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बातचीत बालकृष्ण भट्ट // दिगंत भाग-2 चैप्बिटर 1 // हार बोर्ड क्लास 12 हिंदी

 

पाठ -1

बातचीत 

बालकृष्ण भट्ट

बालकृष्ण भट्ट का परिचय

o   जन्म : 23 जून 1844

o   निधन : 20 जुलाई 1914

o   निवास स्थान : इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश

o   माता-पिता : पार्वती देवी एवं बेनी प्रसाद भट्ट

§  पिता एक व्यापारी थे और माता एक सुसंस्कृत महिला जिन्होंने बालकृष्ण भट्ट के मन में अध्ययन की रूचि एवं लालसा जगाई।

o   शिक्षा : प्रारंभ में संस्कृत का अध्ययन, 1867 में प्रयाग के मिशन स्कूल से एंट्रेंस की परीक्षा दी

o   शिक्षा :

§  1869 से 1875 तक प्रयाग के मिशन स्कूल में अध्यापन।

§  1885 में प्रयाग के सी. ए. वी. स्कूल में संस्कृत का अध्यापन।

§  1888 में प्रयाग की कायस्थ पाठशाला इंटर कॉलेज में अध्यापक नियुक्त, किन्तु उग्र स्वभाव के कारण नौकरी छोड़नी पड़ी और उसके बाद से लेखन कार्य पर ही निर्भर।

o   विशेष परिस्थिति : पिता के निधनोपरांत पैतृक  व्यापार संभालने के नाम पर गृहकलह का सामना । पैतृक घर छोड़कर घोर आर्थिक संकट से जूझते हुए हिम्मत से काम लिया और साहित्य के प्रति समर्पित रहे ।

o   रचनात्मक सक्रियता : भारतेंदु हरिश्चंद्र की प्रेरणा से ‘हिंदी वर्धिनी सभा' प्रयाग की ओर से 1877 में हिंदी ‘प्रदीप’ नामक मासिक पत्र निकालना प्रारंभ किया । इसे थे 33 वर्षों तक चलाते रहे । इसमें नियमित रूप से सामाजिक-साहित्यिक-नैतिक-राजनीतिक
विषयों पर निबंध लिखते रहे ।
1881 में वेदों की युक्तिपूर्ण समीक्षा की । 1886 में लाला श्रीनिवास दास के संयोगिता स्वयंवर ' की कठोर आलोचना की । जीवन के अंतिम दिनों में हिंदी शब्दकोश ' के संपादन के लिए श्याम सुंदर दास द्वारा काशी आमंत्रित , किंतु अच्छा व्यवहार न होने पर अलग हो गए ।

o   रचनाएँ : 

§  उपन्यास- रहस्य कथा, नूतन ब्रह्मचारी, सौ अजान एक सुजान, गुप्त वैरी, रसातल यात्रा, उचित दक्षिणा, हमारी घड़ी, सदभाव का अभाव,

§  नाटक-पद्मावती, किरातर्जुनीय,वेणी संहार, शिशुपाल वध, नल दमयंती, शिक्षा दान, चंद्रसेन, सीता वनवास, पतित पंचम, मेघनाथ वध, कट्टर सूम की एक नकल, वहन्नला, इंग्लैंडेश्वरी और भारत जननी, भारतवर्ष और कलि, दो दूरदेशी, एक रोगी और एक वैध, रेल का विकेट खेल, बाल विवाह,

§  प्रहसन- जैसा काम वैसा परिणाम, नई रौशनी का विष, आचार विडंबन इत्यादि

§  निबंध- लगभग 1000 निबंध जिनमें सौ से ऊपर बहुत महत्त्वपूर्ण

o   आधुनिक काल के भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार।

o   बालकृष्ण भट्ट गद्यकार थे।

बातचीत पाठ का सारांश

बालकृष्ण भट्ट द्वारा लिखित निबंध 'बातचीत' में वाकशक्ति के महत्व को दर्शाया गया है। लेखक बताते हैं कि यदि मनुष्य बोलने में सक्षम न होता, तो संसार नीरस और निष्क्रिय हो जाता। बातचीत केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह विचारों के आदान-प्रदान और मन को हल्का करने का माध्यम भी है। घरेलू बातचीत को वे जीवन में आनंद बनाए रखने का जरिया मानते हैं। बातचीत से मनुष्य के गुण-दोष प्रकट होते हैं, और वेन जॉनसन के अनुसार, मनुष्य के वास्तविक स्वरूप का पता उसकी बातचीत से चलता है। लेखक चार से अधिक लोगों की बातचीत को व्यर्थ मानते हैं। वे यूरोपीय लोगों की 'आर्ट ऑफ कन्वर्सेशन' की प्रशंसा करते हैं। भट्ट जी के अनुसार, हमें अपने भीतर यह योग्यता विकसित करनी चाहिए कि हम सहज रूप से संवाद कर सकें, जिससे हमारा व्यक्तित्व निखरे और समाज में हमारी पहचान बने।

BAATCHIT OBJECTIVE QUESTION

1.        बातचीत शीर्षक निबंध के निबंधकार____है।
a) बालकृष्ण भट्ट
b)भगत सिंह
c)मोहन राकेश
d)
उदय प्रकाश

2.        बालकृष्ण भट्ट किस युग के रचनाकार हैं?
a)आधुनिक युग                      
b)
भारतेंदु युग
 
c)मध्यकालीन युग      
d)
भक्तिकाल युग

3.        सौ अजान एक सुजान उपन्यास के लेखक कौन हैं?
a) रामधारी सिंह दिनकर            
b)जय प्रकाश नारायण
c)बालकृष्ण भट्ट                      
d)
ओम प्रकाश

4.        बालकृष्ण भट्ट ने किस पत्रिका का संपादन किया था?
a)प्रदीप                    
b)
गुप्त वैरी
c)
सौ अजान एक सुजान             
d)यात्रा

5.        निम्नलिखित में से बाल कृष्ण भट्ट का निवास स्थान कौन सा था?
a)इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश           
b)
फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश         
c)
गाजीपुर उत्तर प्रदेश   
d)
गया बिहार

6.        बालकृष्ण भट्ट एंट्रेंस परीक्षा कब उतीर्ण की थी?
a)1867                   
b)1872                   
c)1870                   
d)1854

7.        बालकृष्ण भट्ट द्वारा कौन सा उपन्यास रचित है?
b) हमारी घडी            
b)जैसा काम वैसा परिणाम     
c)
नई रोशनी का विष    
d)सीता वनवास

8.        बालकृष्ण भट्ट के पिता कौन थे?
a)बेनी प्रसाद भट्ट                    
b)रामप्रसाद भट्ट
c)शिव प्रसाद भट्ट        
d)
गौरी शंकर

9.        भट्ट जी ने प्रदीप का सञ्चालन कितने वर्ष में किया था?
a)28                                    b)36     
c)33                                    d)27

10.     बालकृष्ण भट्ट का जन्म कब हुआ था?
a)23 जून, 1844          b)22 अप्रैल 1805
c)21
मई,1812           d)15जनवरी,1806

11.     बालकृष्ण भट्ट की मृत्यु कब हुई थी?
a)20 जुलाई, 1918      b) 10 जुलाई 1980
c) 15
मार्च, 1909       d) 20 जुलाई 1914

12.     बालकृष्ण भट्ट की मां का नाम क्या था?
a)सावित्री देवी                        b)पार्वती देवी
c)
राधिका देवी                        d)श्यामा देवी

13.     बालकृष्ण भट्ट जी ने किस शब्दकोश का संपादन किया?
a)अंग्रेजी शब्दकोश      b)उर्दू शब्दकोश
c)संस्कृत शब्दकोश      d)हिंदी शब्दकोश

14.     लेखक के अनुसार 'स्पीच' और 'बातचीत' में मुख्य अंतर क्या है?
a)
स्पीच में वक्ता का नाज-नखरा होता है, जबकि बातचीत एक घरेलू, सहज शैली है
b) बातचीत में वक्ता का प्रभाव अधिक होता है
c) स्पीच केवल लिखित होती है
d) बातचीत में शिष्टाचार नहीं होता

15.     आर्ट ऑफ कन्वर्सेशन कहां के लोगों में सर्वाधिक प्रचलित है?
a)यूरोप के                  b)एशिया के
c)
भारत के                 d)इंग्लैंड के

16.     लेखक के अनुसार, दो बुजुर्गों की बातचीत में प्रायः किसका उल्लेख होता है?
a) भविष्य की योजनाएँ  
b
) पुराने समय की बातें और जमाने की शिकायत
c
) खेल-कूद की चर्चा
d
) व्यापार से संबंधित वार्तालाप

17.     बातचीत के माध्यम से बाल कृष्ण भट्ट क्या बताना चाहते हैं?
a)बातचीत की शैली     b)अच्छाई           
c)
बुराई                     d)पढने की शैली

18.     लेखक ने किसकी बातचीत को "रस का समुद्र" कहा है?
a) दो मित्रों की बातचीत
b
) दो बुजुर्गों की बातचीत
c
) दो सहेलियों की बातचीत                   
d
) दो बच्चों की बातचीत

19.     बातचीत की किस शैली को ‘राम-रमौवल’ कहा गया है?
a) दो लोगों की बातचीत                       
b
) चार या अधिक लोगों की बातचीत
c
) बुजुर्गों की बातचीत         d) बच्चों की बातचीत

20.     लेखक के अनुसार, किस प्रकार की बातचीत सबसे श्रेष्ठ मानी गई है?
a) सभा में की जाने वाली बातचीत           
b
) आत्मसंवाद (स्वयं से बातचीत)
c
) मित्रों के साथ की जाने वाली बातचीत    
d
) चौराहे पर की जाने वाली बातचीत

21.      बातचीत के जरिये भाप बनकर क्या बाहर निकल जाता है?
a)क्लेश                    b)द्वेष     
c)मवाद और धुआं       d)ईर्ष्या

22.     मनुष्यों में_____ न होती तो हम नहीं जानते कि इस गूंगी सृष्टि का क्या हाल होता
a)वाक शक्ति।             b)चलने की शक्ति
c)सचने की शक्ति         d)समझने की शक्ति

23.     असल बातचीत सिर्फ दो व्यक्तियों के बीच हो सकती है | यह किसका मत है?
a)भट्ट जी                   b)एडिसन
c)तुकाराम                 d)गाँधी जी 

24.     बात करने का हुनर किसके पास है?
a)अमेरिकावासियों के पास         
b)जापानियों के पास
c)यूरोप के लोगो के पास            
d)हमारे पास

25.     सच है, जब तक मनुष्य बोलता नहीं तब तक उसका____प्रकट नहीं होता?
a) अच्छाई                 b) बुराई             
c)गुण-दोष                 d) इनमे से कोई नही

26.     लेखक के अनुसार वास्तविक बातचीत की सबसे प्रभावी सीमा क्या है?
a) दो व्यक्ति के बीच की वार्ता                 
b) तीन या चार लोगों का समूह वार्तालाप
c) बड़े मंच पर सार्वजनिक भाषण  
d) पत्र-व्यवहार

27.     छः कानों में पड़ी बात खुल जाती है’ का क्या तात्पर्य है?
a) बातचीत गोपनीय नहीं रहती                
b
) बातचीत अधिक रोचक हो जाती है
c
) बातचीत सारहीन हो जाती है               
d
) बातचीत विश्वसनीय होती है

28.     रबिसन क्रूसो कितने वर्षो तक मानव मुख नहीं ददेखा था?
a)22`                      b)27                 
c)16                                    d)10

29.     निम्नलिखित में से कौन-सी शक्ति ईश्वर द्वारा दी गई वरदान स्वरूप शक्तियों में से एक मानी गई है?
a) श्रवण शक्ति b) वाक् शक्ति      
c
) दृष्टि शक्ति  d) स्पर्श शक्ति

ANSWER

1.a 2.b 3.c 4.a 5.a 6.a 7.a 8.a 9.c 10.a 11.d 12.b 13.d 14.a 15.a 16.b 17.a 18.c 19.b 20.b 21.c 22.a 23.b 24.c  25.c 26.a 27.a 28.c 29.b


BAATCHIT SHORT QUESTION

1.       अगर हम में वाकशक्ति न होती तो क्या होता?
उत्तर- अगर हम में वाकशक्ति न होती, तो पूरी दुनिया गूंगी लगती। लोग अपनी भावनाएँ व्यक्त नहीं कर पाते और सुख-दुख बांटना भी संभव नहीं होता।

2.       वेन जॉनसन और एडिशन के बातचीत पर क्या विचार हैं?
उत्तर- वेन जॉनसन के अनुसार, इंसान के गुण-दोष उसकी बातों से ही समझ आते हैं। एडिशन का मानना है कि सबसे अच्छी बातचीत दो लोगों के बीच होती है, तीन होने पर वह फीकी पड़ जाती है।

3.       'आर्ट ऑफ कन्वर्सेशन' क्या है?
उत्तर- 'आर्ट ऑफ कन्वर्सेशन' बातचीत की एक कला है, जो यूरोप में प्रचलित है। इसमें लोग इस तरह बातें करते हैं कि सुनने वाले को आनंद मिले। इसे शुद्ध कोष्टि भी कहा जाता है।

4.       बातचीत का सबसे अच्छा तरीका क्या है?
उत्तर- सबसे अच्छा तरीका आत्मवार्तालाप है। इससे इंसान अपने विचारों को नियंत्रित कर सकता है, कटुता से बच सकता है और मधुर वाणी से दुनिया को सुंदर बना सकता है।

5.       बातचीत क्यों जरूरी है?
उत्तर- बातचीत से हम अपने विचार साझा कर सकते हैं, एक-दूसरे को समझ सकते हैं और समाज में अच्छे संबंध बना सकते हैं।

6.       लेखक के अनुसार, अच्छी बातचीत कैसी होनी चाहिए?
उत्तर- अच्छी बातचीत मधुर, विनम्र और ज्ञनवर्धक होनी चाहिए। इससे दूसरों को खुशी मिलती है और संबंध मजबूत होते हैं।

7.       आत्मवार्तालाप से क्या लाभ होता है?
उत्तर- आत्मवार्तालाप से इंसान अपने विचारों पर नियंत्रण पा सकता है, खुद को समझ सकता है और क्रोध पर काबू रख सकता है।

8.  बातचीत व्याख्या

1.       हमारी भीतरी मनोवृति नए नए रंग दिखाती है | वह प्रपंचात्मक संसार का एक बड़ा भारी आईना है , जिसमें जैसी चाहो वैसी सूरत देख लेना कोई दुर्घट बात नहीं है
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ बालकृष्ण भट्ट द्वारा रचित निबंध 'बातचीत' से ली गई हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने मनुष्य के चंचल मन की विशेषता बताई है। मनुष्य का मन हमेशा बदलता रहता है, कभी प्रेम से भर जाता है तो कभी क्रोधित हो जाता है। यह मनुष्य को कभी किसी का मित्र बना देता है तो कभी शत्रु। लेखक ने मन को एक आईने की तरह बताया है, जिसमें हर व्यक्ति अपने अनुसार चीजों को देखता है। यह संसार छल-कपट और झूठ से भरा हुआ है, जिसका कारण मन की अस्थिरता है। लेखक सलाह देते हैं कि इंसान को अपने मन पर नियंत्रण रखना चाहिए, जिससे वह जीवन में शांति और संतुलन बनाए रख सके।

2.       सच है जब तक मनुष्य बोलता नहीं तब तक उसका गुण दोष नहीं होता
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ बालकृष्ण भट्ट द्वारा लिखित निबंध 'बातचीत' से ली गई हैं। इन पंक्तियों में लेखक यह समझाते हैं कि मनुष्य के गुण और दोष का पता तभी चलता है जब वह बोलता है। जब तक वह चुप रहता है, तब तक कोई नहीं जान पाता कि वह कैसा है। यदि वह शिष्ट और मधुर वाणी में बात करता है, तो लोग उसे अच्छा समझते हैं, लेकिन यदि वह कटु वाणी बोलता है, तो उसकी नकारात्मक छवि बन जाती है। इसलिए, बातचीत में संयम और शालीनता जरूरी है। सही शब्दों और अच्छे व्यवहार से ही व्यक्ति की पहचान होती है।

3.       "मनुष्य को चाहिए कि अपनी जिह्वा को काबू में रखकर मधुरता से भरी वाणी बोले..."
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ बालकृष्ण भट्ट के निबंध 'बातचीत' से ली गई हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने शिष्ट और मधुर भाषा के महत्व को समझाया है। उनका मानना है कि व्यक्ति को अपनी जिह्वा (बोलने की शक्ति) पर नियंत्रण रखना चाहिए क्योंकि कठोर वचन दूसरों को दुख पहुंचा सकते हैं। यदि कोई व्यक्ति प्रेम और मधुरता से बात करता है, तो वह दूसरों के दिलों में स्थान बना सकता है। अच्छे शब्द रिश्तों को मजबूत बनाते हैं, जबकि कटु शब्द मनुष्य को अकेला कर सकते हैं। इसलिए, अच्छी बातचीत एक कला है, जिसे हर व्यक्ति को सीखना चाहिए।

4.       "असल बातचीत सिर्फ दो व्यक्तियों में हो सकती है..."
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ बालकृष्ण भट्ट द्वारा लिखित निबंध 'बातचीत' से ली गई हैं। लेखक ने इन पंक्तियों में यह बताया है कि वास्तविक और गहन बातचीत केवल दो व्यक्तियों के बीच हो सकती है। जब दो लोग होते हैं, तो वे अपने मन की सारी बातें खुलकर कह सकते हैं, लेकिन यदि तीसरा व्यक्ति आ जाए, तो बातचीत में स्वाभाविकता और आत्मीयता कम हो जाती है। इसका कारण यह है कि अधिक लोगों की उपस्थिति में व्यक्ति संकोच करने लगता है और अपनी भावनाएँ पूरी तरह से व्यक्त नहीं कर पाता। इसलिए, सच्ची बातचीत वही होती है, जिसमें कम लोग शामिल हों और वे एक-दूसरे को समझने का प्रयास करें।

बातचीत निबंध

 
इसे तो सभी स्वीकार करेंगे कि अनेक प्रकार की शक्तियाँ जो वरदान की भाँति ईश्वर ने मनुष्य को दी हैं
, उनमें वाक्शक्ति भी एक है। यदि मनुष्य की और इंद्रियाँ अपनी-अपनी शक्तियों में अविकल रहतीं और वाक्शक्ति मनुष्यों में न होती तो हम नहीं जानते कि इस गूँगी सृष्टि का क्या हाल होता । सब लोग लुंज-पुंज से हो मानो कोने में बैठा दिए गए होते और जो कुछ सुख-दुख का अनुभव हम अपनी दूसरी-दूसरी इंद्रियों के द्वारा करते, उसे अवाक् होने के कारण, आपस में एक-दूसरे से कुछ न कह-सुन सकते । इस वाक्शक्ति के अनेक फायदों में 'स्पीच' वक्तृता और बातचीत दोनों हैं। किंतु स्पीच से बातचीत का ढंग ही निराला है। बातचीत में वक्ता को नाज-नखरा जाहिर करने का मौका नहीं दिया जाता है कि वह बड़े अंदाज से गिन-गिनकर पाँव रखता हुआ पुलपिट पर जा खड़ा हो और पुण्याहवाचन या नांदीपाठ की भाँति घड़ियों तकं साहबान मजलिस, चेयरमैन, लेडीज एंड जेंटिलमेन की बहुत सी स्तुति करे-करावे और तब किसी तरह वक्तृता का आरंभ करे। जहाँ कोई मर्म या नोक की चुटीली बांत वक्ता महाशय के मुख से निकली कि ताली-ध्वनि से कमरा गूंज उठा। इसलिए वक्ता को खामख्वाह ढूँढ़कर कोई ऐसा मौका अपनी वक्तृता में लाना ही पड़ता है जिसमें करतलध्वनि अवश्य हो ।

वहीं हमारी साधारण बातचीत का कुछ ऐसा घरेलू ढंग है कि उसमें न करतलध्वनि का कोई मौका है, न लोगों के कहकहे उड़ाने की कोई बात ही रहती है। हम दो आदमी प्रेमपूर्वक संलाप कर रहे हैं। कोई चुटीली बात आ गई, हँस पड़े। मुसकराहट से होठों का केवल फड़क उठना ही इस हँसी की अंतिम सीमा है। स्पीच का उद्देश्य सुननेवालों के मन में जोश और उत्साह पैदा कर देना है। घरेलू बातचीत मन रमाने का ढंग है। उसमें स्पीच की वह संजीदगी बेकदर हो धक्के खाती फिरती है।

जहाँ आदमी की अपनी जिंदगी मजेदार बनाने के लिए खाने, पीने, चलने, फिरने आदि की जरूरत है, वहाँ बातचीत की भी उसको अत्यंत आवश्यकता है। जो कुछ मवाद या धुआँ जमा रहता है, वह बातचीत के जरिए भाप बनकर बाहर निकल पड़ता है। चित्त हल्का और स्वच्छ हो परम आनंद में घान हो जाता है। बातचीत का भी एक खास तरह का मजा होता है। जिनको बातचीत करने की लत पड़ जाती है, वे इसके पीछे खाना-पीना भी छोड़ बैठते हैं। अपना बड़ा हर्ज कर देना उन्हें पसंद आता है, पर वे बातचीत का मजा नहीं खोना चाहते। राबिंसन क्रूसो का किस्सा बहुधा लोगों ने पढ़ा होगा जिसे 16 वर्ष तक मनुष्य-मुख देखने को भी नहीं मिला। कुत्ता, बिल्ली आदि जानवरों के बीच में रह 16 वर्ष के उपरांत उसने फ्राइडे के मुख से एक बात सुनी। यद्यपि उसने अपनी जंगली बोली में कहा था, पर उस समय रॉबिंसन को ऐसा आनंद हुआ मानो उसने नए सिरे से फिर से आदमी का चोला पाया। इससे सिद्ध होता है कि मनुष्य की वाक्शक्ति में कहाँ तक लुभा लेने की ताकत है। जिनसे केवल 'पत्र-व्यवहार' है, कभी एक बार भी साक्षात्कार नहीं हुआ, उन्हें अपने प्रेमी से बातें करने की कितनी लालसा रहती है। अपना आभ्यंतरिक भाव दूसरे पर प्रकट करना और उसका आशय आप ग्रहण कर लेना शब्दों के ही द्वारा हो सकता है। सच है, जब तक मनुष्य बोलता नहीं तब तक उसका गुण-दोष प्रकट नहीं होता । बेन जानसन का यह कहना कि बोलने से ही मनुष्य के रूप का साक्षात्कार होता है, बहुत ही उचित जान पड़ता है।

इस बातचीत की सीमा दो से लेकर वहाँ तक रखी जा सकती है, जहाँ तक उनकी जमात मीटिंग या सभा ने समझ ली जाए। एडीसन का मत है कि असल बातचीत सिर्फ दो व्यक्तियों में हो सकती है, जिसका तात्पर्य यह हुआ कि जब दो आदमी होते हैं तभी अपना दिल एक दूसरे के सामने खोलते हैं । जब तीन हुए तब वह दो की बात कोसों दूर गई। कहा भी है कि छह कानों में पड़ी बात खुल जाती है। दूसरे यह कि किसी तीसरे आदमी के आ जाते ही या तो वे दोनों अपनी बातचीत से निरस्त हो बैठेंगे या उसे निपट मूर्ख अज्ञानी समझ बनाने लगेंगे ।

जैसे गरम दूध और ठंढे पानी के दो बर्तन पास-पास साट के रखे जाएँ तो एक का असर दूसरे में पहुँच जाता है, अर्थात दूध ठंढा हो जाता है और पानी गरम, वैसे ही दो आदमी पास बैठे हों तो एक का गुप्त असर दूसरे पर पहुँच जाता है, चाहे एक दूसरे को देखें भी नहीं, तब बोलने को कौन कहे, एक के शरीर की विद्युत दूसरे में प्रवेश करने लगती है। जब पास बैठने का इतना असर होता है तब बातचीत में कितना अधिक अंसर होगा, इसे कौन न स्वीकार करेगा। अस्तु, अब इस बात को तीन आदमियों के साथ देखना चाहिए । मानो एक त्रिकोण सा बन जाता है। तीनों चित्त मानो तीन कोण हैं और तीनों की मनोवृत्ति के प्रसरण की धारा मानो उस त्रिकोण की तीन रेखाएँ हैं। गुप-चुप असर तो उन तीनों में परस्पर होता ही है। जो बातचीत तीन में की गई, वह मानो अँगूठी में नग सी जड़ जाती है। उपरांत जब चार आदमी हुए तब बेतकल्लुफी को बिलकुल स्थान नहीं रहता। खुल के बातें न होंगी। जो कुछ बातचीत की जाएगी वह 'फॉर्मेलिटी' गौरव और संजीदगी के लच्छे में सनी हुई होगी। चार से अधिक की बातचीत तो केवल राम-रमौवल कहलाएगी। उसे हम संलाप नहीं कह सकते। इस बातचीत के अनेक भेद हैं। दो बुड्ढों की बातचीत प्रायः जमाने की शिकायत पर हुआ करती है। वे बाबा आदम के समय की ऐसी दास्तान शुरू करते हैं; जिसमें चार सच तो दस झूठ । एक बार उनकी बातचीत का घोड़ा छूट जाना चाहिए, पहरों बीत जाने पर भी अंत न होगा। प्रायः अंग्रेजी राज्य, परदेश और पुराने समय की रीति-नीति का अनुमोदन और इस समय के सब भाँति लायक नौजवानों की निंदा उनकी बातचीत का मुख्य प्रकरण होगा ! पढ़े-लिखे हुए के लिए तो शेक्सपियर, मिल्टन, मिल और स्पेंसर जीभ पर नाचा करेंगे। अपनी लियाकत के नशे में चूर 'हमचुनी दीगरे नेस्त' अक्खड़पन की चर्चा छेड़ेंगे। दो हम सहेलियों की बातचीत का कुछ जायका ही निराला है। रस का समुद्र मानो उमड़ा चला आ रहा है। इसका पूरा स्वाद उन्हीं से पूछना चाहिए जिन्हें ऐसों की रस सनी बात सुनने को कभी भाग्य लड़ा है।

दो बुढ़ियों की बातचीत का मुख्य प्रकरण, बहू-बेटी वाली हुईं तो, अपनी बहुओं या बेटों का गिला शिकवा होगा । या वे बिरादराने का कोई ऐसा रमरसरा छेड़ बैठेंगी कि बात करते-करते अंत में खोढ़े दाँत निकाल लड़ने लगेंगी । लड़‌कों की बातचीत, खिलाड़ी हुए तो, अपनी-अपनी तारीफ करने के बाद वे कोई सलाह गाँठेंगे जिससे उनको अपनी शैतानी जाहिर करने का पूरा मौका मिले। स्कूल के लड़कों की बातचीत का उद्देश्य अपने उस्ताद की शिकायत या तारीफ या अपने सहपाठियों में किसी के गुन-औगुन का कथोपकथन होता है। पढ़ने में कोई लड़का तेज हुआ तो कभी अपने सामने दूसरे को कुछ न गिनेगा 1 सुस्त और बोदा हुआ तो दबी बिल्ली का सा स्कूल भर को अपना गुरु ही मानेगा। इसके अलावा बातचीत की और बहुत सी किस्में हैं। राजकाज की बात, व्यापार संबंधी बातचीत, दो मित्रों में प्रेमालाप इत्यादि । हमारे देश में अशिक्षित लोगों में बतकही होती है। लड़की लड़केवालों की ओर से एक-एक आदमी बिचवई होकर दोनों में विवाह संबंध की कुछ बातचीत करते हैं। उस दिन से बिरादरीवालों को जाहिर कर दिया जाता है कि अमुक की लड़की का अमुक के लड़के के साथ विवाह पक्का हो गया और यह रसम बड़े उत्सव के साथ की जाती है। चंडूखाने की बातचीत भी निराली होती है। निदान, बात करने के अनेक प्रकार और ढंग हैं।

योरप के लोगों में बात करने का हुनर है। 'आर्ट ऑफ कनवरसेशन' यहाँ तक बढ़ा है कि स्पीच और लेख दोनों इसे नहीं पाते। इसकी पूर्ण शोभा काव्यकला प्रवीण विद्वन्मंडली में है। ऐसे चतुराई के प्रसंग छेड़े जाते हैं कि जिन्हें सुन कान को अत्यंत सुख मिलता है। सुहृद गोष्ठी इसी का नाम है। सुहृद गोष्ठी की बातचीत की यह तारीफ है कि बात करनेवालों की लियाकत अथवा पंडिताई का अभिमान या कपट कहीं एक बात में भी प्रकट न हो, वरन् क्रम में रसाभास पैदा करनेवाले शब्दों को बरकते हुए चतुर सयाने अपनी बातचीत को सरस रखते हैं। वह रस हमारे आधुनिक शुष्क पंडित की बातचीत में, जिसे शास्त्रार्थ कहते हैं, कभी आवेगा ही नहीं। मुर्ग और बटेर की लड़ाइयों की झपटा-झपटी के समाज उनकी नीरस काँव-काँव में सरस संलाप की चर्चा ही चलाना व्यर्थ है, वरन् कपट और एक दूसरे को अपने पांडित्य के प्रकाश से बाद में परास्त करने का संघर्ष आदि रसाभास की सामग्री वहाँ बहुतायत के साथ आपको मिलेगी । घंटे भर तक काँव-काँव करते रहेंगे तो कुछ न होगा। बड़ी-बड़ी कंपनी और कारखाने आदि बड़े से बड़े काम इसी तरह पहले दो-चार दिली दोस्तों की बातचीत से शुरू किए गए। उपरांत बढ़ते-बढ़ते यहाँ तक बढ़े कि हजारों मनुष्यों की उनसे जीविका चलने लगी और साल में लाखों की आमदनी होने लगी । पच्चीस वर्ष के ऊपरवालों की बातचीत अवश्य ही कुछ न कुछ सारगर्भित होती होगी, अनुभव और दूरंदेशी से खाली न होगी और पच्चीस से नीचे की बातचीत में यद्यपि अनुभव, दूरदर्शिता और. गौरव नहीं पाया जाता, पर इसमें एक प्रकार का ऐसा दिलबहलाव और ताजगी रहती है जिसकी मिठास उससे दस गुनी चढ़ी-बढ़ी है।

BAATCHIT BIHAR BOARD CLASS  HINDI


यहाँ तक हमने बाहरी बातचीत का हाल लिखा है जिसमें दूसरे फरीक के होने की बहुत आवश्यकता है, बिना किसी दूसरे मनुष्य के हुए जो किसी तरह संभव नहीं है और जो दो ही तरहे पर हो सकता है-या तो कोई हमारे यहाँ कृपा करे या हमीं जाकर दूसरे को कृतार्थ करें। पर यह सब तो दुनियादारी है जिसमें कभी-कभी रसाभास होते देर नहीं लगती। क्योंकि जो महाशय अपने यहाँ पधारें उनकी पूरी दिलजोई न हो सकती तो शिष्टाचार में त्रुटि हुई। अगर हमीं उनके यहाँ गए तो पहले तो बिना बुलाए जाना ही अनादर का मूल है और जाने पर अपने मन माफिक बर्ताव न किया गया तो मानो दूसरे प्रकार का नया घाव हुआ। इसलिए सबसे उत्तम प्रकार बातचीत करने का हम यही समझते हैं कि हम वह शक्ति अपने में पैदा कर सकें कि अपने आप बात कर लिया करें। हमारी भीतरी मनोवृत्ति प्रतिक्षण नए-नए रंग दिखाया करती है, वह प्रपंचात्मक संसार का एक बड़ा भारी आईना है, जिसमें जैसी चाहो वैसी सूरत देख लेना कुछ दुर्घट बात नहीं है और जी एक ऐसा चमनिस्तान है जिसमें हर किस्म के बेल-बूटे खिले हुए हैं, ऐसे चमनिस्तान की सर में क्या कम दिलबहलाव है ? मित्रों का प्रेमालाप कभी इसकी सोलहवीं कला तक भी न पहुँच सका। इसी सैर का नाम ध्यान या मनोयोग या चित्त को एकाग्र करना है जिसका साधन एक-दो दिन का काम नहीं। बरसों के अभ्यास के उपरांत यदि हम थोड़ी भी अपनी मनोवृत्ति स्थिर कर अवाक् हो अपने मन के साथ बातचीत कर सकें तो मानो अहोभाग्य । एक वाक्राफ्ति मात्र के दमन से न जाने कितने प्रकार का दमन हो गया । हमारी जिह्वा कतरनी के समान सदा स्वच्छंद चला करती है, उसे यदि हमने काबू में कर लिया तो क्रोधादिक बड़े-बड़े अजेय शत्रुओं को बिना प्रयास जीत अपने वश में कर डाला। इसलिए अवाक् रह अपने बातचीत करने का यह साधन यावत् साधनों का मूल है, शक्ति परम पूज्य मंदिर है, परमार्थ का एकमात्र सोपान है।

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