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तुमुल कोलाहल कलह में || Bihar Board Class 12th Hindi

 

तुमुल कोलाहल कलह में  
जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद का परिचय

1.       जीवनकाल : 1889-1937

2.       जन्मस्थान : वाराणसी, उत्तरप्रदेश

3.       पिता : देवी प्रसाद साह



4.       शिक्षा : आठवीं तक | संस्कृत, हिन्दी, फारसी, उर्दू की शिक्षा घर पर नियुक्त शिक्षकों द्वारा

5.       विशेष परिस्थिति : बारह वर्ष की अवस्था में पितृविहीन, दो वर्ष बाद माता की मृत्यु

6.       कृतियाँ : इंदु 1909 में प्रकाशित जिसमें कविता, कहानी, नाटक इत्यादि शामिल है।

7.       प्रमुख काव्‍य संकलन : झरना (1918), आँसू (1925), लहर (1933)

8.       महाराणा का महत्त्व, करुणालय, प्रेम पथिक, कामायनी, छाया, इंद्रजाल, कंकाल, इत्यादि

9.       यह एक छायावाद के कवि हैं।

10.   कामायनी कुल 15 सर्ग हैं।

तुमुल कोलाहल कलह में कविता

तुमुल कोलाहल कलह में
मैं हृदय की बात रे मन !

विकल होकर नित्य चंचल,
खोजती जब नींद के पल;
चेतना थक सी रही तब,
मैं मलय की वात रे मन ।

चिर-विषाद विलीन मन की
इस व्यथा के तिमिर वन की;
मैं उषा सी ज्योति रेखा,
कुसुम विकसित प्रात रे मन ।

जहाँ मरु ज्वाला धधकती,
चातकी कन को तरसती;
उन्हीं जीवन घाटियों की,
मैं सरस बरसात रे मन !

पवन की प्राचीर में रुक,
जला जीवन जा रहा झुक;
इस झुलसते विश्व-वन की,
मैं कुसुम ऋतु रात रे मन !

चिर निराशा नीरधर से,
प्रतिच्छायित अश्रु सर में;
मधुप मुखर मरंद मुकुलित,
मैं सजल जलजात रे मन ।

तुमुल कोलाहल कलह में पाठ का सारांश 

‘तुमुल कोलाहल कलह’ में शीर्षक कविता के रचयिता जयशंकर प्रसाद हैं । वे छायावादी कवि हैं । यह कविता ' कामायनी ' के ' निर्वेद ' सर्ग से ली गयी है । इड़ा की प्रजा और मनु के बीच युद्ध हुआ । सर्वत्र शान्ति छा गयी । सर्वत्र शोक छा गया । इड़ा ने श्रद्धा को आश्रय दिया । मूर्छित मनु को देख श्रद्धा द्रवित हो उठी । श्रद्धा और मनु का मधुर मिलन होता है । श्रद्धा भावनाओं के कोलाहल में शान्ति की दूतिनी है । श्रद्धा हृदय का प्रतीक है । इड़ा बुद्धि का प्रतीक है । मनु मन का प्रतीक है । विचारों के उथल - पुथल में हृदय की बात श्रेष्ठ है । मनुष्य व्याकुल होकर आराम खोजता है । पुरुष नारी की शरणस्थली खोजता है । नारी की गोद में पुरुष की चंचलता शान्त हो जाती है । श्रद्धा मनु को विश्राम और चैन देती है । वह मलयानिल की हवा जैसी है । मन बड़ा चंचल है । वह थकता नहीं है । हाँ , मन से जुड़ा शरीर थक जाता है । श्रद्धा जीवन की घाटियों में जलयुक्त बरसात है । एक - एक बूंद पानी के लिए सभी तरसते हैं । दुनिया जेठ की प्रचण्ड दुपहरी है । श्रद्धा ठण्डक देती है । हमें हृदय की बात माननी चाहिए - ' तुमुल कोलाहल कलह में मैं हृदय की बात रे मन ' ।

तुमुल कोलाहल कलह में Objective Question

1.    प्रस्तुत गीत ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ किसने गाया है?
a)लता मंगेशकर
b) आशा भोंसले
c
) सोम ठाकुर
d) नीरज

2.    ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता के रचयिता कौन है?
a)सूर्यकांत त्रिपाठी
b)जयशंकर प्रसाद
c)
महादेवी वर्मा
d)सुमित्रानंदन पंत

3.    जयशंकर प्रसाद जी किस काल के कवि हैं?
a)छायावाद
b)रीति काल
c)
आदिकाल
d)इनमें से कोई नहीं

4.    इनमें कौन-सी रचना प्रसाद जी की नहीं है?
a) झरना
b) आँसू
c
) देवदासी
d) कामायनी

5.    इन्दु का प्रकाशन किसने प्रारम्भ किया था?
a) अम्बिका प्रसाद
b) देवी प्रसाद
c
) रहीम दास
d) सुखदेवराम

6.    प्रसाद की पहली प्रकाशित कृति कौन - सी है?
a) आँसू
b) कामायनी
c
) चित्राधार
d) लहर

7.    ‘कामायनी’ प्रसाद की कैसी कृति है?
a)प्रबंध काव्य
b)गद्य काव्य        
c)
खंड काव्य
d)नाट्य कृतियाँ

8.    सजल जलजात में कौन सा अलंकार है?
a)रूपक
b)दुपक
c)
दुपक
d)इनमें से कोई नहीं

9.    जयशंकर प्रसाद का जन्म कहां हुआ था?
a)वाराणसी
b)बेगूसराय
c)
इलाहाबाद
d)फर्रुखाबाद

10.  जयशंकर प्रसाद के पिता का क्या नाम था?
a)मोहन प्रसाद मिश्रा
b)देवीप्रसाद साहू
c)
देवेंद्र प्रसाद
d)इनमें से कोई नहीं

11.  इनमें से छायावाद की कौन - सी विशेषता नहीं है?
a) लाक्षणिकता
b) रहस्यात्मकता
c
) दार्शनिकता
d) बुद्धिवादिता

12.  चेतना थक सो रही है । उस समय श्रद्धा अपने को क्या बताती है?
a) मलय की बात
b) उत्साह की किरण
c
) आत्म - वैभव का प्रतीक
d) बासन्ती झोंका

13.  मनुष्य का शरीर क्यों थक जाता है?
a)मन की चंचलता से
b)ज्यादा काम करने से
c)
सोने से खाने से
d)खाने से

14.  प्रसाद जी का जन्म हुआ था
a) 1889
b) 1890
c
) 1888
d) 1891

15.  चातकी किस के लिए तरसती है?
a)एक छोटी सी बूंद के लिए
b)मछली के लिए
c)
पानी के लिए
d)दूध के लिए

 

तुमुल कोलाहल कलह Question Answer

1.    ह्रदय की बात का क्या कार्य है?
उत्तर- चरों ओर घनघोर कोलाहल व अशांति व्याप्त है, उस समय ह्रदय की बात मन-मस्तिष्क को शांति पहुँचती है| कोलाहल, अशान्तिपूर्ण स्तिथियाँ मस्तिष्क को अच्छातिद कर देती है| उसकी साद, असद, विएक की क्षमता को भी प्रभावित कर
लेती है , उस समय हृदय की बात ही सांत्वना देती है , सत्पथ को समझाती है । यह कोमल भावनाओं का प्रतीक है ' उषा की प्रात : कालीन ' आभा - सी दमकती है और समस्त कोलाहल से दूर रखती है ।

2.    कविता में उषा की किस भूमिका का उल्लेख है ?
उत्तर - छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता में उषा काल की एक महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख किया है| उषाकाल अंधकार का नाश करता है| उषाकाल के पूर्व संपूर्ण विश्व अंधकार में डूबा रहता है| उषाकाल होते ही सूर्य की रोशनी अंधकाररूपी जगत में आने लगती है| सारा विश्व प्रकाशमय  हो जाता है| सभी जीव जंतु अपनी गतिविधियां शुरू कर देती है| जगत में एक आशा एवं विश्वास का वातावरण प्रस्तुत हो जाता है|

3.    चातकी किसके लिये तरसती है?
उत्तर – चातकी एक पक्षी है जो स्वाति की बूंद के लिए तरसती है| चातकी केवल स्वाति का जल ग्रहण करती है| वह सालोंभर स्वाति के जल की प्रतीक्षा करती है और जब स्वाति का बूंद आकाश से गिरता है तभी वह जल ग्रहण करती है|

4.    बरसात की ' सरस ' कहने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर- बरसात जलों का राजा होता है| बरसात में चारों तरफ जल ही जल दिखाई देता है| पेड़-पौधे हरे भरे हो जाते हैं| लोग बरसात में आनंद एवं सुख का अनुभव करते हैं| उनका जीवन सरस हो जाता है अर्थात जीवन में खुशियां आ जाती है| खेतों में फसल लहराने लगते हैं| किसानों के लिए समय तो और भी खुशियां लाने वाला होता है| इसलिए कभी जयशंकर प्रसाद ने बरसात को सरस कहा है|

5.    काव्य सौन्दर्य स्पष्ट करें-
पवन की प्राचीर में रुक,
जला जीवन जा रहा झुक,
इस झुलसते विश्व वन की,
मैं कुसुम ऋतु रात रे मन!

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ जयशंकर प्रसाद की कविता ' तुमुल कोलाहल कलह में ' से उद्धृत हैं। यह ' कामायनी ' महाकाव्य का अंश है । इस पंक्ति के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि जिन्हें इस अभागा मानव-जीवन ने झुलसा डाला है और जिन्हें सांसारिक अग्नि से भगाने का भी कोई उपाय नहीं है ऐसे दुख-दग्ध लोगों को मैं आशा रूपी बसंत की रात के समान  सुख की आंचल हूँ| उनके झुलसे मन को हरा-भरा बना कर फुल सा खिला देती हूं|

6.    ' सजल जलजात ' का क्या अर्थ है ?
उत्तर- सजल जलपात का अर्थ जल भरे (रस भरे) कमल से है| मानव-जीवन आंसुओं का सराबोर है| उसमें पुरातन निराशारूपी बादलों की छाया पड़ रही है| उसकी सरोवर में आशा एक ऐसा जल से पूर्ण कमल है जिस पर भौरें मंडराते हैं और जो मधु से परिपूर्ण है।

7.    कविता का केन्द्रीय भाव क्या है ? संक्षेप में लिखिये ।
उत्तर - संसार में कलह , प्रताड़ना , अमंगल , भाग - दौड़ , छल - कपट आदि चारों ओर व्याप्त है । व्यक्ति उनमें फंसा छटपटा रहा है । मन बड़ा चंचल है वह माया - मोह में फंसकर उसको भ्रमित करता रहता है और उसके चारों ओर पीड़ाओं का संसार बुनता रहता है । यह स्थिति अत्यधिक दुखद है अत : कवि चाहता है कि मानव को इससे मुक्ति प्राप्त हो सके । इसका एक ही उपाय है , हृदय या आत्मा का सम्मान , उसकी बात मानना , उसके अनुसार चलना । वह श्रद्धा ( हृदय ) को महत्व देता है , जो एक आस्थापूर्ण , विश्वासमयी , आस्तिक बुद्धि का प्रतीक है , उसके आधार पर ही कल्याण सम्भव हो सकता है ।

8.    कविता में ' विषाद ' और ' व्यथा ' का उल्लेख है । यह किस कारण से है ? अपनी कल्पना से उत्तर दीजिये ।
उत्तर - जयशंकर प्रसाद लिखित ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता के द्वितीय पद में विषाद और व्यथा का उल्लेख है| कवि के अनुसार संसार की वर्तमान स्थिति कूलाहलपूर्ण  स्थिति से क्षुब्द है| इसे मनुष्य का मन चिर-विषाद में विलीन हो जाता है| मन में घुटन महसूस होने लगती है| कभी अंधकाररूपी मन में व्यथा (दुख) का अनुभव करता है|

 

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