हँसते हुए मेरा अकेलापन
मलयज
मलयज का परिचय
1. जन्म- 1935 मृत्यु 26 अप्रैल
1982
2. जन्म स्थान- महूई, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
3. मूलनाम- भरतजी श्रीवास्तव।
4. माता- प्रभावती और पिता- त्रिलोकी
नाथ वर्मा।
5. शिक्षा- एम. ए. (अंग्रेजी), इलाहाबाद विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश।
6. विशेष: छात्र जीवन में क्षयरोग से
ग्रसित। ऑपरेशन में एक फेफड़ा काटकर निकालना पड़ा। शेष जीवन में दुर्बल स्वास्थ्य
और बार-बार अस्वस्थता के कारण दवाओं के सहारे जीते रहे।
7. कृतियाँ- कविता : जख्म के धूल, अपने होने को अप्रकाशित करता
हुआ।
8. आलोचना : कविता से साक्षात्कार, संवाद और एकालाप।
9. सर्जनात्मक गद्य : हँसते हुए मेरा अकेलापन।
हँसते हुए मेरा अकेलापन पाठ
का सारांश
पाठक साराश " हँसते हुए मेरा अकेलापन " शीर्षक डायरी मलयज की एक
उत्कृष्ट रचना है । मलयज अत्यन्त आत्मसजग किस्म के बौद्धिक व्यक्ति थे । डायरी
लिखना मलयज के लिए जीवन जीने
के कार्य जैसा था । ये डायरी
मलयज के समय की उथल - पुथल और उनके निजी - जीवन की तकलीफों बेचैनियों के साथ एक
गहरा रिश्ता बनाते हैं । इस डायरी में एक औसत भारतीय लेखक के परिवेश को हम उसकी
समस्त जटिलताओं में देख सकते हैं । पाठ्य - पुस्तक में प्रस्तुत डायरी के अंश की
प्रथम डायरी में मलयज ने प्रकृति एवं मानव के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयास
किया है । मिलिट्री की छावनी में वृक्ष काटे जा रहे हैं । लेखक वृक्षों के एक
गिरोह में उनकी एकात्मकता का संकेत देता है । वृक्षों का चित्रण करते हुए मलयज
लिखते हैं- " वे जब बोलते हैं , तब एक भाषा
में गाते हैं , तब एक भाषा में रोते हैं तब भी एक भाषा में ... " लेखक ने जाड़े के मौसम में घने कुहरों का सजीव चित्र
अपनी डायरी में प्रस्तुत किया है । साथ ही , ऐसे ठंडे मौसम में भी कलाकार के हृदय
में आग है लेकिन उसका दिमाग ठंढा है । डायरी में लिखा है- " एक कलाकार के लिए यह निहायत जरूरी है कि उसमें ' आग '
हो और वह खुद ठंढा हो ।
" दूसरे दिन की डायरी में
लेखक ने मनुष्य के जीवन की तुलना खेती की फसलों से की है । मनुष्य का जीवन फसल के
समान बढ़ता , पकता एवं कटता दिखायी देता है । तीसरे दिन की डायरी में लेखक ने
चिट्ठी की उम्मीद में और चिट्ठी नहीं आने पर अपनी मनोदशा का वर्णन किया है ।
चिट्ठी नहीं आने पर एक अजीब - सी बेचैनी मन में आती है । चौथी डायरी में लेखक ने लेखक
बलभद्र ठाकुर नामक एक लेखक का चित्रण किया है और बताने का प्रयास किया है कि एक
लेखक कितना सरल एवं मिलनसार होता है । अपनी रचनाओं पर लेखक को गर्व होता है , उसका
सहज चित्र डायरी में प्रस्तुत है । कौसानी में कुछ दिनों तक लेखक का प्रवास बड़ा
ही आनन्ददायक रहा । दो शिक्षकों का चित्रण उनके सहज एवं सामाजिक स्वभाव को दिखाया
गया है । पाँचवीं डायरी में भी लेखक ने कौसानी के प्राकृतिक एवं शांत वातावरण का
चित्रण किया है । छठी डायरी में मलयज ने एक सेब बेचनेवाली किशोरी का चित्रण बड़ी
ही कुशलतापूर्वक किया है । किशोरी इतनी भोली थी कि सेब बेचने में उसका भोलापन
परिलक्षित होता है । सातवीं डायरी में मलयज यथार्थवादी दिखायी देते हैं । उनके
अनुसार मनुष्य यथार्थ को रचता भी है और यथार्थ में जीता भी है । उनके अनुसार रचा
हुआ यथार्थ भोगे हुए यथार्थ से अलग है । बाल - बच्चे रचे हुए यथार्थ हैं । वे
सांसारिक वस्तुओं का भोग करते हैं । मलयज ने लिखा है- " हर आदमी उस संसार को रचता है जिसमें वह जीता है और
भोगता है । आदमी के होने की शर्त यह रचता जाता , ' मोगा जाता संसार ही है । उनके
अनुसार रचने और भोगने का रिश्ता एक द्वन्द्वात्मक रिश्ता है । आठवीं डायरी में
लेखक ने शब्द एवं अर्थ के बीच निकटता का वर्णन किया है । लेखक का कहना है शब्द
अधिक होने पर अर्थ कमने लगता है और अर्थ की अधिकता में शब्दों की कमी होने लगती है
। अर्थात् शब्द अर्थ में और अर्थ शब्द में बदले चले जाते हैं । नवीं डायरी में
लेखक ने सुरक्षा पर अपना विचार व्यक्त किया है । व्यक्ति की सुरक्षा रोशनी में हो
सकती है , अंधेरे में नहीं । अंधेरे में सिर्फ छिपा जा सकता है । सुरक्षा तो
चुनौती को झेलने में ही है , बचाने में नहीं । अतः आक्रामक व्यक्ति ही अपनी
सुरक्षा कर सकता है । बचाव करने में व्यक्ति असुरिक्षत होता है । दसवीं डायरी में
लेखक ने रचना और दस्तावेज में भेद एवं दोनों में पारस्परिक संबंध की चर्चा की है ।
लेखक के अनुसार दस्तावेज रचना का कच्चा माल है । दस्तावेज रचनारूपी करेंसी के
वास्तविक मूल्य प्रदान करनेवाला मूलधन है । ग्यारहवीं डायरी में लेखक ने मन में
पैदा होनेवाले डर का वर्णन किया है । लेखक अपने को भीतर से डरा हुआ व्यक्ति मानता
है । मन , का हर तनाव पैदा करता है , संशय पैदा करता है । किसी की प्रतीक्षा की
घड़ी बीत जाने पर मन में डर पैदा होता है ।
डर कई प्रकार के होते हैं । मनुष्य जैसे- जैसे जीवनरूपी समस्याओं से घिरता जाता है
, उसके मन में डर की मात्रा भी बढ़ती जाती है । अन्तिम डायरी में लेखक ने जीवन में
तनाव के प्रभाव का वर्णन किया है । मनुष्य जीवन में संघर्षों का सामना करते समय
तनाव से भरा रहता है । इस प्रकार प्रस्तुत डायरी के अंश में मलयज ने अपने जीवन के
संघर्षों एवं दुखों की ओर इशारा करते हुए मानव जीवन में पाये जानेवाली सहज
समस्याओं का चित्रण बड़ी ही कुशलता से किया है । एक व्यक्ति को कितना खुला ,
ईमानदार और विचारशील होना चाहिए - इस भाव का सहज चित्रण लेखक ने अपनी डायरी में
प्रस्तुत किया है । व्यक्ति के क्या दायित्व हैं और अपने दायित्वों के प्रति कैसा
लगाव , कैसी सान्निध्यता होनी चाहिए ये सारे भाव प्रस्तुत डायरी में स्पष्ट रूप से
चित्रित हैं ।
हँसते हुए मेरा अकेलापन Objective Question
1.
मलय जी का जन्म कहाँ हुआ था?
a)
दिल्ली
b) अहमदाबाद
c) आजमगढ़
d) छत्तीसगढ़
2.
मलयज के पिता का नाम था।
a)
गणपति देव
b)त्रिलोकी नाथ
c) प्रभा शंकर
d) नीलकंठ
3.
मलयज के माता का नाम था।
a)
मीरा
b) प्रभावती
c)प्रभा
शंकर
d)नीलकंठ
4.
हँसते हुए मेरा अकेलापन के लेखक कौन हैं?
a)भरत
जी श्रीवास्तव (मलयज)
b)
रामधारी सिंह 'दिनकर'
c) आचार्य रामचन्द्र
शुक्ल
d) मोहन राकेश
5.
कथाकार मलयज का जन्म कब हुआ था?
a)
1935
b) 1940
c) 1936
d) 1938
6.
‘हँसते हुए मेरा
अकेलापन' किस विधा की रचना है?
a)
ललित निबन्ध
b) डायरी
c) लघु कथा
d) नाटक
7.
मलयज किस रोग से ग्रसित थे?
a)
कैंसर
b) अल्सर
c) क्षयरोग
d)लकवा
8.
डायरी में से मलयज का काव्य संग्रह कौन-सा है?
a)
जख्म पर धूल
b) तापेश्वर
c) ढपोलपंथी
d) व्यवहार बोध
9.
एक खेत में पेड़ पर किसकी कतार देखी थी?
a)
बन्दरों की
d) कौओं की
c) कबूतरों की
d) बगुलों की
10.
बनाम बलभद्र ठाकुर की एक किताब मलयज ने कहाँ देखी थी?
a)
शमशेर जी
b) धूमिल
c) गिरिजाकुमार माथुर
d) नामवर सिंह
11.
मलयज किस दौर के कवि हैं?
a)नई कविता के अंतिम दौर के
b)नई कविता के पहले दौर के
c)पुरानी कविता की अंतिम दौर के
d)इनमें से कोई नहीं
12.
मलयज मन का कुरा किसे कहते हैं?
a)बीमारी को
b)डायरी को
c)कविता को
d)टेंशन को
13.
मलयज किस कर्म के बिना मानवीयता को अधूरी मानते?
a)रचनात्मक कर्म
b)बेकार कर्म
c)अधूरा कर्म
d)इनमे से कोई नहीं
14.
हंसते हुए मेरा अकेलापन किसकी कृति है?
a)मलयज
b)रघुवीर सहाय
c)अशोक वाजपेई
d)प्रेमचंद
15.
मलयज का मूल नाम क्या था?
a)भरत जी श्रीवास्तव
b)भरत जी श्रीवास्तव ठाकुर
c)मलिक ठाकुर प्रेमचंद
d)इनमें से कोई नहीं
16.
“मैं सयंत हूं........पानी ठंडा’ किसके लिए कहा गया है?
a)लेखक ने खुद के लिए
b)लेखक ने अपने भाई के लिए
c)अपने मां के लिए
d)अपने पिता के लिए
17.
मलयज जी की सर्वोत्कृष्ट किस दिन की है?
a)3 अप्रैल 1980
b)3 मार्च 1981
c)6 मई 1982
d)इनमे से कोई नहीं
18.
लेखक के अनुसार सुरक्षा कहाँ है?
a)
घर में
b)
सड़क पर
c) सूरज की रोशनी में
d)
कहीं नहीं
19.
मलयज ने डायरी कितने वर्ष तक लिखी थी?
a)
33 वर्ष
b)
32 वर्ष
c) 34 वर्ष
d)
27 वर्ष
20.
डायरी लेखन में मलयज ने क्या बताया है?
a)
एक जीवन संघर्ष
b)
वायवी चिन्तन
c) ठहरता हुआ जंगल
d)
नित्य कई
हँसते हुए मेरा अकेलापन Question Answer
1.
डायरी क्या है?
उत्तर-
डायरी किसी साहित्यकार या व्यक्ति द्वारा लिखित के महत्वपूर्ण दैनिक अनुभवों का
ब्योरा है जिसे वह बड़ी ही सच्चाई के साथ लिखता है| डायरी से जहां हमें लेखक के
समय की उथल-पुथल का पता चलता है तो वहीं उसकी निजी जीवन की कठिनाइयों का भी पता
चलता है
2.
डायरी का लिखा जाना क्यों मुश्किल है?
उत्तर-
डायरी व्यक्ति के अन्तर्मन की सभी स्थितियों का लेखा-जोखा होती है , जैसे -
सद्-असद् दोनों होती है । उसे लिखना और इस रूप में लिखना कि पाठक को उनसे रस मिले
सहज सम्भव नहीं है वहाँ भाव चिन्तन और शब्द का मेल बैठाना थोड़ा कठिन रहता है । यह
तटस्थता भी आवश्यक है उसका कागज पर उतारना भी महत्वपूर्ण है यह स्थिति भी सहज नहीं
है।
3.
किस तारीख की डायरी आपको सबसे प्रभावी लगी
और क्यों?
उत्तर-
9 दिसम्बर , 1978 को डायरी के लेखन प्रक्रिया पर प्रकाश डाला गया है । वह यह
स्वीकारता है कि हर लेखन रचना नहीं होता कितनी बेबाक आत्मस्वीकृति है । वह मानता
है , सब भोगा हुआ अंश भी रचना नहीं होता यदि वह लेखन - लेखक को भी साथ ले चले तभी
रचना बनती है । यह तो मानता है कि हर लेखन एक दस्तावेज तो होता है और दस्तावेज में
महत्वपूर्ण रचनाएँ फूटती हैं साथ ही यह दस्तावेज लेखक के भोगे अनुभव और जीवन रूपी
ऐसा कोई वास्तविक मूल्य प्रदान करने वाला भी होता यही मूल धन है वही मिट्टी है
जिसमें बीज पनपता है । यह चिन्तन बड़ा स्पष्ट है । प्रेरणादायक भी और व्यावहारिक
भी है एक लेखक की यथार्थ स्थिति का सही आंकलन है। अतः यह अंश हमको अधिक रुचिकर
प्रतीत हुआ है ।
4.
डायरी के इन अंशों में मलयज की गहरी
संवेदना घुली हुई है । इसे प्रमाणित करें ।
उत्तर
- मलयज का व्यक्तित्व ही संवेदनशील है , अत : उसका लेखक संवेदनशीलता से कैसे पीछे
रह सकता है । डायरी में उनकी संवेदनशीलता पग - पग पर सामने आयी है । ग्यारह अदद
देवदार एकादस रुद्र , वे व्यर्थ ही सोचते हैं कि वे दस क्यों नहीं हुए बारह क्यों
नहीं हुए , एक खेत की मेड़ पर बैठी कौओं की कतार उमर की फसल पक कर तैयार , सपनों
का सुहाना रंग अब जर्द पड़ चला है , कल शाम के रोज वही इसी समय एक बहुत प्यारी -
सी गंध उड़कर मेरे बारजे तक आती है इतनी कोमल और मिटास सी लिए हुए कि आँखें खुद व
खुद क्षणों के लिए बन्द हो जाती हैं । सेब बेचती लड़की आदि चित्र भावुकतापूर्ण एवं
संवेदनशील ही हैं ।
5.
व्याख्या करे-
(क) आदमी यथार्थ को जीता ही
नहीं , यथार्थ को रचता भी है ।
( ख) इस संसार
में संपृक्ति एक रचनात्मक कर्म है । इस कर्म के बिना मानवीयता अधूरी है ।
उत्तर- (क) प्रस्तुत पंक्तियाँ मलयज की डायरी के 10 मई , 1978 अंश से उद्धृत हैं ।
यहाँ यह स्पष्ट है कि यथार्थ को जीना ही पड़ता है । उसमें पलायन सम्भव ही नहीं है
उसका यथार्थ कैसा भी हो उसको जीना ही पड़ता है । यह भी एक यथार्थ है जीवन ही महा
संघर्ष है । बिना संघर्ष व्यक्ति का जीना ही सम्भव नहीं है । यह भी एक महत्वपूर्ण
तथ्य है व्यक्ति यथार्थ का भोग करता है और यथार्थ का सृजन भी करता है । साफ है
संघर्ष , संघर्षों को भी जन्म देता है । यही जीवन की गति है और यह भी माना जाता है
गति ही जीवन है , जड़ता ही मृत्यु है , यही है आदमी का यथार्थ में जीना । आदमी
यथार्थ का भोग करता है , वही अपने यथार्थ से ऊब जाता भी है और उसका एक भाग दूसरे
को भी दे देता है । यह क्रम चलता रहता है । तभी यह माना गया है यथार्थ की रचना
सामाजिक जीवन की जड़ता तोड़ने का एक सफल प्रयास है ।
( ख ) यह पंक्ति मलयज के 10 मई , 1978 की डायरी से उद्धृत है । मानव संसार से
जुड़ा है , तभी तो सृष्टि गतिशील है वह सृष्टि का भोग भी करता है और उसकी रचना भी
करता है , यही गतिशीलता है । यह भी सत्य है कि मानव अपने संसार का निर्माता स्वयं
ही है । उसका चित्त संसार को भोगता भी है और उसमें जीता भी है । यदि वह संसार से
विमुख हो जाय उसकी संपृक्तता तोड़ दे तो फिर संसार उजड़ ही जायेगा । कर्महीन संसार
श्मशान बन जायेगा । मरु प्रदेश बन जायेगा । अत : संसार में संपृक्ति प्राणी मात्र
का धर्म और विधाता के विधान का पालन है । कर्म का भोग , भोग का कर्म यही जड़ चेतन
का आनन्द है ।
6.
'धरती का क्षण' से क्या आशय है ?
उत्तर-
लेखक जब कभी डायरी लिखते समय कविता के मूड में आ जाते हैं तो शब्द और अर्थ के बीच
कोई दूरी नहीं रह जाती हैं । शब्द अर्थ में और अर्थ शब्द में परिवर्तित हो जाते
हैं । जब शब्द और अर्थ साथ नहीं होते , उस समय आकाश होता है । इस आकाश में रचनाएँ
बिजली रूपी फूल की तरह खिल जाती हैं । किन्तु जब अर्थ और शब्द एक साथ होते हैं तो
वह धरती का क्षण होता है । उस समय रचनाएँ जड़ पा लेती हैं ।
7.
रचे हुए यथार्थ और भोगे हुए यथार्थ में
क्या सम्बन्ध है?
उत्तर
- हमें जीवित रहना है , गतिशील रहना है , उसके लिए हम जो भी सृजन करते , वही रचा
हुआ यथार्थ है । जो कुछ किसी अन्य के द्वारा रचा गया है और आज हम उसका उपभोग कर
रहे हैं , भोगा हुआ यथार्थ संसार का अर्थ है - यथार्थ का भोग करना और नया यथार्थ
सृजन करना हम जो भी यथार्थ सृजन करते हैं वह दूसरे भी भोगते हैं या तो हम उन्हें
वह अंश स्वयं दे देते हैं या वह अपने प्रयासों से वह अंश पा लेते हैं अंश फिर
भोगते हैं । रचना व्यक्ति का धर्म है रचना का स्थल समाज ही है , समाज से बाहर जाकर
जो रचा जाता है , वह दर्शन कहलाता है । समाज में रहकर जो रचा जाता है , वह जीवन
यथार्थ कहलाता है । उसकी रचना का आधार कर्म होता है । आदमी वही है वह जो रचता है
और भोगता है कर्म करेगा कुछ रचा जायेगा और जो रचा जायेगा , उसका भोग भी होगा ।
कर्म का भोग , भोग का कर्म , यही जड़ चेतन का आनन्द । कौन - सा यथार्थ महत्वपूर्ण
है यह सोचना व्यर्थ है दोनों ही अन्योन्याश्रित हैं । सर्जना फिर भोग , बिना
सर्जना भोग काहे का ?
8.
लेखक के अनुसार सुरक्षा कहाँ है? वह डायरी
को किस रूप में देखना चाहता है?
उत्तर-
सुरक्षा डायरी में नहीं है , वहाँ मात्र पलायन और पलायन कभी भी सुरक्षा का आधार
नहीं बन सकता । सुरक्षा अंधेरे में नहीं मिलती , वहाँ दुबका जा सकता है । छुपा जा
सकता है । जहाँ आपका दिल बराबर धड़कता रहे , धुक - धुकी चाल रहेगी । यदि सुरक्षा
पानी है , मैदान में कई आदमी समाज के खुले प्रकाश में आइये और असुरक्षा से भिड़
जाइये । संघर्ष पर डट जाइये । सुरक्षा पलायन में नहीं संघर्ष में है , चुनौती
स्वीकार करके मुकाबला करने में है अपने को झोंक देने में है बचकर खड़े रहने में भी
नहीं है । डायरी लेखन किस प्रकार सुरक्षित हो सकता है , वहाँ हम भोगा हुआ यथार्थ
लिख देते हैं । क्यों किया ? क्या किया ? इसका वहाँ उल्लेख नहीं होता । कर्त्तव्य
और अकर्त्तव्य का निर्णय भी नहीं होता । वहाँ लाइनें लिखी और छुट्टी पाली । यह
पलायन है कायरता है और यह व्यक्ति के लिए एक सुखद स्थिति नहीं है । यहाँ मात्र एक
प्रकार का आवरण डालना है अपनी कमजोरियों पर अपनी गलतियों पर अत : डायरी लेखन अपने
को बचाने का सिद्धान्त मात्र है ।
9.
डायरी के इन अंशों से लेखक के जिस ' मूड '
का अनुभव आपको होता है , उसका परिचय अपने शब्दों में दीजिए ।
उत्तर-
यदि इसे दो शब्द में कहा जाय तो यह कह सकते हैं कि अकेलेपन में ऊब महत्वपूर्ण है ।
इसके साथ संलग्न है जीवन की कई स्थितियाँ फड़फड़ाना आखिर क्यों ? यह भी अब उसी
निराशा का ही प्रतिफल है । वह बोरियत ' भी महसूस करता है । भयातुर भी है , उसके मन
में एक बेचैनी है , क्यों है वह स्वयं भी स्पष्ट नहीं कर पा रहा है । ऐसा लगता है
उसका सब कुछ चुक गया है मात्र वह दिन काट रहा है , वह इतना उदासीन हो गया है कि
उसकी अब किसी बड़े सपने के भंग होने की पीड़ा नहीं सताती ।
10.
अर्थ स्पष्ट करें-
एक
कलाकार के लिए यह निहायत जरूरी है कि उसमें 'आग' हो और वह खुद 'ठण्डा' हो। उत्तर -
लेखक मलयज ने अपनी डायरी में एक कलाकार की मनोदशा का चित्रण प्रस्तुत पंक्ति में
की है लेखक का कहना है कि एक कलाकार के लिए जरूरी है उसके दिल में आग हो उसमें कुछ
कर जाने की क्षमता हो साथी एक कलाकार दिमाग से शांत प्राकृतिक का होता है एक
कलाकार के लिए ठंडे दिमाग का व्यतीत होना अनिवार्य है एक कलाकार का सही चित्रण
लेखक ने जहां किया है|
11.
चित्रकारी की किताब में लेखक
ने कौन सा रंग सिद्धांत पढ़ा था?
उत्तर- चित्रकारी की किताब में लेखक ने यह रंग सिद्धांत
पढ़ा था कि शोख और भड़कीले रंग संवेदनाओं
को बड़ी तेजी से उभरते हैं, उन्हें बड़ी तेजी से चरम बिंदु की ओर ले जाते हैं और
उतना ही तेजी से उन्हें ढाल की ओर खींचते हैं|
12.
11 जून , 1978 की डायरी से शब्द और अर्थ के
सम्बन्ध पर क्या प्रकाश पड़ता है? अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-
शब्द और उनके अर्थ किसी भी रचना के मापदंड हैं| यदि शब्द अलग हो उनके भाव कुछ और
तो यह लेखक पांडित्य को दर्शाता है, परंतु सामान्य पाठक लेखक की बात को नहीं समझ
पाता है| डायरी में चुकी लेखक अपने यथार्थ की बात लिखता है इसीलिए शब्दों और अर्थों में तटस्थता कम रहती है, इस कारण
डायरी लिखना कठिन भी है| यदि अर्थ शब्द के साथ चलते हैं तब रचना सामान्य जन की
होती है हालांकि उसका विस्तार सीमित होता है जो रचना की उत्पत्ति का अड्डी श्रोत
है| यदि अर्थ और शब्द साथ साथ नहीं चलते हैं तो रचना एक उन्मुक्त आकाश की भांति हो
जाती है जिनमें पाठक उसे अपनी कल्पनाओं के अनुसार समझता है|
13.
रचना और दस्तावेज में क्या फर्क है? लेखक
दस्तावेज को रचना के लिए कैसे जरूरी बताता है?
उत्तर
- दस्तावेज एक विवरण है रचना एक विवरण की व्याख्या है उसकी रचनात्मक प्रस्तुति है
। यह भी कहा जा सकता है कि दस्तावेज रचना हेतु कच्चा माल की घटनाएँ परिस्थितियाँ
भाव - विचार दस्तावेज के ही अंग हैं और रचना का आधार भी हैं । दस्तावेज के अभाव
में रचना की सुघड़ता ही नहीं है अत : रचना का आधार दस्तावेज ही है । रचना का एक
रूप है , एक प्रस्तुति है जिसका आधार दस्तावेज ही है । वह हमारे भीतर की आन्तरिकता
की वाणी है , जिसको सहृदय समझकर रसमग्न हो उठता है दस्तावेज एक रूखी रोटी है उस पर
घी चुपड़कर और दूध में मलकर ही रचना बनती है ।
14.
लेखक अपने किस डर की बात कहता है? इस डर की
खासियत क्या है ? अपने शब्दों में लिखिए ।
उत्तर-
लेखक ने 25 जुलाई , 1981 को डायरी में डर की चिन्ता जतायी है । यह पहला डर है बुरी
- बुरी बीमारियों का डर , इसके साथ ही उसकी आर्थिक स्थिति का डर भी समाया हुआ है ।
जब घर का कोई व्यक्ति रोगग्रस्त होता है उसको डर सताता है , कहीं दूसरी भयंकर
बीमारी लग गयी तो क्या कर सकेगा ? यह डर उसके तनाव का भी कारण बन जाता है । बाहर
गया व्यक्ति समय से नहीं लौटता तो नाना प्रकार की आशंकाएँ उभर आती हैं पर जब बाहर
वाला आदमी मुकम्मिल लौट आता है तो नसों का तनाव दिल की धड़कनों के साथ छूट जाता है
। पार्क पर खेल रहे बच्चे अंधेरा घिर आने पर सहसा जब वहाँ नहीं दिखते एक डर सताता
है कहाँ गए ? उस अकुलाहट का उत्तर न पाकर डर बढ़ता जाता है । ये डर स्वाभाविक हैं
एक आर्थिक दृष्टि से कमजोर व्यक्ति के सामने बीमारी एक पहाड़ है जिसको हटाना सहज
सम्भव नहीं है । बाहर गये परिजन की चिन्ता समाज के अपराधी मिजाज के कारण है ।
बच्चों का गायब होना , उसकी मन की कमजोरी का प्रतीक है । निःसन्देह यहाँ डायरी में
गहरी व्यंजना पिरोकर लेखक ने एक महत्वपूर्ण कार्य किया है

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