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प्रगति और समाज नामवर सिंह || Bihar Board Class 12th Hindi

 

प्रगति और समाज
नामवर सिंह

नामवर सिंह का परिचय

1.    जन्‍म- 28 जूलाई 1927

2.    जन्‍म-स्‍थान : जीअनपुर, वाराणसी, उत्तर प्रदेश।

3.    माता- वागेश्‍वरी देवी, पिता- नागर सिंह (शिक्षक)

4.    शिक्षा- प्राथमिक शिक्षा- उत्तर प्रदेश के आवाजापुर और कमालपुर गाँवों में, हीवेट क्षत्रिय स्‍कूल, बनारस से हाई स्‍कूल, उदय प्रताप कॉलेज बनारस से इंटर, बी.ए. और एम.ए. बनारस हिन्‍दु विश्‍वविद्यालय से किया।

5.    सम्‍मान- 1971 में कविता के नए प्रतिमानपर साहित्‍य अकादमी पुरस्‍कार।

6.    कृतियाँ- दूसरी परंपरा की खोज, वाद विवाद संवाद, कहना न होगा, पृथ्‍वीराज रासो की भाषा, इतिहास और आलोचना, कविता के नए प्रतिमान।

प्रगति और समाज पाठ का सारांश 

प्रगीत और समाज एक आलोचनात्मक निबन्ध है जो निबंधों की पुस्तक वाद-विवाद संवाद से लिया गया है । हिन्दी साहित्य में हजारों वर्षों से काव्य सरिता प्रवाहित है । उसके रूप बदलते रहे हैं और ' प्रगीत ' नामधारी एक धार भी उसी गीतिकाव्य की निरन्तरता का ही प्रतिफल है । यहाँ उसी ' प्रगीत ' की परख की गयी है साथ ही उसको आज की सामयिक आवश्यकता के रूप में भी परखा गया है । ' प्रगीत ' की सामाजिक साहित्यिकता क्या है , कैसी है , साथ ही हमारी साहित्यिक परम्परा में उसकी अहमियत क्या है - उसकी भी पड़ताल की गयी है । प्रगीतात्मकता का दूसरा उन्मेष बीसवीं सदी में रोमांटिक उत्थान के साथ हुआ जिसका सम्बन्ध भारत के राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष से भी रहा है । यह प्रगीतात्मकता शक्ति काव्य है ।

प्रगति और समाज Objective Question

1.      प्रगीत और समाज नामक निबन्ध किसकी रचना है?
a) नामवर सिंह
b) डॉ. नगेन्द्र
c
) अज्ञेय
d) डॉ. रामकुमार वर्मा

2.      नामवर सिंह का जन्म कहाँ हुआ था?
a) जीअनपुर
b) सोहनपुर
c
) फाजिलपुर
d) बरहीपुर

3.      नामवर सिंह का जन्म कब हुआ था?
a) 1931
b) 1956
c
) 1927
d) 1953

4.      कविता के नए प्रतिमान' पर डॉ. नामवर सिंह को साहित्य अकादमी पुरस्कार कब प्राप्त हुआ था?
a) 1971
b) 1972
c) 1973
d) 1960

5.      नामवर सिंह के ललित निबन्ध का क्या नाम है?
a) बकलमखुद
b) मश्क
c
) जंगल और भेड़िया
d) परमात्मा का कुत्ता

6.      नयी कहानी नामक रचना किसकी है?
a) मलयज
b) धूमकेतु
c
) नामवर सिंह
d) धूमिल

7.      नामवर सिंह के गुरु कौन थे?
a) डॉ . नगेन्द्र
b) हजारी प्रसाद द्विवेदी
c) डॉ . रामकुमार वर्मा
d) बचनेश त्रिपाठी

8.      नामवर सिंह किस पत्रिका के संपादक थे?
a) आलोचना
b) समन्वय
c) गंगा
d) माधुरी

9.      सूर सागर' क्या है?
a) प्रबंध काव्य
b) गीति काव्य
c
) चंपू काव्य
d) खंड काव्य

10.  कामायनी किनकी महाकृति है?
a) बच्चन
b) श्यामनारायण पाण्डेय
c
) नागार्जुन
d) जयशंकर प्रसाद

11.  नामवर सिंह द्वारा लिखित 'प्रगीत और समाज क्या है?
a) आलोचना
b) निबंध
c) एकांकी
d) आत्मकथा

12.  राम की शक्तिपूजा  किनका अख्यानक काव्य है?
a) मोहनलाल महतो 'वियोगी'
b) दिनकर
c
) बच्चन
d) निराला

 

प्रगति और समाज Question Answer

 

1.      आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के काव्य-आदर्श क्या थे? पाठ के आधार पर स्पष्ट करें|
उत्तर- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के काव्यादर्श प्रबन्धात्मक थे , कारण यह है कि प्रबन्ध काव्य में ही मानव - जीवन का एक पूर्ण दृश्य समाहित हो सकता है सूरसागर ' पर भी वे इसी कारण मोहित थे । वह ' महाकाव्य ' की श्रेणी में आता है । आधुनिक कविता से उन्हें शिकायत थी । पहली यह थी कि ' कला कला के लिए ' के आधार पर यूरोप में जो प्रगीत मुक्तकों का प्रचलन हुआ , उसका आधार लेकर उनकी हमारे यहाँ भी इनकी रचना हुई , साथ ही नितान्त व्यक्तिगत रहे , यहाँ समष्टि चिन्तन था समष्टि कल्याण को खोजना बालू में नाव चलाना ही है यह भी एक स्थिति आ गयी कि अब लम्बी कविता पढ़ने का फैशन ही चला गया क्योंकि अब फुर्सत किसको थी , विशुद्ध काव्य के नाम पर जो लिखा गया वह छोटे - छोटे मुक्तकों में ही समा गया , वहाँ जीवन रस था ही नहीं पर जब शेरसिंह का शस्त्र समर्पण ' ( प्रसाद ) प्रलय की छाया तथा कामायनी ( प्रसाद ) तथा निराला की ' राम की शक्ति पूजा ' तथा ' तुलसीदास जैसे आख्यानक ' सामने आये तो शुक्ल जी ने सन्तोष व्यक्त किया ।

2.      कला-कला के लिये सिद्धान्त क्या है?
उत्तर – कला-कला के लिए सिद्धांत का अर्थ है कि कला लोगों में कलात्मक का भाव उत्पन्न करने के लिए है| इसके द्वारा रस एवं माधुर्य की अनुभूति होती है| इसलिए प्रगीत मुक्तको की रचना का प्रचलन बढ़ा है|

3.      प्रगीत को आप किस रूप में परिभाषित करेंगे ? इसके बारे में क्या धारणा प्रचलित रही है?
उत्तर- पाश्चात्य साहित्य की लिरिक पोइट्री के लिए हिन्दी में गीतिकाव्य शब्द का प्रयोग हुआ , पर बाद में उसके लिये गीतिकाव्य , प्रगीतकाव्य अथवा प्रगीति मुक्तक शब्द भी प्रचलन में आ गया । प्रबन्ध और मुक्तक में जो अन्तर है , वही प्रगीत का भी रूप देखा जा सकता है । प्रबन्ध काव्य में यथार्थ , आदर्श इतिहास अथवा कल्पना का समावेश होता है , एक पूर्णता रहती है , पात्रों का अपना - अपना व्यक्तित्व होता है , पर प्रगीत में निर्बाध - प्रत्यक्ष व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति होती है यहाँ पर प्रत्यक्ष संकोच , कुण्ठारहित निजी व्यक्तित्व तथा उच्छवासित भाव तरंगों को ही वाणी प्रदान की जाती है अत : यहाँ सहज तरलता , अबाध मुक्तता और प्रत्यक्षानुभूति की ध्वनि दिखायी पड़ती है । वैयक्तिकता तो गीतिकाव्य का आधार ही है । गीतिकाव्य वही काव्य है जहाँ कवि की वैयक्तिक भावनाएँ , अनुभूतियाँ उसके अनुरूप लयात्मक अभिव्यक्ति पा जाती हैं , उसको क्षण की वाणी भी कहा जाता है जो क्षणपूर्ण और समग्र होते हैं और वे क्षण ही समग्र जीवन भी प्रतीत होते हैं । जूही की कली ' उसी श्रेणी की रचना है जो पूरी तरह आत्मपरक है । यह भी माना जा सकता है कि प्रगीत काव्य वस्तुगत यथार्थ अपनी चरम आत्मपरकता का रूप लेकर ही उभरता है । यह भी कहा जाता है प्रगीत काव्य में वस्तुगत यथार्थ अपनी चरम आत्मपरकता के रूप में ही व्यक्त होता है , पर इसके विपरीत प्रसाद - निराला की लम्बी कविताओं में यह भाव सामाजिक रूप में भी व्यक्त हुआ है , पर यह मान्यता तो है - प्रगीत काव्य न तो सामाजिक यथार्थ की अभिव्यक्ति के लिये पर्याप्त समझे जाते हैं न उनसे उसकी आशा की जा सकती है- कारण वे नितान्त वैयक्तिक अनुभूतियों की अभिव्यक्ति मात्र ही मानी जाती है । इतना होने पर भी मुक्तिबोध निराला और प्रसाद की कतिपय बड़ी कविताएँ इस धारणा के विपरीत खड़ी होती हैं ।

4.      वस्तुपरक नाट्यधर्मी कविताओं से क्या तात्पर्य है? आत्मपरक प्रतीक और नाट्यधर्मी कविताओं की यथार्थ - व्यंजना में क्या अन्तर है?
उत्तर- वस्तुपरक नाट्यधर्मी कविताओं के जीवन में समस्त चित्र उभर आते हैं । यद्यपि मुक्तिबोध की लम्बी कविताएँ वस्तुपरक ही मानी जा सकती हैं पर वे भी उनके आत्मसंघर्ष से दूर नहीं हैं । ये कविताएँ अपने रचना कौशल से प्रगीत ही हैं , यह बात अलग है कि किसी में तो नाटकीय रूप के बावजूद काव्य भूमि प्रगीतात्मक ही है , कहीं नाटकीय एकालाप भी दिख जाता है , तो कहीं पूर्णत : शुद्ध प्रगीत भी झलकता है । उनको सहर्ष स्वीकारा है तथा मैं तुम लोगों से दूर हूँ मुक्तिबोध ने इनके बारे में स्वयं भी कहा है - उनमें कथा केवल आभास है , नाटकीयता केवल मरीचिका है वह विशुद्ध आत्मपरक काव्य है । जहाँ नाटक नाटकीयता है वहाँ भी कविता के भीतर की सारी नाटकीयता वस्तुत : भावों की है , जहाँ नाटकीयता है वहाँ वस्तुतः भावों की गतिमयता है कारण वहाँ जीवन यथार्थ मात्र भाव रूप में ही सामने आया है अथवा बिम्ब या विचार बनकर अत : यह माना जा सकता है कि आत्मपरक्ताकता अथवा भावमयता किसी कवि की सीमा नहीं बल्कि शक्ति है जो उसकी प्रत्येक कविता में गति प्रदान करती है , ऊर्जा देती है|
आत्मपरक प्रगीत भी नाट्यधर्मी लम्बी कविताओं के समान हैं , यथार्थ की अभिव्यक्ति करते हैं , फिर भी अन्तर अवश्य है , यहाँ वस्तुगत यथार्थ अन्तर्जगत उस मात्रा में घुला होता है जितनी उस यथार्थ की ऐन्द्रिक उबुद्धता के लिये महत्व है । अत : यह स्पष्ट है कि किसी प्रगीतात्मक कविता में वस्तुगत यथार्थ अपनी चरम आत्मपरकतों के रूप में ही व्यक्त है ।

5.      हिन्दी कविता के इतिहास में प्रगीतों का क्या स्थान है? सोदाहरण स्पष्ट करें।
उत्तर- प्रगीत की जो परिभाषा दी गयी है । लिरिक के आधार पर गढ़ी गयी है जिनमें सीधे-सीधे सामाजिकता न होकर मात्र वैयक्तिकता और आत्मपरकता ही रहती है । इन्हें गीत शैली का नव्यतम विकास माना जाता है यदि इन आधुनिक प्रगीत का ही इतिहास टटोलना है तो ये मात्र आधुनिक युग तक ही सीमित नहीं है । विद्यापति , तुलसी , सूर आदि कवियों के काव्य में प्रगीत के तत्व पाये जाते हैं । मीरा , रसखान के प्रगीत भी कम सरस नहीं है । यह नव्य प्रगीत , जिनकी गीतिकाव्य शैली के अन्तर्गत भी लिया जा सकता है , पर न तो इनमें सामाजिक यथार्थ की झलक मिलती है और न उनसे इनकी अपेक्षा ही की जा सकती है । उनमें मात्र नितान्त वैयक्तिकता ही झलकती है और आत्मपरक अनुभूति भी है । छायावादी काल में प्रगीत ने अपना रूप थोड़ा बदला प्रसाद की ‘शेरसिंह का शस्त्र समर्पण’, ‘पेशोला की प्रतिध्वनि’, ‘प्रलय की छाया’ तथा ‘कामायनी’ जैसी कविताएँ तथा राम की शक्ति पूजा तथा तुलसीदास ' ( निराला ) तो आख्यानक काव्य हैं , जिनके आधार पर प्रगीत काव्य में एक नया रूप मिला है । यह रूप आगे भी बढ़ा और मुक्तिबोध नागार्जुन , शमशेर बहादुरसिंह की रचनाएँ इस प्रगीत को एक नया रूप प्रदान करती दिखायी देती हैं ।

6.    आधुनिक प्रगीत काव्य किन अर्थों में भक्ति काव्य से भिन्न एवं गुप्तजी आदि के प्रबन्ध काव्य से विशिष्ट है ? क्या आप आलोचक से सहमत हैं ? अपने विचार दें ।
उत्तर- भक्तिकाव्य प्रायः वर्णनात्मक काव्य है जिसकी सबसे बड़ी विशेषता है उसमें जीवन के नाना पक्षों का चित्रण । आधुनिक प्रगीत काव्य में भी प्रबन्ध काव्य की भाँति जीवन के सार चित्र खींचे गये हैं । प्रसाद , मुक्तिबोध , निराला , नागार्जुन , शमशेर आदि को लम्बी कविताएँ यथा कामायनी , आँसू , राम की शक्ति पूजा , तुलसीदास , मुक्तिबोध का ब्रह्म राक्षस , पेशोला की प्रतिध्वनि , नागार्जुन के अकाल और उसके बाद जैसी कविताएँ जिसमें जीवन के विविध चित्र कम महत्वपूर्ण नहीं हैं , यही कारण है आज के प्रगीत का स्वर सूक्ष्म है और निराला भी है ।

7.    हिन्दी की आधुनिक कविता की क्या विशेषताएँ आलोचक ने बतायी हैं ?
उत्तर- आज के हिन्दी काव्य में नयी प्रगीतात्मकता का समावेश हो उठा है , जिसमें कवि का आत्मसंघर्ष तो है ही , सामाजिक यथार्थ भी ओझल नहीं हुआ है । आज का कवि न तो अपने को छिपाना चाहता है और न समाज को नंगा करने में संकोच करता है । उसके अन्दर किसी असंदिग्ध विश्व दृष्टि का मजबूत स्केच गाड़ने की जिद्द है और न बाहर की व्यवस्था को एक विराट पहाड़ के रूप में आँकने की हवस । अन्दर का सूक्ष्मतम और सूक्ष्मतर सब बाहर है बाहर का एक नन्हा कण भी सब सामने है - हर प्रकार की स्थिति , कथन , घटना बड़ी शान्ति से शब्दों में पिरो दी जाती है उसका और समाज का रिश्ता एक नये कोण से देखा जा सकता । यहाँ जो भी दिखता है , वही नव प्रगीतात्मकता है । है ।

 

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