलविहीन लोकतंत्र सर्वोदय विचार का मुख्य राजनीतिक
सिद्धांत है और उस विचार का प्रचार पिछले वर्षों में मैं करता रहा हूँ, और ग्रामसभाओं के आधार पर
दलविहीन प्रतिनिधित्व स्थापित हो सके, इसका प्रयत्न भी करता रहा हूँ । परंतु वर्तमान
आंदोलन के संदर्भ में मैंने दलविहीन लोकतंत्र का जिक्र कतई नहीं किया है। फिर भी मेरे
पुराने विचार को लेकर जनता में, विशेषकर बुद्धिजीवियों में, काफी भ्रम फैलाया गया है । केवल अपने कम्युनिस्ट
भाइयों के भ्रामक प्रचार की सफाई के लिए इतना ही कहूँगा कि दलविहीन लोकतंत्र तो
मार्क्सवाद तथा लेनिनवाद के मूल उद्देश्यों में से है, यद्यपि वह उद्देश्य दूर का
है। मार्क्सवाद के अनुसार समाज जैसे-जैसे साम्यवाद की ओर बढ़ता जाएगा, वैसे-वैसे राज्य स्टेट का
क्षय होता जाएगा और अंत में एक स्टेटलेस सोसाइटी कायम होगी । वह समाज अवश्य ही
लोकतांत्रिक होगा, बल्कि उसी समाज में लोकतंत्र का सच्चा स्वरूप प्रकट होगा और
वह लोकतंत्र निश्चय ही दलविहीन होगा । जब स्टेटलेस सोसाइटी-शासन मुक्त समाज बनता
जाता है, तो वह शायद ही दलयुक्त होगा । आश्चर्य है कि कम्युनिस्ट बंधुओं को अपने इस मूल
सिद्धांत का विस्मरण हो गया है ।
जहाँ तक वर्तमान आंदोलन का प्रश्न है, मेरी या अन्य किसी की न छात्रों की, न विपक्षी राजनीतिक दलों की, न सर्वोदय सेवकों की यह
कल्पना है कि इसमें से दलविहीन लोकतंत्र पैदा होगा विधानसभा का विघटन हो जाएगा, तो छह महीने या वर्षभर में
फिर चुनाव होंगे, जो वर्तमान कानून या चुनाव प्रणाली के अनुसार होंगे ।
विधानसभा के विघटन से संभावना तो यही है कि वर्तमान कानून तथा नियम आदि के
अंतर्गत हीपुनर्निर्वाचन होगा। इसलिए प्रश्न उठता है, जैसा कि पिछले सप्ताहों में
कई बार उठा भी है, कि उस हालत में विधानसभा के विघटन से क्या लाभ होगा ? मुझे खेद है कि इसका उत्तर
पिछले दिनों मैंने बार-बार दिया है, पर उसको समझने की कोशिश थोड़े ही लोगों ने की है
। इसलिए बार-बार मुझसे यह सवाल होता है कि जयप्रकाश नारायण वर्तमान चुनाव पद्धति
और विधानसभा के चुनाव का कौन सा विकल्प पेश कर रहे हैं ? मेरा अपना विकल्प चूँकि नए
ढंग का है, जो घिसे-पिटे राजनीतिक चिंतन से भिन्न है, इसलिए वह लोगों की समझ में नहीं आता । अगर मैं
यह कह दूँ कि मेरा विकल्प यह है कि मैं इस आंदोलन और संघर्ष में से एक नई पार्टी
का निर्माण करूँगा, तो सब लोग मेरी बात आसानी से समझ लेंगे और उसके बाद मेरी
आलोचना शुरू हो जाएगी कि यह आदमी केवल अपनी सत्ता के लिए छात्रों और जनता के आंदोलन
का दुरुपयोग कर रहा है। लेकिन जब मैं कोई नई बात कहता हूँ तो उसको समझने की कोशिश कम
होती है, या नहीं होती है । तो, क्या है मेरा कहना ? संक्षेप में यह है कि आज की परिस्थिति में आम
जनता को, आम मतदाता को केवल इतना ही अधिकार प्राप्त है कि वह चुनाव में अपना मतदान करें;परंतु मतदान प्रक्रिया न तो
स्वच्छ और स्वतंत्र होती है, न उम्मीदवारों के चयन में मतदाताओं का हाथ होता है, और न चुनाव के बाद अपने
प्रतिनिधियों पर उनका कोई अंकुश ही रहता है। मैं इन दोनों कमियों को दूर करने का
प्रयत्न कर रहा हूँ ।
अपना देश पिछड़ा हुआ है, इसलिए बावजूद इसके कि हमने लोकतंत्र की स्थापना की है, विकसित देशों के
लोकतांत्रिक समाज में जो प्रतिप्रभावी शक्तियाँ, यानी परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करने वाली शक्तियाँ
होती हैं, जनमत का जो प्रबल प्रभाव प्रतिनिधियों पर निरंतर पड़ता है, जो स्वतंत्र और साहसी प्रेस, पत्र-पत्रिकाओं के रोल
होते हैं, शिक्षित समुदाय का जो वैचारिक और नैतिक असर होता है, इस सारे इंफ्रास्ट्रक्चर का, यानी जनता और शासन के बीच
की संरचना का, यहाँ नितांत अभाव है । ऐसी स्थिति में हमारा लोकतंत्र केवल नाममात्र का रह जाता
है । इस पूरी अंतरिम संरचना का इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण तो एक दिन में नहीं हो
सकता; परंतु उसके अभाव में आम जनता या मतदाता मतदान के सिवा कोई भी पार्ट अदा नहीं
कर सकता, जिसके परिणामस्वरूप मंत्री तथा विधायक निरंकुश और स्वच्छंद हो जाते हैं, और जनता का किसी प्रकार का
अंकुश उन पर नहीं रहता, सिवा इस भय के कि अगले चुनाव में जनता यदि चाहे तो उनको वोट
नहीं दे, परंतु यह भय भी रुपया, जाति, बल प्रयोग, मिथ्याचरण आदि के कारण निष्प्रभ हो जाता है । अब चूँकि
प्रदेश के छात्र, युवक और सर्वसाधारण जनता जाग्रत हो गई है, वह आगे बढ़ रही है और कुछ
नया चाहती है, वर्तमान परिस्थिति में परिवर्तन चाहती है । अतः इस परिस्थिति का लाभ उठाकर मैं
चाहूँगा कि आज जो असंगठित जनता है, उसमें ऐसी शक्ति आ जाए कि वह सही आदमी का चुनाव
कर सके तथा चुनाव के बाद अपने प्रतिनिधियों के आचरण पर यथासंभव अंकुश रख सके । इस
संबंध में मेरे कुछ सुझाव हैं । एक तो यह है कि जब विधानसभा का अगला चुनाव हो, तो हमारी छात्र-संघर्ष तथा
जन-संघर्ष समितियाँ मिल करके आम राय से अपना उम्मीदवार खड़ा करें, अथवा जो उम्मीदवार खड़े किए
जाएँ, उनमें से किसी को मान्य करें । यदि इन समितियों के बीच आम राय नहीं होती है, तो हम कोई ऐसा रास्ता
बनाएँगे, जिससे आपस में फूट हुए बगैर ये समितियाँ अपना उम्मीदवार खड़ा कर सकेंगी, या किसी एक उम्मीदवार को
अपनी मान्यता दे सकेंगी । इस प्रकार के चुनाव में जनता का एक बहुत बड़ा पार्ट होगा, यानी जनता और छात्रों की
संघर्ष समितियाँ उम्मीदवार के चयन में अपना महत्त्वपूर्ण रोल अदा करेंगी। दूसरी
बात यह है कि जो भी उम्मीदवार अमुक चुनाव क्षेत्र से जीतेगा, उसके भावी कार्यक्रमों पर
कड़ी निगरानी रखने का काम ये संघर्ष समितियाँ करेंगी, और अगर उस क्षेत्र का प्रतिनिधि
गलत रास्ता पकड़ता है, तो उनको इस्तीफा देने को बाध्य करेंगी। इस प्रकार से जनता
का अंकुश इन लोगों के ऊपर होगा और आज की तरह उच्छृंखल, आज की तरह निरंकुश और
स्वच्छंद वे नहीं रह पाएँगे ।
इस सिलसिले में एक और बात स्पष्ट करना आवश्यक है कि जो संघर्ष समितियाँ
छात्रों की या जनता की बन गई हैं या बन रही हैं, उनका काम केवल शासन से संघर्ष करना नहीं है, बल्कि उनका काम तो समाज के
हर अन्याय और अनीति के विरुद्ध संघर्ष करने का होगा, और इस प्रकार से इन समितियों के लिए बराबर एक
महत्त्वपूर्ण कार्य रहेगा। गाँव में छोटे अफसरों या कर्मचारियों की चाहे वे पुलिस
के हों या अन्य किसी प्रकार के जो घूसखोरी चलती है, उसके खिलाफ तो संघर्ष रहेगा ही । साथ-साथ जिन
बड़े किसानों ने बेनामी या फर्जी बंदोबस्तियाँ की हैं, उनका भी विरोध ये समितियाँ
करेंगी और उनको दुरुस्त करने के लिए संघर्ष करेंगी । गाँव में तरह-तरह के अन्याय
होते हैं, मेरी कल्पना है कि ये समितियाँ उन अन्यायों को भी रोकेंगी। इस प्रकार से जनता
की या छात्रों की ये निर्दलीय संघर्ष समितियाँ स्थाई रूप से कायम रहेंगी और केवल
लोकतंत्र के लिए ही नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक, नैतिक क्रांति के लिए अथवा संपूर्ण क्रांति के
लिए एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य करेंगी ।

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