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उषा कविता || Bihar Board Class 12th Hindi

 

उषा

शमशेर बहादुर सिंह

शमशेर बहादुर सिंह परिचय

1.      जन्म : 13 जनवरी 1911

2.      मृत्यु- 1993

3.      जन्मस्थान : देहारादून, उत्तराखंड

4.      माता-पिता : प्रभुदेई और तारीफ सिंह

5.      शिक्षा : 1928 में हाई स्कूल, 1931 में इंटर, 1933 में बी.ए, 1938 में एम.ए

6.      कृतियाँ : चुका भी नहीं हूँ मैं (1975), इतने पास अपने (1980), उदिता (1980) बात बोलेगी (1981), काल तुझसे होड़ है मेरी (1982)

 

उषा कविता

 

प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ

राख से लीपा हुआ चौका
[अभी गीला पड़ा है]

बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो

स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने

नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो ।

और....

जादू टूटता है इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है ।

उषा पाठ का सारांश

उषा शीर्षक कविता के रचयिता शमशेर बहादुर सिंह है| शमशेर हिंदी प्रगतिशील कविता के एक मंजे हुए कलाकार है| उषा का आगमन , आकाश की आभा तथा चारों ओर व्याप्त सौन्दर्य का यथार्थ अंश इस कविता की विशेषता है । सूर्य के आगमन के पूर्व का समय ही उषा काल कहलाता है । आकाश एकदम नीला था , वह स्वच्छ भी था । उसकी नीलिमा के मध्य एक उजाला हल्के रूप में झाँकता - सा दिखायी देने लगा । उस प्रात : कालीन बेला में आकाश ऐसा आभासित हो रहा था , मानो राख से लीपा हुआ कोई गीला चौका हो , फिर धीरे-धीरे पूर्व से हल्की लालिमा झलक उठी , उस क्षण आकाश का स्वरूप एकदम बदल जाता है , उस समय उसको आकाश को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि कोई काली सिल ( आकाश ) लाल केसर से धो दी गयी हो उषा की लालिमा अथवा स्लेट पर लाल खड़िया या चॉक मल दिया गया हो । उसके बाद कवि उषा आगमन की बेला में , आकाश का भव्य चित्र उतारते हुए कहता है - आकाश पर उषा को लाली ऐसी छायी है , मानो किसी नीले जल में किसी गोरी नवयुवती का शरीर झिलमिला रहा हो । फिर कुछ देर बाद उषा का जादू टूटता सा लगने लगता है| सूरज निकलते ही आकाश स्पष्ट हो जाता है और उषा का जादू समाप्त हो जाता है|

 

उषा Objective Question

1.     शमशेर ने कब लिखना प्रारम्भ किया ?
a) 1932-33
b) 1933-34
c
) 1931-32
d) 1930-31

2.     उषा कविता के कवि कौन है?
a)रघुवीर सहाय
b)शमशेर बहादुर सिंह
c)जयशंकर प्रसाद
d)अशोक वाजपेयी 

3.     दूसरा सप्तक कब प्रकाशित हुआ ?
a) 1950
b) 1951
c
) 1952
d) 1953

4.     शमशेर को किस नाम से पुकारा जाता था ?
a) कवियों के शेर
b) आवारा मसीहा
c
) कवियों के कवि
d) व्यथित हृदय

5.     उषा का जादू कब टूट जाता है?
a)सूरज डूबने के बाद
b)सूरज निकलने के बाद
c)चाँद निकलने के बाद
d)इनमे से कोई 

6.     शमशेर बहादुर सिंह का जन्म कब हुआ था?
a)1911
b)1910
c)1920
d)1915

7.     शमशेर बहादुर सिंह का जन्म कहा हुआ था?
a)बिहार
b)उत्तर प्रदेश
c)उतरखंड
d)बंगाल

8.     शमशेर की प्रतिनिधि कविताएं नामक काव्य कृति का संपादन किसने किया है?
a)डॉ नामवर सिंह
b)डॉक्टर काशीनाथ सिंह
c)
डॉक्टर दूधनाथ सिंह
d)डॉक्टर बच्चन सिंह

9.     काल तुझसे होड़ है मेरी, टूटी हुई बिखरी हुई, कहीं बहुत दूर से सुन रहा हूं, सुकून की तलाश आदि किसकी रचनाएं हैं?
a)शमशेर बहादुर सिंह
b)नामवर सिंह
c)
मैनेजर पांडेय
d)विश्वनाथ तिवारी

10.   शमशेर ऐसे कवि हैं जो अपना असर धीरे - धीरे डालते हैं । ' यह कथन किसका है ?
a) डॉ . नामवर सिंह
b) अज्ञेय
c
) अरुण कमल
d) प्रभाकर माचवे

11.   शमशेर बहादुर सिंह ने किस स्थान से बी.ए. किया?
a)पटना
b)इलाहाबाद
c)मुंबई
d)देहरादून

12.   शमशेर बहादुर सिंह के माता पिता का नाम क्या था?
a)प्रगति देवी एवं तारिफ सिंह
b)प्रेमदेई एवं तारीफ सिंह
c)प्रभूदेई एवं तारीफ सिंह
d)समदेई  एवं तारीफ सिंह

13.   जादू टूटता है इस उषा का अब सूर्योदय हो रहा है यह पंक्ति किस कविता से ली गई है?
a)उषा
b)पुत्र-वियोग
c)गांव का घर
d)हार जीत

14.   शमशेर बहादुर सिंह की पत्नी का नाम क्या है?
a)कर्म देवी
b)धर्म देवी
c)
रीता देवी
d)इनमें से कोई नहीं

15.   प्रभातकालीन अकाश कैसा है?
a)कलम के रंग जैसा
b)नीले शंख जैसा
c)काली सिल के जैसा
d) उजली शिप के जैसा

16.   किस का जादू टूटता है?
a)उषा का
b)संध्या का
c)
रजनी का
d)नायिका के सौंदर्य का

17.   चुका भी नहीं रहा हूं मैं के रचयिता कौन है?
a)शमशेर बहादुर
b)मलिक मोहम्मद जायसी
c)
रघुवीर सहाय
d)गजानंद

18.   शमशेर बहादुर सिंह ने किस कोश का संपादन किया?
a)हिंदी-अंग्रेजी कोश
b)उर्दू-अंग्रेजी कोश 
c)उर्दू-हिंदी कोश
d)इनमें से कोई नहीं

19.   शमशेर बहादुर सिंह ने 1978 में किस देश की यात्रा की?
a)संयुक्त राज्य अमेरिका
b)सोवियत रूस
c)
नेपाल
d)फ्रांस

Question Answer

1.       प्रातः काल का नभ कैसा था?
उत्तर- वह काफी नीला शंख के समान था, ऐसा लगता था मानो कोई ऐसा चौका हो जिसको राख से लीपा गया हो और अभी ही लीपा गया हो , अथवा वह ऐसा लग रहा था, मानो कोई काली सिला हो जिसको लाल केसर से धो दिया गया हो|

2.       'राख से लीपा हुआ चौका' के द्वारा कवि ने क्या कहना चाहा है?
उत्तर - राख से लिपा हुआ चौका के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि प्रातः कालीन नभ  पवित्र एवं निर्मल है| जिस प्रकार लीपने  के तुरंत बाद गीले चौके में किसी को इसलिए नहीं चलने फिरने दिया जाता है कि उससे चौके में पैरों के निशान पड़ जाएंगे और वह पवित्र तथा  निर्मल नहीं रह पाएगा, उसी प्रकार भोर के नभ में भी प्रातः की ओस कारण गीलापन है और वह बिल्कुल पवित्र एवं निर्मल है|

3.       बिंब स्पष्ट करें'
बहुत काली सिला जरा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो
उत्तर- प्रात : काल सिल पर मसाला पीसा जाता है ( अब तो मिक्सी का युग है ) उसके बाद उसको धोया जाता है । अगर सिल पर केसर पीसी गयी है , तो उसे उसका अवशेष और जल सिल पर केसरिया रंग का आवरण डाल देते हैं । वह नीली सिल केसरिया रंग में रंगी बड़ी भली मालूम होती है । दूसरा बिम्ब है - समस्त आकाश , उषा की लालिमा में डूब गया है और यह आभास होता है कि किसी बहुत काली सिल पर थोड़े से लाल रंग की केसर घोलकर डाल दी गयी हो - काला आकाश , उषा का केसरिया रंग बड़ा प्रभावी बिम्ब बनाता है ।

4.       उषा का जादू कैसा है?
उत्तर- उषा का रूप-रंग मादक है , उसका आगमन और भी अधिक मद भरा है , चारों ओर हलचल मचा देता है । उसका प्रभाव भी विलक्षण है । उसके जादू का ही यह प्रभाव है कि आकाश नील शंख के समान दिखायी देता है । कभी वही आकाश ऐसा दिखायी देता है - मानो राख से लीपा हुआ गीला चौका हो , अथवा लाल केसर के जल से धुली कोई काली सिल हो अथवा किसी स्लेट पर लाल खड़िया पोत दी गयी हो । यह उषा का ही प्रभाव है कि वह अपना जादू बड़े प्रभावी ढंग से बिखेर देती है और यह वह सब सूर्योदय से पूर्व ही करती है ।

5.       'लाल केसर' और 'लाल खड़िया चॉक' किसके लिये प्रयुक्त है ?
उत्तर - लाल केसर केसर सूर्य उदय के समय आकाश की लालिमा से कवि ने लाल के सर से तुलना की है लाल खड़िया चार लाल खड़िया चार उषाकाल के लिए प्रयुक्त हुआ है।

6.       व्याख्या करें
( क ) जादू टूटता है इस उषा का अब सूर्योदय हो रहा है ।
( ख ) बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो ।

उत्तर- ( क )प्रस्तुत पंक्तियाँ शमशेर बहादुर सिंह की प्रसिद्ध कविता ' उषा ' से उद्धृत हैं । कवि आकाश पटल पर उषा के प्रभाव के माध्यम से एक विलक्षण चित्र उतारता है । आकाश कभी नीले शंख - सा आभासित होता है , कभी ऐसा लगता है कि मानो राख से लीपा हुआ गीला चौका है अथवा किसी काली सिल को किसी लाल केसर के रंग से धो दिया गया हो अथवा स्लेट पर कोई लाल खड़िया अथवा चॉक को मल दिया गया हो , यह सारा उषा का ही जादू था पर जब सूर्य का प्रकाश फूटता है तब यह सारा जादू टूट जाता है और उषा का सारा सौन्दर्य फीका पड़ जाता है क्योंकि सूर्योदय होते ही उषा की आभा फीकी पड़ जाती है ।
( ख ) प्रस्तुत पंक्तियाँ शमशेर बहादुर सिंह की कविता ' उषा ' से उद्धृत हैं । उषा के आगमन के कारण आकाश में जो शोभा उभरी है , उसके कई रूप चित्रित हुए हैं , यहाँ भी इसी प्रकार का एक चित्र अंकित है । यह उषा का आगमन ऐसा प्रतीत हो रहा है , मानो किसी काली स्लेट पर किसी ने लाल खड़िया या लाल चौक मल दिया हो अर्थात् आकाश की ऐसी ही विलक्षण शोभा दमक रही है । स्लेट काली , खड़िया लाल , आकाश नीला , उषा लाल - बड़ा प्यारा दृश्य है और स्वाभाविक है ।

7.       इस कविता की बिम्ब योजना पर टिप्पणी लिखें ।
उत्तर- सारांश देखे

8.       प्रात : नभ की तुलना बहुत नीला शंख से क्यों की गई है?
उत्तर- प्रात: काल का नभ नीला तो होता ही है , साथ ही उसका समूचा भाग नहीं दिखायी देता ( एक नजर में ) उसका जो भी भाग दीखता है वह ऐसा आभासित होता है मानो नीला शंख हो । शंख ध्वनि उत्पन्न करता है , प्रात : कालीन नभ भी मुखर होता है , वहाँ वायु , पक्षी आदि की ध्वनियाँ होती हैं । रात्रि की शान्ति टूट जाती है । अत : यह सादृश्य स्वाभाविक प्रभावी है ।

9.       नील जल में किसकी गौर देह हिल रही है ?
उत्तर- नीले आकाश में सूर्य की प्रातः कालीन किरण झिलमिल कर रही है मनो नीले जल में किसी गौरांगो का गौर शरीर हिल रहा है|

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