जूठन
ओमप्रकाश
वाल्मीकि
ओमप्रकाश
वाल्मीकि का परिचय
1.
जन्म- 30
जून 1950
2.
जन्म स्थान- बरला मुजफरनगर उत्तरप्रदेश
3.
माता-पिता – मकुंदी देवी और छोटनलाल
4.
शिक्षा- अक्षरज्ञान का प्रारम्भ
मास्टर सेवक राम मसीही के खुले, बिना कमरे बिना
टाट-चटाईवाले स्कूल से |
5.
उसके बाद बेसिक प्राथमिक स्कूल से दाखिला |
6.
11वीं की परीक्षा बरला
इंटर कॉलेज, बरला से उत्तीर्ण । लेकिन 12वीं
की पढ़ाई में अनुतीर्ण।
जूठन पाठ का सारांश
ओमप्रकाश वाल्मीकि जब बालक थे तो उनके स्कूल में
हेडमास्टर कालीराम उनसे पढ़ने के बदले झाड़ू लगवाते हैं| नाम भी इस तरह से हेड
मास्टर पूछता था कि कोई बाघ गरज रहा हो| दो दिन तक झाड़ू लगवाने के बाद तीसरे दिन उसके पिता देख लेते
हैं । लड़का फफक कर रो उठता है और पिता से सारी बात बताते हैं । पिताजी मास्टर पर
गुस्साते हैं । ओमप्रकाश वाल्मीकि बताते हैं कि उनकी माँ मेहनत - मजदूरी साथ आठ-दस
तगाओं के घर में साफ-सफाई करती थी और माँ के इस काम में उनकी बड़ी बहन, बड़ी भाभी
तथा जसवीर और जेनेसर दोनों भाई माँ का हाथ बँटाते थे । बड़ा भाई सुखवीर तगाओं के
यहाँ वार्षिक नौकर की तरह काम करता था । इन सब कामों के बदले मिलता था दो जानवर ,
पीछे फसल तैयार होने के समय पाँच सेर अनाज और दोपहर के समय एक बची - खुची रोटी जो
रोटी खासतौर पर चूहड़ों को देने के लिए आटे - भूसी मिलाकर बनाई जाती थी । कभी -
कभी जूठन भी भंगन की कटोरे में डाल दी जाती थी । दिन - रात मर - खप कर भी हमारे
पसीने की कीमत मात्र जूठन फिर भी किसी को कोई शिकायत नहीं , कोई शर्मिंदगी नहीं ,
पश्चाताप नहीं । यह कितना क्रूर समाज है जिसमें श्रम का मोल नहीं बल्कि निर्धनता
को बरकरार रखने का एक षड्यंत्र ही था सब । ओमप्रकाश के घर की आर्थिक स्थिति इतनी
कमजोर थी कि एक - एक पैसे के लिए प्रत्येक परिवार के सदस्य को खटना पड़ता था ।
यहाँ तक कि लेखक को भी मरे हुए पशुओं के खाल उतारने जाना पड़ता था । यह समाज की
वर्ण - व्यवस्था एवं मनुष्य के द्वारा मनुष्य का किया गया शोषण का ही परिणाम है कि
एक ओर व्यक्ति के पास धन की कोई कमी नहीं तो दूसरी ओर हजारों - हजार को दो जून की
रोटी के लिए निकृष्ट कार्य करने पड़ते हैं । भोजन की कमी और मन की लालसा को पूरी
करने के लिए जूठन भी चाटनी पड़ती है । लेखक को एक बात का बहुत गहरा असर होता है
उसकी भाभी द्वारा कहा गया कथन कि " इनसे ये न कराओ ... भूखे रह लेंगे इन्हें इस गंदगी
में न घसीटो ।
" ये
शब्द लेखक को उस गंदगी से बाहर निकाल लाते भाभी के कहे ये शब्द आज भी लेखक के हृदय
में रोशनी बन कर चमकते हैं । क्योंकि उस दिन लेखक , उनकी भाभी और माँ के साथ
सम्पूर्ण परिवार पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि धीरे - धीरे किन्तु
दृढ़ संकल्प से पढ़ाई में ध्यान लगाता है और हिन्दी में स्नातकोत्तर करने के
पश्चात् अनेक सम्मान जैसे डॉ . अम्बेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार , परिवेश सम्मान ,
जयश्री सम्मान , कथाक्रम सम्मान से विभूषित होकर सरकार के आर्डिनेंस फैक्ट्री में
अधिकारी पद को भी विभूषित किया । इसके साथ ही , इन्होंने आत्मकथा , कहानी संग्रह ,
कविता संग्रह , आलोचना आदि पर अनेक रचनाएँ भी लिखीं । महाराष्ट्र में मेघदूत नामक
नाट्य संस्था स्थापित कर उसके माध्यम से इन्होंने अनेक अभिनय और मंचन का निर्देशन
भी किया । इस प्रकार लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि ने एक चूहड़ ( दलित ) के घर में जन्म
लेकर जीवन में सफलता के उच्च सोपान तक पहुँच कर यह सिद्ध कर दिया कि जहाँ चाह है ,
वहाँ सह ओमप्रकाश वाल्मीकि की इस आत्मकथा ने अनेकानेक पाठकों पर भारी असर डाला है
क्योंकि इनके लेखन में इनके अपने जीवनानुभवों की सच्चाई और वास्तव बोध से उपजी
नवीन रचना संस्कृति की अभिव्यक्ति का एहसास होता । दलित जीवन के रोष और आक्रोश को
वे अपने संवेदनात्मक रचनानुभवों की भट्ठी में गला कर एक नये अनुभवजन्य स्वरूप में
रखते हैं जो मानवीय जीवन में परिवर्तन करने की क्षमता रखता है । गाढ़ी संवेदना और
मर्मस्पर्शिता के कारण उपर्युक्त आत्मकथा पढ़ने पर मन पर गहरा प्रभावकारी असर होता
है ।
जूठन Objective Question
1. जूठन के
हेडमास्टर का नाम क्या था?
a) कलीराम
b) ख्यालीराम
c)
दालीराम
d) हुलासीराम
2. भाभी जी आपके
हाथ का खाना तो बहुत जायकेदार है । हमारे घर में तो कोई भी ऐसा खाना नहीं बना सकता
। यह किसका कथन है?
a) हरीसिंह
b) सुरेन्द्रसिंह
c) रामसिंह
d) दिलेरसिंह
3. जूठन किनकी
रचना है?
a)ओमप्रकाश वाल्मीकि
b)रघुवीर सहाय
c)निराला
d)मलयज
4. ओमप्रकाश
वाल्मीकि हिंदी के किस आंदोलन से जुड़े महत्वपूर्ण रचनाकार हैं?
a)दलित आंदोलन
b)समाजवादी आंदोलन
c)आकविता
आंदोलन
d)इनमें से कोई नहीं
5. कौन रोते-रोते
मैदान में झाड़ू लगाने लगा?
a)मलिया
b)ओमभारती
c)दयाराम
पवार
d)ओमप्रकाश वाल्मीकि
6. एक रोज
ओमप्रकाश वाल्मीकि को किस हेड मास्टर ने कमरे में बुलाया?
a)चंदू राम
b)गरीब
राम
c)अकलू
राम
d)काली राम
7. दलित साहित्य
का सौंदर्यशास्त्र किसकी कृति है?
a)मलयज
b)रघुवीर
सहाय
c)अशोक
वाजपेई
d)ओमप्रकाश वाल्मीकि
8. ओमप्रकाश की
आत्मकथा का क्या नाम है?
a)जूठन
b)उषा
c)पूस
की रात
d)पंच
परमेश्वर
9. ओमप्रकाश
वाल्मीकि के मां का नाम क्या था?
a)मकुंदी देवी
b)सुरेंद्र देवी
c)रीता
देवी
d)इनमे
से कोई नहीं
10. ओमप्रकाश का
जन्म कब हुआ था?
a) 1950
b) 1952
c)
1963
d) 1954
11. महाराष्ट्र
में किस नाम की नाट्य संस्था स्थापित की गई?
a) बंगदूत
b) मेघदूत
d) सुरदीप
d)इनमे
से कोई नहीं
12. ओमप्रकाश ने
किस विषय में एम. ए. किया था?
a) अंग्रेजी
b) हिन्दी
c) संस्कृत
d) इतिहास
13. इनसे ये न
कराओ , भूखे रह लेंगे , इन्हें इस गन्दगी में न घसीटो । यह किसका कथन है?
a) माँ का
b) भाभी का
c) भाई का
d) बहिन का
14. इनमें से
ओमप्रकाश का कहानी संग्रह कौन-सा है?
a) आराम
b) सलाम
c) पारस या स्थापित
d) पवनदूत
15. उन दिनों एक
मरे पशु की खाल कितने में बिकती थी?
a) 10-15 रुपये
b) 20-25 रुपये
c) 25-30 रुपये
d) 30-40 रुपये
16. 'जूठन' क्या
है?
a) कहानी
b) शब्दचित्र
c) आत्मकथा
d) जूठा
जूठन Question Answer
1.
विद्यालय में लेखक के साथ कैसी घटनाएं घटती हैं?
उत्तर- लेखक जब विद्यालय
पहुँचा , उसके साथ अमानवीय व्यवहार किया गया । एक दिन हेडमास्टर साहब कलीराम ने
लेखक को अपने कमरे में बुलाया और पूछा- क्या नाम है बे तेरा । 'उत्तर आया'
ओमप्रकाश ' । हेडमास्टर का दूसरा प्रश्न था ' चूहड़े का है ? ' यह प्रश्न अपमानजनक
है , अमानवीय है , शिक्षा के मन्दिर में यह भाषा बड़ी भद्दी है । उसके बाद उसको
आदेश दिया गया - वह जो सामने शीशम का पेड़ खड़ा है उस पर चढ़ जा और टहनियाँ तोड़
के झाडू बना ले और पूरे स्कूल को ऐसा चमका जैसे सीसा । तेरा तो यह खानदानी पेशा है
। ' बालक छोटा ही था और उससे सारे स्कूल की सफाई करवायी । भले ही वह चूहड़े जाति
का था पर यह काम उसने अभी तक नहीं किया था । यह काम दूसरे दिन भी करवाया गया ।
तीसरे दिन लेखक कक्षा में एक कोने में जा बैठा । हेडमास्टर उसकी गर्दन दबाकर कक्षा
के बाहर लाकर बरामदे में पटक देता है और फिर कहता है - कर सफाई । लेखक के पिता जी
उसको सहसा देख लेते हैं । उनकी हेडमास्टर से काफी तकरार होती है ।
2.
पिता जी ने स्कूल में क्या देखा ? उन्होंने आगे क्या किया ? पूरा विवरण अपने
शब्दों में लिखें।
उत्तर - लेखक के
हेडमास्टर कलीराम ने लेखक से सारे विद्यालय में झाडू लगवायी । यह उसका तीसरा दिन
था । उसकी आँखों से आँसू झर रहे थे , वह कराह रहा था और झाडू लगा रहा था । सहसा
उसके पिता जी स्कूल के पास से गुजरे , वे यह दृश्य देखकर रुक गये । बाहर से ही
आवाज देकर बोले - ' मुंशीजी यह क्या कर रहा है ? ' पिताजी को देखकर लेखक फफक पड़ा
। पिता जी स्कूल के मैदान में लेखक के पास आ गये पूछा - ' मुंशीजी रोते क्यों हो ?
ठीक से बोल क्या हुआ है ? ' लेखक की हिचकियाँ बँध गर्यो । हिचक - हिचक कर पूरा
विवरण उसने बता दिया - ' तीन दिन से झाडू लगवा रहे हैं कक्षा में पढ़ने भी नहीं
देते । ' पिता जी ने उसके हाथ से झाड़ छीनकर दूर फेंक दी । उनकी आँखों में आग की
गर्मी उतर आई थी । हमेशा दूसरों के सामने कमजोर बने रहने वाले पिताजी की लम्बी -
लम्बी घनी मूंछ गुस्से से फड़फड़ाने लगी । वे चीखने लगे - ' कौन - सा स्टर है वो
जो मेरे लड़के से झाडू लगवाता है । ' पिता जी का शब्द पूरे प्रांगण में गूंज गया
था , उसको सुनकर हेडमास्टर सहित सभी मास्टर बाहर आ गये थे । कलीराम ने गाली देकर
लेखक के पिताजी को धमकाया था पर पिताजी पर धमकी का कोई प्रभाव नहीं था । उस रोज
जिस साहस और हौंसले से पिताजी ने हेडमास्टर का सामना किया यह लेखक कभी भूल नहीं
सका ।
3.
बचपन में लेखक के साथ जो कुछ हुआ , आप कल्पना करें कि आपके साथ भी हुआ हो -
ऐसी स्थिति में आप अपने अनुभव और प्रतिक्रिया को अपनी भाषा में लिखिए ।
उत्तर- लेखक के साथ अनेक
घटनाएँ घटती हैं जिनके मूल में है उसकी जाति और हमारे समाज की जाति व्यवस्था ।
स्कूल की घटना तो काफी अपमानजनक है , साथ ही वह यह भी ध्वनित कर देती है कि नीची
जाति के गरीब बालक के साथ कितना भी अपमानजनक अमानवीय व्यवहार किया जा सकता है ।
मात्र इस कारण कि वह नीची जाति का है । उसका दोष क्या है? मात्र इतना कि वह एक
नीची जाति का है । क्या हेडमास्टर यही व्यवहार किसी ठाकुर लड़के के साथ कर सकता था
। यहाँ कलीराम की कायरता भी स्पष्ट है । यह स्थिति बालक के मन में पनप रहे
ज्ञानांकुर की ओर , शिक्षा पाने की लालसा कुंठित कर देती है और हर क्षण उसके ऊपर
क्रूर अत्याचारी शिक्षक का आतंक छाया रहता है और वह भीरु बन जाता है । साथ ही यह
व्यवहार बालक के मन में एक आक्रोशयुक्त उबाल भी जगा देता है। उसका जीवन जाति के
दायरे में ही चलता है , जूठन पर पलता है , क्या आप वह जूठन खा सकते हैं ? समाज
कितना क्रूर है , भरी बारात खाना खा रही है पर दो बच्चों को चौधरी सुखदेवसिंह एक
पत्तल पर दो पूड़ी रखकर भी नहीं दे सकते । उसको चर्म का व्यवसाय करना पड़ता है यह
भी उसकी जाति का प्रभाव है ।
4.
किन बातों को सोचकर लेखक के भीतर काँटे से उगने लगते हैं?
उत्तर- उसके साथ जो भी
हुआ , उसको जो भी अपमान सहना पड़ा , जो भी काम करना पड़ा और समाज का क्रूर भयानक
चेहरा देखना पड़ा , यह सब याद आते ही उसके भीतर काँटे से चुभने लगते हैं । उसके
परिवार के सदस्य सफाई का काम करते थे । दस - बारह पशुओं का गोबर - कूड़ा साफ करना
, जाड़े - बरसात में भारी असुविधा महसूस करना किन्तु पारिश्रमिक मात्र पाँच सेर
अनाज दो जानवरों के पीछे मिलता था , वह भी फसल पर । दोपहर को भूसी मिलाकर बनायी
गयी रोटी या जूठन मिलती थी । शादी - ब्याह के समय जूठी पत्तलों से उनका निवाला
चलता था । पूड़ी के बचे - खुचे टुकड़े , एकाध मिठाई का टुकड़ा , जरा - सी बची
सब्जी पत्तल पर पाकर उनकी आँखें खिल जाया करती थीं । पूड़ियाँ सुखाकर रख ली जाती
थीं , वर्षा काल में उन्हें उबालकर नमक तथा बारीक मिर्च के साथ बड़े चाव से खाते
थे । कभी - कभी गुड़ डालकर उसकी लुग्दी जैसी बनायी जाती थी जो अमृतपान से कम
प्यारा नहीं था । यही था लेखक का घोर अपमान , तिरस्कार , प्रताणना का जीवन जहाँ
जूठन ही अमृत तुल्य थी । जिसे बड़े लोग फेंक देते थे , उसको वे बटोर लेते थे ।
क्या था परमात्मा का यह क्रूर न्याय ।
5.
" दिन रात , मर खपकर भी हमारे पसीने की कीमत मात्र जूठन फिर भी किसी को शिकायत
नहीं । कोई शर्मिन्दगी नहीं , कोई पश्चाताप नहीं । " ऐसा क्यों ? सोचिए और उत्तर दीजिए ।
उत्तर- अभाव जीवन का
सबसे बड़ा अभिशाप है । अभाव की हालत में जो भी उपलब्ध हो जाता है , वह अमृत तुल्य
माना जाता है । अमीर और गरीब में काफी अन्तर है । अमीर कुछ भी नहीं करता , फिर भी
उसके चारों ओर ढेरों सुविधाएँ हैं , गरीब कठोर परिश्रम करता है फिर भी उसको भरपेट
रोटी भी नहीं मिलती वह क्या करे ? जो भी उसके पास उपलब्ध है वही अमृत है फिर चाहे
जूठन ही क्यों न हो । पश्चाताप क्यों ? जब कुछ उपलब्ध है ही नहीं तो फिर मानव पशु
का सा जीवन जीता है । मानव को सृष्टि का श्रेष्ठतम अलंकार माना जाता है पर उनके
घरों में जाकर देखिये तब पता चलेगा । एक तो गरीब , दूसरे नीची जाति , मानो उनमें
मनुष्य के गुण हैं ही नहीं । यही तत्कालीन समाज सोचता रहा है । दूसरी ओर गरीब और
निम्न तबके के व्यक्ति यही सोचते हैं कि उन्हें बनाया ही गया इस हेतु है । इसके
अलावा वे कर ही क्या सकते हैं ? कहाँ से पूड़ी खा सकते हैं ? रही गालियों में बात
यह भी वे अपना धर्म मानते हैं । बाहुबलियों का धर्म है गाली देना और निम्न
व्यक्तियों की नियति है सर झुकाकर उन्हें सहना । विरोध किया कि उन पर जूतों की
बौछार हो उठती है , वे कुछ भी नहीं कर सकते । संगठन वहाँ नहीं , शिक्षा पाकर कुछ
बनने के साधन वहाँ नहीं , फिर काहे का पश्चाताप और काहे की शर्म ।
6.
सुरेन्द्र की बातों को सुनकर लेखक विचलित क्यों हो जाता है?
उत्तर- सुरेन्द्र ने कहा
था - ' भाभी जी आपके हाथ का खाना तो बहुत जायकेदार है । हमारे घर में तो कोई भी
ऐसा खाना नहीं बना सकता है । ' यह कथन लेखक को विचलित कर देता है । कारण सुरेन्द्र
के दादा और पिता की जूठन पर ही लेखक का बचपन बीता था और उस जूठन की भी कीमत थी ।
पूरे दिन की हाड़ तोड़ मेहनत , साथ में थी भन्ना देने वाली दुर्गन्ध , साथ में
गालियाँ , धिक्कार । सुरेन्द्र की बड़ी बुआ की शादी थी । सारे परिवार ने कठोर श्रम
किया था । जब बारात खा चुकी तो लेखक की माँ ने कहा था- " चौधरी जी , इब तो सब खाणा खाके चले गए .... म्हारे
जाकतों कू भी एक पत्तल पर धर कू कुछ दे दो ! वो बी तो इस दिन का इन्तजार कर रे ते
। " चौधरी ने पत्तल तो नहीं दी ,
साथ ही उन्होंने जूठी पत्तलों से भरे टोकरी की तरफ इशारा करके कहा - टोकरा भरके तो
जूठन ले जा रही है .. ऊपर से जाकतों के लिए खाणा मांग री है । अपणी औकात में रह
चूहड़ी । उठा टोकरा दरवाजे से और चलती बन । क्या यह सब भूला जा सकता था ? यह घटना
इस समय उसकी आँखों के सामने साकार हो उठी । यही कारण था कि लेखक सहसा विचलित हो
उठा ।
7.
घर पहुँचने पर लेखक को देख उनकी माँ क्यों रो पड़ती है?
उत्तर- लेखक अपने बचपन
में परिवार का सर्वाधिक लाड़ला था । उसका परिवार गालियाँ खाकर भूखे सोना मंजूर कर
सकता था , पर वह यह नहीं चाहता था कि यह लाड़ला ओमप्रकाश उनके घृणित पेशे में उतरे
, पर एक दिन यह विवशता आ ही गयी थी । एक बैल मर गया , पिताजी और बड़ा भाई बाहर थे
, उसकी खाल उतरनी थी , देर होते ही गिद्ध उसको विकृत - सा कर सकते थे । लेखक चाचा
के साथ खाल उतारने गया और खाल को चादर में बांधकर चाचा ने थोड़ी दूर तक पहुँचा
दिया था । भारी गठरी उठाना लेखक के बस की बात नहीं थी , फिर भी उसको उठानी पड़ी ,
घर तक पहुँचते - पहुँचते उसकी टाँगें जवाब दे गई थीं । लग रहा था कि अब गिरा ।
उसको उस हाल में देखकर उसकी माँ रो पड़ी थी । वह सिर से पैर तक गन्दगी में डूबा था
। बड़ी भाभी ने भी कहा - ' इनसे ये न कराओ भूखे रह लेंगे इन्हें इस गन्दगी में ना
घसीटो । उसकी माँ रोयी थी परिवार की बेबसी पर लाचारी पर जिसके कारण उन्हें यह
घृणित पेशा अपनाना पड़ा था ।
8.
लेखक की भाभी क्या कहती हैं ? उनके कथन का महत्व बताइए ।
उत्तर- गाँव में
ब्रह्मदेव तगा का बैल खेत से लौटते समय मर गया । मरे पशु की खाल उतारकर उसको बेचकर
कुछ रुपये मिल जाते थे । आज लेखक के पिताजी और बड़े भाई घर पर नहीं थे । अगर देर
हो गयी तो गिद्ध उसकी खाल खराब कर देंगे । अत : चाचा के साथ लेखक को भेजा गया ।
खाल उतारकर एक चादर में बांध दी गयी थोड़ी दूर तो चाचा ने वह गठरी ढोयी , फिर छोड़
दी और लाख मिन्नतों के बाद भी उनका दिल नहीं पसीजा । मजबूरी में लेखक उसको लादकर
चला । जब वह घर पहुँचा उसकी हालत बड़ी खराब हो चुकी थी । उसकी दुर्दशा देखकर लेखक
की माँ तो रो पड़ी थी और उसकी भाभी ने कहा था- " इनसे
यह न कराओ भूखे रह लेंगे उन्हें इस गन्दगी में न घसीटो । " लेखक पढ़ रहा था , उस समय कक्षा 9 में आ गया था , साथ
ही वह घर भर का लाड़ला था । परिवार को यह आभास हो रहा था कि शायद यह पढ़कर कुछ बन
सकेगा । अतः यह कोई नहीं चाहता था कि वह अपने पैतृक व्यवसाय में पड़े और सड़ता रहे
। कुछ त्याग करके ही कुछ मिलता है और मिला भी । काश भाभी की सोच ऐसी न होती तो
लेखक के हाथ में लेखनी न होकर छुरी होती ।

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