छप्पय
नाभादास
नाभादास का परिचय
1.
जन्म : 1570-1600(अनुमानित)
2.
जन्मस्थान : दक्षिण भारत में
3.
माता-पिता : शैशव में पिता की मृत्यु और अकाल के कारण माता
के साथ जयपुर (राजस्थान) में प्रवास
4.
दीक्षा गुरु : स्वामी अग्रदास (अग्रअली)
5.
शिक्षा :- गुरु की देख-रेख में स्वाध्याय, सत्संग द्वारा ज्ञानार्जन
6.
कृतियाँ : भक्तमाल, अष्टयाम (ब्रजभाषा गद्य में)
7.
गोस्वामी तुलसीदास के समकालीन – वैष्णव संप्रदाय मे दीक्षित
छप्पय कविता
कबीर
भगति विमुख जे धर्म सो सब
अधर्म करि गाए ।
योग यज्ञ व्रत दान भजन बिनु तुच्छ दिखाए ।।
हिंदू तुरक प्रमान रमैनी सबदी साखी ।
पक्षपात नहिं बचन सबहिके हितकी भाषी ।।
आरूढ़ दशा है जगत पै, मुख देखी नाहीं
भनी ।
कबीर कानि राखी नहीं, वर्णाश्रम घट
दर्शनी ।
सूरदास
उक्ति चौज अनुप्रास वर्ण
अस्थिति अतिभारी ।
वचन प्रीति निर्वही अर्थ अद्भुत तुकधारी ।।
प्रतिबिंबित दिवि दृष्टि हृदय हरि लीला भासी ।
जन्म कर्म गुन रूप सबहि रसना परकासी ।।
विमल बुद्धि हो तासुकी, जो यह गुन श्रवननि
धरै ।
सूर कवित सुनि कौन कवि, जो नहिं शिरचालन
करै ।
कबीर का सारांश
कबीर ने भक्ति विमुख तथाकथित धर्मों की आलोचना की है
। उन्होंने योग , यज्ञ , व्रत , दान और भजन के महत्व का बार - बार प्रतिपादन करते
हुए वास्तविक धर्म को स्पष्ट किया है । उन्होंने अपने सभी पदों में हिन्दू और
तुर्क सबके प्रति आदर भाव व्यक्त किया है । कबीर के वचनों में पक्षपात नहीं है ।
उनमें लोकमंगल की भावना है । कबीर मुँहदेखी बात नहीं करते । उन्होंने वर्णाश्रम के
पोषक षट-दर्शनों के अवगुणों को स्पष्ट किया है ।
सूरदास का सारांश
सूर की कविता सुनकर कौन ऐसा कवि है जो उनसे सहमत नहीं
होगा । सूर की कविता में श्रीकृष्ण की लीला का वर्णन है । उनके जन्म से लेकर
स्वर्ग-धाम तक की लीलाओं का मुक्त गुणगान किया है । उनकी कविता गुण-माधुरी और
रूप-माधुरी सब कुछ भरा हुआ है । सूर की दृष्टि दिव्य थी । वही दिव्यता उनकी
कविताओं में भी प्रतिबिम्बित है । गोप गोपियों के संवाद में अद्भुत प्रीति का
निर्वाह दिखायी पड़ता है । शिल्प की दृष्टि से उक्ति - वैचित्र्य ,
वर्ण्यवैचित्र्य और अनुप्रासों की अनुपम छटा सर्वत्र दिखायी पड़ती है ।
छप्पय Objective
Questions
1.
“छप्पय” शीर्षक कविता के रचयिता का नाम बतावें?
a)नाभादास
b)सूरदास
c)कबीरदास
d)तुलसीदास
2. नाभादास का स्थायी निवास कहाँ था?
a)काशी
b)बरसाने
c)मथुरा
d)वृन्दावन
3. भक्तमाल में कितने चरित वर्णित हैं?
a)201 भक्तो का चरित
b)202 भक्तों का चरित
c)203 भक्तों का चरित
d)200 भक्तों का चरित
4. नाभादास के
अनुसार किसकी कविता को सुनकर कवि सिर झुका लेते है?
a)तुलसी दास
b)मलिक मुहम्मद जायसी
c)सुभद्रा कुमार चौहान
d)सूरदास
5. नाभादास का काव्य रचना क्षेत्र था?
a) हरिद्वार
b) काशी
c)
मथुरा
d) वृन्दावन
6.
नाभादास का जन्म कब
हुआ था?
a)1570
b)1560
c)1575
d)1565
7. नाभादास किसके शिष्य थे?
a)रामानंद
b)तुलसीदास
c)महादास
d)अग्रदास
8.
आपके पाठ्यक्रम में किन पर लिखे गए छप्पय संकलित हैं?
a)कबीर, सूर
b)सूर,
तुलसी
c)तुलसी,
अग्रदास
d)अग्रदास,
छीतस्वामी
9.
नाभादास की ब्रज
भाषा गद्य की रचना कौन - सी है?
a) अष्टयाम
b) भक्तमाल
c)
श्रीमाल
d) प्रवीण माल
10. नाभादास किसके समकालीन थे?
a)प्रेमचंद
b)भात्रेंदु
c)मलिक
मुहम्मद जायसी
d)तुलसीदास
11. नाभादास की पारिवारिक पृष्ठभूमि किस वर्ण की थी?
a) ब्राह्मण
b) क्षत्रिय
c) दलित
d) वनवासी
12. नाभादास कैसे संत थे?
a)विरक्त जीवन जीते हुए
b)पारिवारिक जीवन जीते हुए
c)मंदिर
में रहते हुए
d)व्यापारी
बनकर रहते हुए
13. भक्तमाल किस प्रकार की रचना है?
a)भक्त चरित्रों की माला
b)जीवनी
c)नाटक
d)संस्मरण
14. सूर की भक्ति किस कोटि की थी?
a) शस्य भाव
b) सख्य भाव
c)
कांता सक्ति
d)रागात्मक
15. कबीर दस किस शाखा के कवि है?
a)सगुण
शाखा
b)सर्वगुण
शाखा
c)निर्गुण शाखा
d)इनमे
से कोई नहीं
16. कबीर के अनुसार अधर्म करने वाले व्यक्ति कौन होते हैं?
a) अज्ञानी
b) अमर्यादित
c) भक्ति विहीन
d) कुकर्मी
17. नाभादास ने सूरदास को किस क्षेत्र में अद्भुत कहा है?
a) रसधारी
b) तुकधारी
c) विविधारी
d) वृतधारी
18. नाभादास जी किस समाज के विद्वान हैं?
a)दलित वर्ग
b)वैश्य
वर्ग
c)आदिवासी
d)संथाल
वर्ग
19. आपकी पाठ्य-पुस्तक में संकलित छप्पय की ग्र्रंथ में
संकलित है?
a)अष्टयाम
b)भक्त्माल
c)रामलला
d)इनमे
से कोई नहीं
20. नाभादास ने भक्तों के परिचय में किस शैली का
परिचय दिया है?
a)संधि-शैली
b)समास-शैली
c)उपसर्ग-शैली
d)प्रत्यय-शैली
छप्पय Question Answer
1.
नाभादास ने छप्पय
में कबीर की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है? उनकी क्रम से सूची बनाइए।
उत्तर-
नाभादास ने कबीर की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है-
i)कबीर
ने हिंदू मुसलमान दोनों को प्रमाण तथा सिद्धांत की बातें सुनाइए|
ii)कबीर
ने केवल भगवदभक्ति को ही श्रेष्ठ माना है भगवदभक्ति के अतिरिक्त जितने धर्म है उन
सब को कबीर ने अधर्म कहा है|
iii)वे जाति-पांति एवं वर्णाश्रम का खंडन करते थे|
iv)सच्चे हृदय से सप्रेम भजन के
बिना तप, योग, दान, व्रत सभी को कबीर ने तुच्छ बतायाना|
2.
'मुख देखी नाहीं भनी
' का क्या अर्थ है ? कबीर पर यह कैसे लागू होता है ?
उत्तर
- कबीर ने मुख देखकर कुछ भी नहीं कहा है , जो उचित समझा है वही कहा है , अर्थात्
कोई बात न तो पक्षपातपूर्ण कही है और न ही भयादि के कारण कुछ कहा है , निर्भीकता
द्वारा अपना अनुभूत सत्य ही कहा है ।
3.
सूर के काव्य की किन
विशेषताओं का उल्लेख कवि ने किया है?
उत्तर
- नाभादास जी ने सूर काव्य के चमत्कार , अनुप्रास के साथ उनकी भाषागत रमणीयता का
भी उल्लेख किया है । साथ ही सूर काव्य का ' प्रेम ' तत्व , अनुभूत तुकान्त शैली ,
गम्भीर अर्थ प्रकट करती भाषा , दिव्य दृष्टि के माध्यम से हरि लीला का गान किया है
। उन्होंने कृष्ण के जन्म , कर्म और रूपादि का प्रकाशन करके बुद्धि को निर्मल
बनाया है , जिससे श्रवण पवित्र हो जाते हैं और बुद्धि भी निर्मल हो जाती है ।
4.
अर्थ स्पष्ट करें-
( क ) सूर कवित्त सुनि कौन कवि , जो नहिं शिरचालत करै ।
( ख ) भगति विमुख जे धर्म सो सब अधर्म करि गए ।
उत्तर- (क) प्रस्तुत पंक्तियाँ नाभादास द्वारा रचित सूर काव्य की विशेषता से
उद्धृत हैं , जहाँ उन्होंने सूर के वचनों की महत्ता पर प्रकाश डाला है । सूर का
काव्य इतना महान है , इतना रसात्मक है जिसके समक्ष ऐसा कौन कवि होगा जो उनके सामने
अपना मस्तक न झुका दे । अर्थात् सूर का काव्य सभी के लिये आदरणीय है , महान् है ।
( ख ) प्रस्तुत पंक्तियाँ नाभादास द्वारा रचित ' कबीर बाणी ' की विशेषता पर प्रकाश
डाल रही हैं । कबीर का कहना है कि भक्ति के विमुख जितने भी धर्म हैं उन सब को
अधर्म कहा जाना चाहिए| अर्थात प्रभुभक्ति
ही सर्वश्रेष्टर है|इसके अतिरिक्त सब व्यर्थ है।
5.
“पक्षपात नहिं वचन
सबहि के हित की भाषी|” इस पंक्ति में कबीर के किस गुण का परिचय दिया
गया है?
उत्तर-
“पक्षपात नहिं वचन सबहि
के हित की भाषी”
से दर्शाया गया है कि कबीर हिंदू मुसलमान आर्य अनार्य में कोई भेद नहीं रखते हैं|
अपितु सबके हित की बात करते हैं| वह सिद्धांतवादी है और सिद्धांतों को लेकर आगे
बढ़ते हैं|
6.
' कविता में तुक का
क्या महत्व है ? इन छप्पयों के सन्दर्भ में स्पष्ट करें ।
उत्तर
- तुक से तात्पर्य होता है समान वर्ण अथवा समान ध्वनि का अन्त में प्रयोग । यथा -
कबीर पद में ' गाए ' और ' दिखाए ' तथा ' साखी - भाषी ' एवं ' भनी दर्शनी ' । ये
तुक काव्य में सरसता समाहित कर देता है , गीति तत्व को उभार देता है । लयात्मकता
भी प्रखर हो जाती है और काव्य सुनने में या पढ़ने में आनन्द देता है । कबीर के
पदों में तुकों की महत्ता हम दिखा ही चुके हैं । सूर के पद में भी यह विशेषता पायी
जाती है भारी - धारी ' दोनों तुक ही हैं । उसी प्रकार अन्तिम दो पंक्तियों में '
धेरै ' सरै ' भी तुक ही है जिनके प्रभाव से काव्य में सरसता समाहित हो गयी है ।
7.
“कबीर कानि राखी नहीं” से क्या
तात्पर्य है ?
उत्तर
- कवि का तात्पर्य है मर्यादा , परम्परा । कबीर ने मर्यादा और परम्परा का निर्वाह
कभी नहीं किया । वह कहता है लीक लीक गाड़ी चलै लीकहि लीक कपूत । लीक छाँहि तीन्यों
चलै सायर सिंह सपूत । न उसने वर्णाश्रम को माना , न ही जाति पांति को माना और न
उसने दर्शन को स्वीकार किया । वह तो कहता है तू कहता है कागद लेखी हाँ कहता हूँ
आंखिन देखी ।
8.
कबीर ने भक्ति को
कितना महत्व दिया है?
उत्तर
- यद्यपि कबीर निर्गुण सन्त था पर भक्ति और प्रेम का पुजारी था । उसने भक्ति को
सर्वोपरि माना है । वह कहता है जो व्यक्ति भक्ति विमुख है , उसका सारा धर्म अधर्म
ही है , भक्ति - विमुख व्यक्ति धर्म का आचरण कर ही नहीं सकता । उसकी मान्यता है ,
संसार के अनेक साधन हैं । योग है , व्रतादि हैं , दान है पर सभी भक्ति के बिना
तुच्छ ही हैं , व्यर्थ ही हैं , सर्वोपरि और सर्वसुलभ भक्ति ही है , वही
महत्वपूर्ण है , ईश्वर प्राप्ति का सर्वसुलभ साधन है ।

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