प्रामिस
जीलानी बानो
अम्मो, अम्मो, अभी आप बिलकुल ठंडी पड़ गई थीं। हम समझे के..........के..........अम्मो के आस
पास खड़े उनके तीनों बेटे, उनकी बीवियाँ,
उनके बच्चे, सब घबरा गए.........अम्मो ज़िंदा हैं। हम समझे
के.......के..........हमने उनके मरने का दुख कितनी आसानी से सह लिया....... अम्मो
की तरफ बड़े दुख के साथ देख रही थीं। उनके सबसे बड़े बेटे ने कितनी जल्द सफ़ेद कपड़ा
डाल कर अम्मो का मुँह छुपाना चाहा.........अगर अम्मो हाथ उठा चादर न हटा देतीं तो
शायद वो सब दूसरे कमरे में जा कर उन्हें दफ़न करने की तैयारी शुरू कर देते।
वो सब नज़रें झुकाए खड़े
थे। जैसे अम्मो ने देख लिया कि उनके मरने पर किसी की आँख से एक आँसू भी नहीं
निकलेगा। दो बरस हो गए। जब डॉक्टर ने कहा था कि कैंसर अम्मो के सारे बदन में फैल
गया है। किसी भी वक़्त उन्हें कुछ भी हो सकता है। जब से ये बात उनकी दोनों बहुओं
ने सुनी थी, वो अम्मो का ज़्यादा
ख़याल करने लगी थीं। हर महीने फ़ोन पर अम्मो की ख़ैरियत पूछतीं। दूसरी बहू अमरीकी
थी। वो इंडिया की गर्मी बर्दाश्त नहीं कर सकती थी। फिर भी वो हर साल आती। किसी
फ़ाइव स्टार होटेल में ठहरती थी। हैदराबाद की सैर-ओ-तफ़रीह से फुर्सत मिलती तो
किसी दिन अम्मो की मिज़ाज पुरसी भी कर लेती थी। तीनों बेटे उनके इलाज के लिए बड़ी
पाबंदी के साथ डॉलर और रियाल भेजते थे। अम्मो के लिए बहुत अच्छा डॉक्टर, बेहतरीन इलाज। घर में हर तरह का आराम। दिन रात
खिदमत करने वाली ख़्वाजा बी, जिसे दूर बैठीं
बहुएं इनाम-इकराम से नवाज़ती रहती थीं।
शिकागो में एक दिन सुबह
सवेरे ख़्वाजा बी का फ़ोन आया। बेगम साब की तबियत बहुत खराब है। डॉक्टर साहब बोले,
उनके बेटों को फ़ोन कर दो। सब को जल्दी आ जाओ
बोलो।
इस फ़ोन से हमारे घर में
हलचल मच गई। सब के प्रोग्राम डिस्टर्ब हो गए। अफ़सोस अम्मो हमेशा इसी तरह परेशान
करती हैं। भला ये कोई मौसम है इंडिया जाने का। गर्मी के मारे मर जाएँगे हम सब।
उनकी बहू नसीम घबरा गई।
हेल्लो.......हेल्लो.....
चारों तरफ से फ़ोन आने
लगे.......
न्यूयॉर्क से जमशेद कह
रहा था।
भाई जान! ख़्वाजा बी का
फ़ोन आया है कि चौबीस घंटे.........लेकिन मुझे इस वक़्त लीव लेना बहुत मुश्किल है।
लेकिन जमशेद ! तुम्हें
याद है कि हम सब ने अम्मो से प्रॉमिस किया था कि हम चारों भाई मिल कर उनकी डेड
बॉडी उठाएँगे। इसलिए हमें जाना पड़ेगा। रशीद ने उसे समझाया। फिर मुंबई से तीसरे
भाई ख़ुर्शीद का फ़ोन आया।
भाई जान। हम सब मिल कर
अमरीका तफ़रीह करने जा रहे थे। अब निशी को भी साथ ले जाऊँ तो इंडिया में गर्मी
बहुत होगी। आप वहाँ किसी फ़ाइव स्टार होटेल में हमारे लिए रिज़र्वेशन करा दीजिए।
‘हाँ भाई, मेरे भी इस मौसम में इंडिया जाना बहुत मुश्किल
है।‘
‘अम्मो अच्छी भली होंगी।
ज़रा दिल घबराया तो ख़्वाजा बी से फ़ोन करवा दिया है।‘
‘ख़ुर्शीद! मैंने अभी
डॉक्टर आरिफ़ से बात की। वो कह रहे थे कि ज़्यादा से ज़्यादा चौबीस घंटे…..’
‘तो फिर मैं आ जाऊँगा।
दिल्ली के एक सेमिनार का इन्विटेशन भी आया है।‘
‘अरे फिर तो हम एक हफ़्ते
में वापस आ जाएँगे न डेड……पैनकी ने खुश हो कर कहा।‘
‘हाँ बेबी। हम चारों
भाइयों ने अम्मो से प्रॉमिस किया है कि हम उनकी डेड बॉडी.....’
‘आफ्टर डेथ…….?’
बेबी ने मुँह बना कर कहा।
‘ग्रैंडमोम ने अपने चारों
बेटों के साथ ज़िंदगी एंजॉय करने का कोई प्रॉमिस क्यों नहीं लिया.....?
उलझी साँसों के दर्द को
दिल में थामे । यही बात अम्मो भी सोच रही थीं.......सुनसान घर..... खाली
कमरे......सोना आँगन......अंधेरे कमरे में अकेली लेटी वो दर्द से तड़प रही थी,
किसी दवा का असर नहीं होता। बदन का कोई हिस्सा
काबू में न था। काँपते हाथ से पानी की बोतल उठाने की कोशिश करतीं तो सारा बिस्तर
भीग जाता। पानी......पानी.....ख़्वाजा बी........ख़्वाजा बी कहाँ मर गई.........?
किसका फ़ोन आया.......दरवाज़े पर कौन आया
है........?
ख़्वाजा बी कमरा बंद किए
अपने मियाँ के साथ सोती रहती थी। बुढ़िया को चिल्लाने की आदत हो गई है। मैं तो
पागल हो जाऊँगी यहाँ। कोई दूसरी नौकरी ढूँढो जी अब।
तो उनके मियाँ की वकालत बस
यूँ ही चलती थी। मगर अम्मो ने जायदाद बेच कर चारों बेटों को डॉक्टर, इंजीनियर बना दिया। अच्छी डिग्रियाँ मिलते ही
इन सब के पंख निकल आए और उन्होंने अमरीका की तरफ परवाज़ की ठानी.......अम्मो को ये
बात अच्छी न लगी। इतनी दूर। अल्लाह मियाँ के पिछवाड़े.........? हम सब अमरीका में जा बसेंगे........?
हम सब......?तुम्हें कौन ले जाएगा अमरीका? बच्चों के अबा ने हँस कर कहा था। अमरीका में
माँ बाप नहीं रहते हैं। वो नौजवानों का मुल्क है।
अच्छा.......तो माँ-बाप
कहाँ जाएँ? अम्मो ने तअज्जुब से पूछा
था। कूड़े की टोकरी में.....? अबा ने ख़फ़ा हो
कर कहा था।
दीवान घर के आँगन में
बैठी, कबूतरों को दाना डालते
मैं अम्मो सोचती थीं कि कूड़े का ढेर ही बन गया है ये घर ।
बार-बार लाइट चली जाती
है। अँधेरे में माचिस नहीं मिलती। पोस्टमैन कोई ख़त फेंक जाए तो वो किसी क्यारी के
पीछे पड़ा महीनों बाद मिलता है। वैसे भी उनके बेटे अब ख़त लिखने की पुरानी रस्म
भूल चुके थे। कभी ज़रूरत होती तो फ़ोन कर लेते हैं। दूधवाला दूध फाटक पर रख कर चला
जाता है तो रोज़ कुत्ता उठा कर ले जाता है। कभी आँगन में किसी बच्चे की गेंद गिर
जाए तो वो अंदर आने से पहले अम्मो की सूरत देखकर भाग जाता है। रिश्तेदारी को
फ़ुर्सत नहीं मिलती आने की।
कितनी बार वो फ़ोन पर
कहती थीं।
‘रशीद अब मैं तुम्हारे पास
आ जाऊँगी मुझे रोज़ बुखार आ जाता है। खाँसी बहुत बढ़ गई है। अकेले घर में जी
घबराता है|’
‘मगर अम्मो आपकी बीमारी का
इलाज यहाँ बहुत महंगा है। घर में कोई नहीं रहता। आपकी देखभाल कैसे होगी? रशीद अम्मो को अपनी मजबूरी सुनाता था।
‘अच्छा फिर पिंकी और तारिक
से कहो मुझसे फ़ोन पर बात करें। बच्चों को देखने को जी चाहता है मेरा.......बच्चों
को याद कर के उन्हें रोना आ जाता था।
‘वो बात यह है अम्मो कि
बच्चों को उर्दू नहीं आती। इसलिए वो आपकी बात नहीं समझ सकते। अम्मो फ़ोन रख देतीं।
मेरी बात कोई नहीं समझता। ना बेटे ना उनके माँ-बाप..........
जब तीनों भाई अमेरिका गए
तो अम्मो अबा के पास हमिद को छोड़ गए थे। हमिद का दिल पढ़ाई में नहीं लगता था।
सारा दिन निक्कमे दोस्तों के साथ घूमता। कभी स्टूडेंट्स यूनियन का झंडा उठा के
सड़कों पर घूम रहा है तो कभी किसी सियासी पार्टी के साथ नारे लगा रहा है। फिर एक
दिन सुना, वो किसी पार्टी में शामिल
हो गया है।
“तुम्हारे इम्तहान में एक
महीना रह गया है। स्टडी क्यों नहीं करते? अब्बा उससे बार-बार याद दिलाते थे।
अब्बा मैं इस साल इम्तहान
नहीं दूँगा। मुझे इलेक्शन का काम करना है। अब्बा बहुत ख़फ़ा हुए। अम्मो ने रो-रो
कर समझाया। मुस्तकबिल के भयानक नक़्शे खींचते, जब ज़िंदगी भर भाइयों के आगे हाथ फैलाना पड़ेगा। मगर हमिद
अब घर बहुत कम आता था। फिर ख़बर आई कि किसी पार्टी के मेंबर को मारने के जुर्म में
हामिद गिरफ़्तार हो गया है। सुना है वो आदमी हॉस्पिटल में मर गया.......
सारे मोहल्ले के लोग
अब्बा अम्मो को पुरसा (तस्सली) देने आए। जाने कौन से गुनाह की सज़ा मिली कि हमिद
इस घर में पैदा हुआ। अब उसे फाँसी की सज़ा मिलेगी। दोस्त रिश्तेदार ताज़ियत के लिए
आने लगे।
‘फांसी पर चढ़ेंगे हमिद के
दुश्मन, अब वो तो हमारा हीरो है।
हमिद के दोस्त कह रहे थे। उनकी पार्टी अक्सरिय्यत (बहुतम) में आ गई थी। इसलिए कुछ
दिनों तक इस मुकदमे की कार्रवाई चलती रही। फिर मामला ठप हो गया। एक दिन हमिद का एक
दोस्त आया तो उसने अम्मो से कहा।
‘कोई वर्कर दो-चार मर्डर
कर डालें तो पार्टी उसे इलेक्शन का टिकट देने पर मजबूर हो जाती है।‘
वही हुआ। हमिद के गुनाहों
की लंबी लिस्ट ने उसे अपनी पार्टी का सबसे अहम लीडर बना दिया। अब देखता हूँ कि
हमारे इलाके का कौन वोटर है जो मुझे वोट दिए बगैर ज़िंदा रह सकता है। अम्मो और अब
दम साधे बैठे रहते थे।
जब गले में फूलों के हार
डाले एक जलूस के साथ हमिद घर आया। अब्बा दोनों हाथों में मुँह छिपाए बैठे थे। वो
अब्बा से गले मिलने के लिए झुका तो अब्बा नीचे गिर पड़े......
फिर हमिद मिनिस्टर बन गया
और ज़िद की। अम्मो मेरे साथ दिल्ली चलिए। सरकारी बंगले में रहना, गवर्नमेंट के झंडे वाली कार में घूमना, खूब ठाट करना। अम्मो ने मिनिस्टर की अम्मी बनने
के लिए कई नए जोड़े सिलवाए नई चप्पलें ख़रीदीं। मगर वो मिनिस्टर के बंगले में फिट
न हो सकीं। नौकरों से गोश्त तरकारी का हिसाब माँगतीं, चौकीदार और ड्राइवर के सलामों के जवाब में जीते रहो,
सलामत रहो कहकर खुश होतीं। बंगले के लॉन में
धूप के रुख खाट डाल कर पापड़ सीखने बैठ जातीं। चुनांचे मिनिस्टर की बेगम ने उन्हें
फिर वहीँ म भेज दिया जहाँ वो सर झुकाए
अचार मुरब्बे बनाने में लगी रहतीं।
तीन दिन हो गए। सब अम्मो
के आस-पास हाथ बाँधे खड़े थे। बार-बार ऑक्सीजन का ट्यूब ठीक करते। अम्मो को कुछ
होने वाला है। इस आने वाले दुःख को वो अपने चेहरों पर पेंट कर चुके थे। अम्मो बड़ी
मुश्किल से आँखें खोलकर सबको देखतीं। हमिद नहीं आया.......मेरा हामिद......शायद
अम्मो का दिमाग हमिद में अटका हुआ है.......
ख़्वाजा बी कह रही थी कि
हमीद दिल्ली में है। इस बार उसकी पार्टी को चुनाव में बहुमत नहीं मिली। अब हामिद
मिनिस्टर नहीं रहेगा। ऐसे वक़्त में वो दिल्ली से बाहर कैसे जा सकता है?
“मगर हम सब ने अम्मो से
वादा किया था कि उनके आखिरी वक़्त.........रशीद बहुत ग़ुस्से में था। अम्मो
बार-बार आँखें खोलतीं।
‘तुम सबको अपने पास देखकर
मेरा जी चाह रहा है कि बच्चों को अपने हाथ से पुलाव बना कर खिलाऊँ।‘
इस वक़्त भी अम्मो का दिल
पुलाव में अटका है........अल्लाह तौबा। उनकी बड़ी बहू ने उनके गालों को छूकर अम्मो
से कहा। अम्मो यासीन पढ़िए। अल्लाह को याद कीजिए।
‘मेरा हामिद....अब मेरे
जनाज़े को कंधा देने......वो फिर रोने लगी। तुम सबने मुझसे वादा किया था कि मेरे
जनाज़े को चारों भाई मिल कर उठाओगे।
“हेलो हेलो। अब अम्मो का
क्या हाल है.....? हामिद का दिल्ली
से फ़ोन आ गया। क्या......? ऑक्सीजन दी जा
रही है। मगर अब ऑक्सीजन देने से क्या फ़ायदा। जब डॉक्टर कह चुका है कि......भाई
जान मेरी बात सुनो। अगर ख़ुदा न ख़ास्ता अम्मो को आज रात कुछ हो गया तो प्राइम
मिनिस्टर मुझे तस्सली देने आएँगे। लेकिन परसों हमारी मिनिस्ट्री खत्म हो रही है।
इस आप अम्मो को फ़ौरन किसी अच्छे शानदार
हॉस्पिटल में ले जाएँ। इंतकाल की न्यूज़ टी.वी. पर आए तो उस हॉस्पिटल का नाम भी
होना चाहिए।
फिर उसने कहा। ‘ज़रा भाभी
को फ़ोन दीजिए।‘
हेलो भाभी ! सब इंतज़ाम
अच्छा कीजिए। ख़र्च की फ़िक्र मत करना। मुमकिन है टी.वी. वाले भी अपनी न्यूज़ में
शामिल करने के लिए घर पर आएँ। आप फ़िक्र न करें हमिद भाई। मैंने सब इंतज़ाम कर
दिया है। भाभी ने इत्मीनान दिलाया। ‘क्या
कह रहा है हमिद? कब आ रहा है वो?’
अम्मो ने डूबती साँसों को रोक कर कहा।
तब ड्राइंग रूम में जाकर
ख़ुर्शीद ने कहा।
‘कल मुझे दिल्ली में एक
सेमिनार अटेंड करना है’ और मैं सिर्फ तीन दिन की लीव लेकर आया था।‘
‘बच्चे गर्मी से घबराए जा
रहे हैं। अमरीकन बहुएँ मुँह बना कर कहा।
सुबह-सवेरे अम्मो की आँख
खुलने से पहले वो सब चुपके-चुपके गेट के बाहर निकले। उन्होंने ख़्वाजा बी को अम्मो
की अच्छी तरह देखभाल करने की हिदायत दी और बहुत से डॉलर, रियाल, रुपये उसके हाथों
में थमा दिए। अम्मो की ख़ैरियत के लिए हमें फ़ोन करती रहना। बाय। बाय...
ख़्वाजा बी अंदर आई और यह
देखकर डर गई कि अम्मो की आँखें खुली हुई थीं। शायद उन्होंने अपने बेटों को जाते
हुए देख लिया था। फिर उसने एक दुकान का फ़ोन नंबर मिलाया। हेल्लो.... मय्यत ले
जाने वाली एक लॉरी भेज दीजिए और साथ में चार आदमी भी हों। और कुछ नहीं चाहिए। उनके
हेल्पर लड़के हर चीज़ का इंतज़ाम कर गए हैं।

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