उसने कहा था
चंद्रधर शर्मा गुलेरी
परिचय
1. जन्म- 7 जुलाई 1883
2. निधन- 12 सितंबर 1922
3. जन्म स्थान – जयपुर, राजस्थान
4. मूल निवास – ‘गुलेर’ नामक ग्राम, जिला- कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश
5. पिता- पंडित शिवराम
6. शिक्षा- बचपन में
संस्कृत की शिक्षा, 1899 में इलाहाबाद तथा कोलकाता विश्वविद्यालयों
से क्रमशः एंट्रेंस तथा मैट्रिक, 1901 में कोलकाता
विश्वविद्यालय से इंटरमीडिएट, 1903 में इलाहाबाद
विश्वविद्यालय से बी० ए० |
7. वृत्ति- 1904 में जयपुर दरबार की
ओर से खेतड़ी के नाबालिग राजा जयसिंह के अभिवावक बनकर मेयो कॉलेज, अजमेर में आ गए |
जयपुर भवन छात्रावास के अधीक्षक | 1916 में संस्कृत विभाग
के अध्यक्ष | अंतिम दिनों में मदन मोहन मालवीय के निमंत्रण पर बनारस हिन्दू
विश्वविद्यालय में प्राच्य विभाग के कार्यवाहक प्राचार्य तथा मनिंद्र चंद्र नंदी
पीठ के प्रोफेसर |
8. संपादन- समालोचक, काशी नगरी
प्रचारिणी पत्रिका
9. रचनाएँ- कहानियाँ – सुखमय जीवन (1911), बुद्धू का कांटा(1911), उसने कहा था (1915)
10. निबंध- कछुआ धरम, मारेसि मोहिं
कुठाँव, पुरानी हिन्दी, भारतवर्ष, डिंगल, संस्कृत की टिपरारी, देवनां प्रिय आदि।
11. अंग्रेजी में – ए पोयम बाय भास, ए कमेंटरी ऑन
वात्स्यायंस कामसूत्र, दि लिटेररी कृटिसिज्म
12. उसने कहा था कहानी हिंदी कहानी के विकास में ‘मील का पत्थर’
मणि जाती है |
13. प्रसिद्ध फ़िल्मकार विमल राय ने इस कहानी पर फिल्म भी बनाई है|
पाठ का सारांश
कहानी का प्रारंभ अमृतसर नगर के चौक बाजार में एक 8
वर्षीय सिख बालिका तथा एक 12 वर्षीय सिख बालक के बीच छोटे से वार्तालाप से होता है
। दोनों ही बालक - बालिका अपने - अपने मामा के यहां आए हुए हैं । बालिका व बालक
दोनों सामान खरीदने बाजार आए थे कि बालक मुस्कुराकर के बालिका से पूछता है “ क्या तेरी कुडमाई ( सगाई ) हो गई ?" इस पर बालिका कुछ
आँखे चढ़ाकर “ धत " कहकर दौड़ गई और
लड़का मुंह देखता रह गया | यह दोनों बालक बालिका दूसरे तीसरे दिन एक दूसरे से कभी
किसी दुकान पर कभी कहीं टकरा जाते और वही प्रश्न और वही उत्तर | एक दिन ऐसा हुआ कि
बालक ने वही प्रश्न पूछा और बालिका ने उसका उत्तर लड़की की संभावना के विरुद्ध
दिया और बोली “ हां हो गई ।
” इस उत्तर को सुनकर लड़का चौक पड़ता है और पूछता है कब ? लड़की कहती है “ कल देखते नहीं यह रेशम से कढ़ा हुआ साल !”
और यह कह कर भाग जाती है | परंतु लड़के के ऊपर मनोव्रजपात होता है और वह किसी को
नाली में धकेलता है , किसी छाबड़ी वाले की छाबड़ी गिरा देता है , किसी कुत्ते को
पत्थर मारता है , किसी सब्जी वाले के ठेले में दूध उड़ेल देता है और किसी सामने
आती हुई वैष्णवी से टक्कर मार देता है और गाली खाता है | कहानी का पहला भाग यही
नाटकीय ढंग से समाप्त हो जाता है | इस बालक का नाम था लहना सिंह और बालिका बाद में
सूबेदारनी के रूप में हमारे सामने आती है । इस घटना के 25 वर्ष बाद कहानी का दूसरा
भाग शुरू होता है । लहना सिंह युवा हो गया और जर्मनी के विरुद्ध लड़ाई में लड़ने
वाले सैनिकों में भर्ती हो गया | और अब वह 77 राइफल्स में जमादार है | एक बार वह
सात दिन की छुट्टी लेकर अपनी जमीन के किसी मुकदमे की पैरवी करने घर आया था । वहीं
उसे अपने रेजिमेंट के अवसर की चिट्ठी मिलती है की फौज को युद्ध पर जाना है , फ़ौरन
चले आओ | इसी के साथ सेना के सूबेदार हजारा सिंह को भी चिट्ठी मिलती है कि उसे और
उसके बेटे बोधा सिंह दोनों को ( लाम ) युद्ध पर जाना है , अतः साथ ही चलेंगे |
सूबेदार का गांव रास्ते में पड़ता है और वह लहना सिंह को चाहता भी बहुत था | लहना
सिंह सूबेदार के घर पहुंच गया जब तीनों चलने लगे तब अकेले में सूबेदारनी उसे " कुड़माई हो गई " वाला वाक्य दोहरा कर कर 25
वर्ष पहले की घटना की याद दिलाती है और कहती है कि जिस तरह उस समय उसने एक बार
घोड़े की लातों से उसकी रक्षा की थी उसी प्रकार उसके पति और एकमात्र पुत्र की भी
रक्षा करें | वह उसके आगे अपना आँचल पसार का भिक्षा मांगती है | यह बात ललन सिंह
के दिल छू जाती है | युद्ध भूमि पर उसने सूबेदारनी के बेटे को अपने प्राणों की
चिंता न करके जान बचाई । पर इस कोशिश में वह खुद घातक रूप से घायल हो गया | उसने
अपने घाव पर बिना किसी को बताए कसकर पट्टी बांध लिया और इसी अवस्था में जर्मन
सैनिकों का मुकाबला करता रहा | शत्रुपक्ष की पराजय के बाद उसने सूबेदारनी के पति
और उसके पुत्र को गाडी में सकुशल बैठा दिया और चलते हुए कहा “ सुनिए तो सूबेदारनी को चिट्ठी लिखो तो मेरा मत्था टेकना लिख देना और जब घर जाओ
तो कह देना कि मुझसे जो उन्होंने कहा था वह मैं कर दिया | सूबेदार पूछता ही रह गया
उसने क्या कहा था कि गाड़ी चल दी । बाद में उसने वजीरा से पानी मांगा और कमरबंद
खोलने को कहा क्योंकि वह खून से टार था तथा मृत्यु निकट होने होने पर जीवन की सारी
घटनाएं चलचित्र के समान घूम गई और अंतिम वाक्य जो उसके मुंह से निकला वह था “ उसने कहा था " इसके बाद अखबार में छपा कि “ फ्रांस और बेल्जियम 68 सूची मैदान में घावों से भरा नं . 77 सिख राइफल जमादार
सिंह । इस प्रकार अपनी बचपन की छोटी सी मुलाकात में हुए परिचय उसके मन में
सूबेदारनी के प्रति जो प्रेम उदित हुआ था उसके कारण उसने सूबेदारनी के द्वारा कहे
गए वाक्यों को स्मरण रख उसके पति व पुत्र की रक्षा करने में अपनी जान दे दी
क्योंकि उसने कहा था |
Objective Question
1.
उसने कहा था कहानी के कहानीकार कौन है?
a)भगत
सिंह
b)उदय
प्रकाश
c)चंद्रधर शर्मा गुलेरी
d)रघुवीर
सहाय
2.
हिंदी की पहली श्रेष्ठ कहानी कौन सी है?
a)गौरा
b)उसने कहा था
c)पूस की रात
d)पंच
परमेश्वर
3.
गद्य का विकास किस काल में हुआ?
a)आधुनिक काल
b)मध्ययुगीन
काल
c)भक्ति काल
d)इनमें
से कोई नहीं
4.
उसने कहा था कहानी किस वर्ष में लिखी गई?
a)1920
b)1915
c)1921
d)1914
5.
किरात सिंह कौन है?
a)लहना सिंह का भतीजा
b)सुबरदानी
का बेटा
c)लहना
का भाई
d)इनमें
से कोई नहीं
6.
उसने कहा था कैसी कहानी है?
a)फ्लैशबैक स्टाइल
b)हैप्पी
एंडिंग
c)पेनफुल स्टोरी
d)इनमें
से कोई नहीं
7.
चंद्रधर गुलेरी की कहानी कौन सी है?
a)सिपाही
की मां
a)उसने कहा था
c)रोज
d)जूठन
8.
किसी कहानी को महान कौन बनाता है?
a)कहानी
के किरदार
b)कहानी के उद्देश्य
c)कहानी का अंत
d)इनमें
से कोई नहीं
9.
चंद्रधर शर्मा गुलेरी किस युग के कहानीकार हैं?
a)प्रेमचंद युग
b)भात्रेंदु
युग
c)भक्ति
योग
d)इनमें
से कोई नहीं
10.
उसने कहा था कहानी कितने भागों में बाटी हुई है?
a)3
b)4
c)5
d)6
11.
पाठ में किस महीने का नाम आया है?
a)कार्तिक
b)पूस
c)बैसाख
d)इनमें
से कोई नहीं
12.
पलटन का विदूषक कौन था?
a)लहना
सिंह
b)वजीर सिंह
c)उधम सिंह
d)बर्क
सिंह
13.
चंद्रधर शर्मा गुलेरी का जन्म कब हुआ था?
a)1883
b)1980
c)1850
d)1805
14.
चंद्रधर शर्मा गुलेरी की वृत्ति क्या है?
a)व्यापार
b)खेती
बारी
c)अध्यापन
d)इनमें
से कोई नहीं
15.
गुलेरी जी ने किस पत्रिका का संपादन किया?
a)गंगा
b)माधुरी
c)समालोचक
d)इनमें
से कोई नहीं
16.
काशी नगरी पत्रिका के गुलेरी जी क्या है?
a)लेखक
b)कवि
c)संपादक
d)इनमें
से कोई नहीं
17.
कुछ दूर जाकर लड़के ने पूछा “तेरी _______ हो गई”
a)शादी
b)कुडमाई
c)पढाई
d)इनमे
से कोई नहीं
18.
लड़का और लड़की में भेद कहां हुई थी?
a)चौक में
b)गली
में
c)सड़क पर
d)ट्रेन
में
19.
लहंगा सिंह किस देश की ओर से युद्ध कर रहा था?
a)भारत
b)इंग्लैंड
c)नेपाल
d)अमेरिका
20.
लहना सिंह का सिर किस की गोद में था?
a)बोधा
सिंह
b)वजीरा सिंह
c)हजारा सिंह
d)दुर्गा
सिंह
21.
लड़की कहां रहती थी?
a)अतर सिंह की बैठक में
b)नानी
की कोठी में
c)मगरे में
d)मामा
के घर में
22.
नकली लड़ाई के पीछे लहना सिंह कहाँ शिकार पर गया था?
a)जगाधरी
b)अमृतसर
c)रोहतक
d)जालंधर
Question Answer
1. ‘उसने कहा था’ कहानी कितने
भागों में बटी हुई है? कहानी के कितने भागों में युद्ध का वर्णन है?
उत्तर- “उसने कहा था” कहानी को पांच भागों में बांटी गई है| इस पूरी कहानी में तीन भागों में युद्ध
का वर्णन है| दुसरे, तीसरे और चौथे भाग में युद्ध के दृश्य हैं|
2. कहानी के
पात्रों की एक सूची तैयार करें|
उत्तर- कहानी में कई
पात्र हैं जिनमें से कुछ प्रमुख हैं और कुछ गौण| कहानी के पात्रों के नाम
निम्नलिखित हैं|
लहनासिंह (नायक), सूबेदारनी, सूबेदार हजारासिंह, बोधासिंह (सूबेदार का बेटा),
अतरसिंह (लड़की का मामा), माहासिंह
(सिपाही), वजीरासिंह (सिपाही), आदि
3. लहनासिंह
का परिचय अपने शब्दों में दे|
उत्तर- लहना सिंह एक
वीर सिपाही है| वह उसने कहा था कहानी का प्रमुख पात्र तथा नायक हैं| लेखक ने कहानी
में उसके चरित्र को पूरी तरह उभारा है|
कहानी में उसके चरित्र की निम्नलिखित व्यवस्था उभर कर सामने आई है|
कहानी का नायक: कहानी का समस्त घटनाक्रम लहनासिंह के आसपास घटता है| जिससे यह
स्पष्ट होता है कि वह कहानी का प्रमुख पात्र तथा नायक है|
सच्चा प्रेमी- लहनासिंह एक सच्चा प्रेमी है| बचपन में उसके हृदय में एक अनजान
भावना ने जन्म लिया जो प्रेम था| यद्यपि उसे अपना प्रेम ना मिल सका लेकिन फिर भी
उसने सच्चाई से उसे अपने हृदय में बसा रखा|
बहादुर तथा निडर: लहनासिंह बहादुर तथा निडर
व्यक्तित्व का स्वामी है | तभी तो बैठे रहने से बेहतर युद्ध को समझा था|
वचन पालन: सुबेदरानी लहना सिंह से अपने पति और बेटे के प्राणों की रक्षा करने की
बात कही थी लेकिन लहना सिंह ने उसे एक वचन की तरह निभाया और इसके लिए अपने प्राण
न्योछावर कर दिए|
4. पाठ से
लहना और सूबेदारनी के संवादों को एकत्रित करें|
उत्तर- पाठ में
लहनासिंह और सूबेदारनी के बीच कुछ संवाद है जो निम्नलिखित है|
बचपन का संवाद-
“तेरा घर कहां है?”
“मगरे में- और तेरा|”
“माँझे” में; यहां कहां रहती है?”
“अतरसिंह की बैठक में, वे
मेरे मामा होते है |”
“मैं भी मामा के यहाँ हूँ,
उनका घर गुरु बाज़ार में है”
इतने में दुकानदार........... लड़के ने मुस्कुराकर पूछा ---“तेरी कुडमाई हो गई?”
इस पर लड़की कुछ आंख चढ़ाकर धत कहा कर दौर गई|
सूबेदार के घर का संवाद---
“मुझे पहचाना”
“नहीं”
“तेरी कुडमाई हो गई?
‘धत’---कल हो गई”
“सूबेदारनी कह रही है—“मैंने तेरे को आते ही पहचान लिया|........तुम्हारे
आगे मैं अंचल पसारती हूँ”
5. “कल, देखते नहीं या रेशम से गढ़ा हुआ सालू|” वह सुनते ही लहना
की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर- “कल, देखते नहीं यह रेशम से गढ़ा हुआ सालू|” सुनते ही लहना को काफी गुस्सा आया| साथ ही वह अपने
सुध बुध खो बैठा| इसलिए घर वापस आते समय एक लड़के को नाली में धकेल दिया| एक खोमचे वाले के खोमचे से बिखेर दिए| एक कुत्ते
को पत्थर मारा और एक सब्जी वाले की का दूध उड़ेल दिया| एक पूजा पाठ करने वाली औरत
से टकरा गया जिससे उसे अंधा का कहा| तब जाकर अपने घर पहुंचा|
6. “जाडा क्या है, मौत है और निमोनिया से मरने वाले को मुरब्बे
नहीं मिला करते”, वजीरासिंह के इस कथन का क्या आशय है”
उत्तर- “जादा क्या है, मौत है और निमोनिया से मरने वाले को
मुरब्बे नहीं मिला करते” वजीरासिंह के इस
कथन का आशय है कि वहां युद्ध के मैदान में अत्यधिक ठंडा पड़ रही है जिसके कारण ऐसा
लगता है कि मानो उसकी जान ही निकल जाएगी वैसे भी इस स्थिति में इतने लोगों को
निमोनिया हो रहा है कि उन्हें मरने के लिए स्थान भी नहीं मिल रहा है
7. ‘कहती है, तुम राजा
हो, मेरे मुल्क को बचने आये हो|” वजीरा के इस कथन
में किसकी ओर संकेत है?
उत्तर- “कहती है, तुम राजा हो मेरे को बचाने आए हो|” वजीरा के इस कथन में फ्रांस की मेम ओर संकेत है|
8. लहनासिंह
के गांव में आया तुर्की मौलवी क्या कहता है?
उत्तर- लहना के गांव
में आया तुर्की मौलवी कहता था कि जर्मनी वाले बड़े पंडित है| वेद पढ़- पढ़कर उसमें
विमान चलाने की विद्या जान गए है | मंडी में बनियों को बहकत था की डाकखाने से
रुपया निकल लो, सर्कार का राज्य जाने वाला है|
9. मर्म स्पष्ट करें-
(क) 'अब के हाड़ में यह आम खूब फलेगा । चाचा भतीजा दोनों
वहीं बैठकर आम खाना । जितना बड़ा भतीजा है उतना ही यह आम है । जिस महीने उसका जन्म
हुआ था , उसी महीने मैंने इसे लगाया था ।'
उत्तर- घायल लहनासिंह मृत्यु के आगोश में समाता चला जा रहा है उसकी स्मृतियाँ
उभर रही हैं । उसके साथ ही उसके मन में भावात्मक दृश्य भी कौंध रहे हैं जिनके साथ
कल्पना भी उभर आयी है । वह ग्रामांचल का व्यक्ति है अत : वहाँ की स्थिति उसकी
चेतना में उभर आना स्वाभाविक है और वह गाँव का आम का पेड़ याद करता है । कल्पना
बड़ी सुखद है , सामयिक है और वह भावी कल्पना में डूब जाता है । इसी कल्पना से उसके
सामने से उसकी मृत्यु का भय टलता चला जाता है । वह यह कल्पना करता है , वह जियेगा
, मृत्यु पर भी विजय पायेगा और सुखी जीवन भी जियेगा यह है उसकी जिजीविषा ।
( ख )और अब घर जाओ तो कह देना कि मुझे जो उसने
कहा था वह मैंने कर दिया ।
प्रस्तुत पंक्तियाँ उस समय का चित्रण करती है जब युद्ध में लहनासिंह को शत्रु की
गोलियाँ लग जाती हैं । वह बुरी तरह घायल हो जाता है तथा मरणासन्न अवस्था में पहुँच
जाता है । अपना अन्तिम समय निकट जानकर वह वजीरासिंह से कहता है कि जब वह घर जाये तो
सूबेदारनी से कहे कि उसने लहनासिंह को जो करने के लिए कहा था , वह काम लहनासिंह ने
पूरा कर दिया अर्थात् उसने अपने जीवन का त्यागकर उसके पति वजीरासिंह व उसके पुत्र
बोधासिंह के प्राणों की रक्षा की है । इस प्रकार उसने सूबेदारनी को दिया हुआ अपना
वचन पूर्ण किया ।
उसने कहा था कहानी
बड़े-बड़े शहरों के
इक्के-गाड़ीवालों की जवान के कोड़ों से जिनकी पीठ छिल गई है और कान पक गए हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि अमृतसर के बंचूकाटंवालों की
बोली का मरहम लगावें । जब बड़े-बड़े शहरों की चौड़ी सड़कों पर घोड़े की पीठ को
चाबुक से धुनते हुए इक्केवाले कभी घोड़े की नानी से अपना निकट संबंध स्थिर करते
हैं, कभी राह चलते पैदलों की आँखों के न होने पर तरस
खाते हैं, कभी उनके पैरों की अंगुलियों
के पोरों को चौंथकर अपने ही को सताया हुआ बताते हैं और संसार भर की ग्लानि, निराशा और शोभ के अवतार बने नाक की सीध चले जाते हैं, तब अमृतसर में उनकी बिरादरीवाले तंग चक्करदार गलियों में, हर एक लखीवाले के लिए ठहरकर सत्र का समुद्र उमड़ाकर 'बयो खालसाजी'
'हटो भाईजी' 'उहरनों भाई'
'आने दो लालाजी हटो
काछा' करते हुए सफेद फोटों, खच्चरों और बतकों, गन्ने और खोमचे और भारंवालों
के जंगल में सह खेते हैं। क्या मजाल है कि जी और साहब बिना सुने किसी को हटना
पड़े। यह बात नहीं कि उनकी जीभ चलती ही नहीं;
चलती है, पर मीठी छुरी की तरह महीन मार करती है। यदि कोई बुढ़िया
बार-बार चितौनी देने पर भी लीक से नहीं हटती,
तो उनकी वचनावली के
ये नमूने हैं- 'हट जा, जीणे जोगिए;
हट जा, करमा वालिए;
हट जा, पुर्त्ता प्यारिए;
बच जा, लंबी वालिए ।'
समष्टि में इसका
अर्थ है कि तू जीने योग्य है, तू भाग्योंवाली है, पुत्रों को प्यारी है,
लंबी उमर तेरे सामने
है, तू क्यों मेरे पहियों के नीचे आना चाहती है? बच जा।
ऐसे बंबूकार्टवालों
के बीच में होकर एक लड़का और एक लड़की चौक की एक दूकान पर आ मिले । उसके बालों और
इसके ढीले सुधने से जान पड़ता था कि दोनों सिख हैं। वह अपने मामा के केश धोने के
लिए दही लेने आया था और यह रसोई के लिए बड़ियाँ । दूकानदार एक परदेशी से गुथ रहा था, जो सेर भर गीले पापड़ों की गड्डी को गिने बिना हटता नं था
।
"तेरे घर कहाँ है?"
"मगरे में और तेरे!"
"माँदो में;
यहाँ कहाँ रहती है?"
"अतरसिंह की बैठक में, वे मेरे मामा होते हैं।"
"मैं भी मामा के यहाँ हूँ, उनका घर गुरुबाजार में है।"
इतने में दूकानदार
निबटा और इनका सौदे देने लगा। सौदा लेकर दोनों साथ-साथ चले । कुछ दूर जाकर लड़के ने मुसकुराकर पूछा-
"तेरी कुड़माई हो गई?" इस पर लड़की कुछ आँखें चढ़ाकर 'धन्' कहकर पौड़ गई और लड़का मुँह देखता रह गया ।
दूसरे-तीसरे दिन
सब्जीवाले के यहाँ, दूधवाले के यहाँ, अकस्मात् दोनों मिल जाते। महीना घर यहाँ हाल रहा। दो-तीन
बार लड़के ने फिर पूछा, "तेरी कुड़माई हो गई?" और उत्तर में वही 'धतु' मिला। एक दिन जब फिर लड़के ने जैसे ही हंसी में
चिढ़ाने के लिए पूछा तब लड़की,
लड़के की संभावना
के विरुद्ध बोली "हाँ हो गई।"
"कब?"
"कल - देखते नहीं यह रेशम से कड़ा हुआ सालू ।"
लड़की भाग गई। लड़के ने घर की राह ली। रास्ते में एक लड़के को मोरी में ढकेल दिया, एक छाबड़ीवाले की दिन भर की कमाई खोई, एक - कुत्ते को पत्थर मारा और एक गोभीवाले के ठेले में दूध
उड़ेल दिया । सामने नहाकर आती हुई किसी वैष्णवी से टकराकर अंधे की उपाधि पाई। तब
कहीं घर पहुंचा ।
(2)
"राम राम, यह भी कोई लड़ाई है। दिन-रात खंदकों में बैठे हड्डियाँ अकड़
गई। लुधियाने से दस गुना जाड़ा,
और मेंह और बरफ ऊपर
से। पिंडलियों तक कीच में भैंसे हुए हैं। गनीम कहीं दिखता ही नहीं--घंटे दो घंटे
में कान के परदे फाड़ने वाले धमाके के साथ सारी खंदक हिल जाती है और सौ-सौ गज धरती
उछल पड़ती है। इस गैबी गोले से बचे तो कोई लड़े। नगरकोट का जलजला सुना था, यहाँ दिन में पचीस जलजले होते हैं। जो कहाँ खंदक से बाहर
साफा या कुहनी निकल गई तो चटाक से गोली लगती है। न मालूम बेईमान मिट्टी में लेटे
हुए हैं या यास की पत्तियों में छिपे रहते हैं।"
"लहनासिंह,
और तीन दिन हैं। चार
तो खंदक में बिदा हो दिए। परसों 'रिलीफ' आ जाएगी और फिर सात दिन की छुट्टी। अपने हाथों झटका करेंगे
और पेट भर खाकर सो रहेंगे। उसी फिरंगी मेम के बाग में-मखमल की सी हरी घास है। फल
और दूध की वर्षा कर देती है। लाख कहते हैं,
दाम नहीं लेती। कहती
है, तुम राजा हो,
मेरे मुल्क को बचाने
आए हो ।"
"चार दिन तक पलक नहीं झेंपी। बिना फेरे घोड़ा
बिगड़ता है और बिना लड़े सिपाही । मुझे तो संगीन चढ़ाकर मार्च
का हुक्म मिल जाए फिर सात जर्मनों को अकेला मारकर न लौटूं तो मुझे दरबार साहब
की देहली पर मत्था
टेकना नसीब न हो। पाजी कहीं के,
कलों के घोड़े संगीन
देखते ही मुँह फाड़ देते हैं और पैर पकड़ने लगते हैं।
यों अँधेरे में तीस-तीस मन का गोला फेंकते हैं। उस दिन धावा किया था-चार मील तक एक जर्मन नहीं छोड़ा था। पीछे जनरल ने हट आने का कमान दिया, नहीं तो-" "नहीं तो सीधे बर्लिन पहुँच जाते।
क्यों?" सूबेदार हजारासिंह ने
मुसकुराकर कहा, "लड़ाई के मामले जमादार या
नायक के चलाए नहीं चलते। बड़े अफसर दूर की सोचते हैं। तीन सौ मील का सामना है। एक
तरफ बढ़ गए तो क्या होगा ?"
"सूबेदारजी,
सच है," लहनासिंह बोला, "पर करें क्या? हड्डियों में तो जाड़ा धँस
गया है। सूर्य निकलता नहीं और खाई में दोनों तरफ से चंबे की बावलियों के-से सोते झड़ रहे
हैं। एक धावा हो जाए तो गर्मी आ जाए।"
"उदमी,
उठ, सिगड़ी में कोले डाल । वजीरा, तुम चार जन बाल्टियाँ लेकर खाई का पानी बाहर फेकों । महासिंह, शाम हो गई है,
खाई के दरवाजे का
पहरा बदल दे।" यह कहते हुए सूबेदार सारी खंदक में चक्कर लगाने लगे ।
वजीरासिंह पलटन का
विदूषक था। बाल्टी में गँदला पानी लेकर खाई के बाहर फेंकता हुआ बोला- "मैं पाधा
बन गया हूँ। करो जर्मनी के बादशाह का तर्पण ।" इस पर सब खिलखिला पड़े और
उदासी के बादल फट गए ।
लहनासिंह ने दूसरी
बाल्टी भर उसके हाथ में देकर कहा- "अपनी बाड़ी के खरबूजों में पानी दो। ऐसा खाद-पानी पंजाब भर में नहीं मिलेगा।"
"हाँ,
देश क्या है, स्वर्ग है। मैं तो लड़ाई के बाद सरकार से दस घुमा जमीन यहाँ
माँग लूँगा और फलों के बूटे लगाउँगा।"
"लाड़ीहोरं को भी यहाँ बुला लोगे ? या वही दूध पिलानेवाली फिरंगी मेम-"
"चुप कर । यहाँ वालों को शरम नहीं ।"
"देस-देस की चाल है। आज तक मैं उसे समझा न सका कि
सिख तमाकू नहीं पीते । वह सिगरेट देने में हठ करती है, ओठों में लगाना चाहती है, और मैं पीछे हटता हूँ तो समझती है कि राजा बुरा मान गया, अब मेरे मुल्क के लिए लड़ेगा नहीं।"
"अच्छा अब बोधासिंह कैसा है?"
"अच्छा है।"
"जैसे मैं जानता ही न होऊँ। रात भर तुम अपने दोनों
कंबल उसे उढ़ाते हो और आप सिगड़ी के सहारे गुजर करते हो । उसके पहरे पर आप पहरा दे
आते हो। अपने सूखे लकड़ी के तख्तों पर उसे सुलाते हो और आप कीचड़ में पड़े रहते
हो। कहीं तुम न मंदे पड़ जाना। जाड़ा क्या है, मौत है और 'निमोनिया' से मरनेवालों को मुरब्बे नहीं मिला करते ।"
"मेरा डर मत करो। मैं तो बुलेल को खड्ड के किनारे
मरूंगा। भाई कीरतसिंह की गोदी पर मेरा सिर होगा और मेरे हाथ के लगाए हुए आँगन के
आम के पेड़ की छाया होगी ।"
वजीरासिंह ने त्यौरी
चढ़ाकर कहा- "क्या मरने-मरने की लगाई है ! मरे जर्मनी और तुरक ! हाँ भाइयो, कुछ गाओ। हाँ कैसे-
"दिल्ली शहर ते पिशौर नूँ जाँदिए,
कर लेणा लौंगाँ दा
व्यौपार मंडिए;
कर लेणा नाड़ेदा
सौदा अड़िए-
(ओय) लाणा चटाका कदुए नूं।
कद्दू वणयाए मजेदार
गोरिए,
हुण लागा चटाका कदुए
नूं ॥"
('ऐ दिल्ली शहर से पेशावर को
जाने वाली! मंडी में लौंग का व्यार करना। अरी! नाड़े का सौदा भी कर लेना। ओय अब
हमें कद्दू चखना है। ये गोरे वर्णवाली! कद्दू अत्यंत स्वादिष्ट पका है। अब हमें
कद्दू चखना है |)
कौन जानता था कि दाढ़ियों
वाले, घरबारी सिख ऐसा लुच्चे का गीत गाएँगे, पर सारी खंदक गीत से गूंज उठी और सिपाही फिर ताजे हो गए, मानो चार दिन से सोते और मौज ही करते रहे हों ।
(3)
दो पहर रात गई है।
अंधेरा है। सन्नाटा हुआ है। बोधासिंह खाली बिस्किटों के तीन टिनों पर अपने दोनों
कंबल बिछाकर लहनासिंह के दो कंबल और एक बरानकोट ओढ़ कर सो रहा है। लहनासिंड पहरे
पर खड़ा हुआ है। एक आँख खाई के मुँह पर है और एक बोधासिंह के दुबले शरीर पर ।
बोधासिंह कराहा ।
"क्यों बोधा भाई, क्या है ?"
"पानी पिला दो।"
लहनासिंह ने कटोरा
उसके मुँह से लगाकर पूछा- "कहो,
कैसे हो?" पानी पीकर बोधा बोला- "कंपनी छूट रही है।
रोम-रोम में तार दौड़ रहे हैं। दाँत बज रहे हैं।"
"अच्छा,
मेरी जरसी पहन
लो।"
"और तुम?"
"मेरे पास सिगड़ी है और मुझे गर्मी लगती है। पसीना आ
रहा है।"
"ना,
मैं नहीं पहनता; चार दिन से तुम मेरे लिए-“
"हाँ,
याद आई । मेरे पास
दूसरी गरम जरसी है। आज सबेरे ही आई है। विलायत से मेमें बुन-बुनकर भेज रही हैं।
गुरु उनका भला करें।" यों कहकर लहना अपना कोट उतारकर जरसी उतारने लगा ।
"सच कहते हो?י
"और नहीं झूठ ?"
यों कहकर नाही करते
बोधा को उसने जबरदस्ती जरसी पहना दी और आप खाकी कोट जीन का कुरता भर पहनकर पहरे पर
आ खड़ा हुआ। मेम की जरसी की कथा केवल कथा थी।
आधा घंटा बीता। इतने
में खाई के मुँह से आवाज आई "सूबेदार हजारासिंह !"
"कौन लपटन साहब? हुकुम हुजूर," कहकर सूबेदार तनकर फौजी सलाम
करके सामने हुआ ।
"देखो,
इसी दम धावा करना
होगा। मील भर की दूरी पर पूरब के कोने में एक जर्मन खाई है।
उसमें पचास से
जियादह जर्मन नहीं है | इन पेड़ों के निचे-निचे दो खेत काटकर रास्ता है | तीन-चार
घुमाव है। जहाँ मोड़ है वहां पन्दरह जवान खड़े कर आया हूँ | तुम यहाँ दस आदमी छोड़कर
सब को साथ ले उनसे जा मिलो | खंदक छीनकर वहीँ, जब तक दूसरा हुक्म न मिले, डटे रहो |
हम यहाँ रहेगा |”
“जो हुक्म |”
चुपचाप सब तैयार हो
गए। बोधा भी कंबल उतारकर चलने लगा। तब लहनासिंह ने उसे रोका। लहनासिंह आगे हुआ, तो
बोधा के बाप सूबेदार ने ऊँगली से बोधा की ओर इशारा किया। लहनासिंद समझकर चुप हो
गया। पीछे दस आदमी कौन रहें, इस पर बड़ी हुज्जत हुई। कोई
रहना न चाहता था। समझा-बुझाकर सूबेदार ने मार्च किया। लपटन साहब लहना की सिगड़ी के
पास मुँह फेरकर खड़े हो गए और जेब से सिगरेट निकालकर सुलगाने लगे। दम मिनट बाद
उन्होंने लहना की ओर हाथ बढ़ाकर कहा-
"लो तुम भी पियो ।"
आँख मारते-मारते
लहनासिंह सब समझ गया। मुँह का भाव छिपाकर बोला "लाओ, साहब।" हाथ आगे करते ही उसने सिगड़ी के उजाले में साहब
का मुँह देखा। बाल देखे। जब उसका माथा ठनका। लपटन साहब के पट्टियोंवाले बाल एक दिन
में कहाँ उड़ गए और उनकी जगह कैदियों के-से कटे हुए बाल कहाँ से आ गए?
शायद साहब शराब पिए
हुए हैं और उन्हें बाल कटाने का मौका मिल गया है। लहनासिंह ने जाँचना चाहा। लपटन
साहब पाँच वर्ष से उसकी रेजिमेंट में थे ।
'क्यों साहब,
हमलोग हिंदुस्तान कब
जाएँगे ?"
"लड़ाई खत्म होने पर। क्यों, क्या यह देश पसंद नहीं?"
"नहीं साहब,
शिकार के वे मजे
यहाँ कहाँ? याद है, पारसाल नकली लड़ाई के पीछे हम-आप जगाधरी जिले में शिकार
करने गए थे|... हाँ, हाँ-वहीं जब आप खोते पर सवार
थे और आपका खानसामा अब्दुल्ला रास्ते के एक मंदिर में जल चढ़ाने को रह गया था।...
बेशक, पाजी कहीं का । ....सामने से वह नीलगाय निकली कि
ऐसी बड़ी मैंने कभी न देखी थी। और आपकी एक गोली कंधे में लगी और पुट्टे में निकली।
ऐसे अफसर के साथ शिकार खेलने में मजा है। क्यों साहब, शिमले से तैयार होकर उस नीलगाय का सिर आ गया था न ? आपने कहा था कि रेजिमेंट की मैस में लगाएँगे।
"हाँ,
पर मैंने वह विलायत
भेज दिया|
"ऐसे बड़े-बड़े सींग ! दो-दो फुट के तो होंगे।"
"हाँ,
लहनासिंह, दो फुट चार इंच के थे। तुमने सिगरेट नहीं पिया ?"
'पीता हूँ साहब, दियासलाई ले आता हूँ।' कहकर लहनासिंह खंदक में
घुसा। अब उसे संदेह नहीं रहा था और उसने झटपट निश्चय कर लिया कि क्या करना चाहिए ।
अँधेरे में किसी
सोने वाले से वह टकराया ।
"कौन ?
वजीरासिंह ?"
“हाँ, क्यों लहना ? क्या क़यामत आ गई?
जरा तो आँख लगने दी होती?”
(4)
"होश में आओ। क़यामत आई है और
लपटन साहब की वर्दी पहनकर आई है|”
"क्या ?"
लपटन साहब या तो मारे
गए हैं या कैद हो गए हैं । उनकी वर्दी पहनकर यह कोई जर्मन आया है| सूबेदार ने इसका
मुंह नहीं देखा । मैंने देखा और बातें की है,
सौहरा साफ़ उर्दू बोलता है, पर किताबी उर्दू । और मुझे पोते को सिगरेट
दिया है।"
"तो अब ?"
"अब मारे गए। धोखा है। सूबेदार कीचड़ में चक्कर काटते
फिरेंगे और यहाँ खाई पर धावा होगा। उधर उन पर खुले में धावा होगा। उठो, एक काम करो। पलटन के पैरों के निशान देखते-देखते दौड़ जाओ ।
अभी बहुत दूर म गए होंगे। सूबेदार से कहो कि एकरम लौट आएँ। खंदक की बात झूठ है।
चले जाओ, खंदक के पीछे से निकल जाओ। पत्ता तक न खड़के। देर
गह करो।"
"हुकुम तो यह है कि
यहीं-"
"ऐसी-तैसी हुकुम की।
मेरा हुकुम-जमादार लहनासिंह जो इस वक्त यहाँ सबसे बड़ा अफसर है, उसका हुकुम है। मैं लपटन साहब की खबर लेता हूँ।"
"पर 'यहाँ तो तुम आठ ही हो !"
"आठ नहीं, दस लाख। एक-एक अकालिया सिख सवा लाख के बराबर होता है। चले
जाओ।"
लौटकर खाई के मुहाने
पर लहनासिंह दीवार से चिपक गया। उसने देखा कि लपटन साहब ने जेब से बेल के बराबर
तीन गोले निकाले। तीनों को जगह-जगह खंदक की दीवारों में घुसेड़ दिया और तीनों में
एक तार सा बाँध दिया | तार के आगे सूत की एक गुत्थी थी जिसे सिगड़ी के पास रखा । बाहर की तरफ कर एक
दियासलाई जलाकर गुत्थी पर रखने...
बिजली की तरह दोनों
हाथों से उलटी बंदूक को उठाकर लहनासिंह ने साहब की कुहनी पर तानकर दे मारा । धमाके
के साथ साहब के हाथ से दियासलाई गिर पड़ी। लहनासिंह ने एक कुंदा साहब की गर्दन पर
मारा और साहब आँख ! मीन गौटट (ओ माइ गॉड) कहते हुए चित हो गए। लहनासिंह ने तीनों गोले बीनकर खंदक
के बाहर फेंके और साहब को घसीट कर सिगड़ी के पास लिटाया । जेबों की तलाशी ली।
तीन-चार लिफाफे और एक डायरी निकाल कर उन्हें अपनी जेब के हवाले किया ।
साहब की मूर्च्छा
हटी । लहनासिंह हँसकर बोला "क्यों लपटन साहब। मिजाज कैसा है ? आज मैंने बहुत बातें सीखीं। यह सीखा कि सिख सिगरेट पीते
हैं। यह सीखा कि जगाधरी के जिले में नील गायें होती हैं और उनके दो फुट चार इंच के
सींग होते हैं। यह सीखा कि मुसलमान खानसामा मूर्तियों पर जल चढ़ाते हैं और लपटन
साहब खोते पर चढ़ते हैं। पर यह तो कहो,
ऐसी साफ उर्दू कहाँ
से सीख आए ? हमारे लपटन साहब तो बिना 'डैम' के पाँच लफ्ज भी नहीं बोला
करते थे।"
लहना ने पतलून की जेबों की तलाशी नहीं ली थी। साहब ने मानो जाड़े
से बचाने के लिए दोनों हाथ जेबों में डाले। लहनासिंह कहता गया "चालाक तो बड़े हो,
पर ,माँझे का लहना
इतने बरस लपटन साहब के साथ रहा है। उसे चकमा देने के लिए चार आँखें चाहिए। तीन
महीने हुए, एक तुरकी मौलवी मेरे गाँव
में आया था। औरतों को बच्चे होने की ताबीज बाँटता था और बच्चों को दवाई देता था।
चौधरी के बड़ के नीचे मंजा बिछाकर हुक्का पीता रहता था और कहता था जर्मनीवाले बड़े
पडित हैं। वेद पढ़-पढका उसमें से विमान चलाने की विद्या जान गए हैं। गौ को नहीं
मारतें। हिंदुस्तान में आ जाएँगे तो गौ-हत्व बंद कर देंगे। मंत्री के बनियों को
बहकाता था कि डाकखाने से रुपए निकाल लो,
सरकार का राज्य जा
आता है। डाक बाबू पोल्हूराम भी डर गया था। मैंने मुल्लाजी की दाढ़ी मुँह दी थी और
गाँव से बाह निकालकर कहा था जो मेरे गाँव में अब पैर रखा तो-"
साहब की जेब में से
पिस्तौल चला और लहना की जाँथ में गोली लगी। इधर लहना के हैनरी-मार्टिनी के दो
फायरों ने साहब की कपाल क्रिया कर दी। धड़ाका सुनकर सब दौड़ आए ।
बोधा चिल्लाया
"क्या है ?"
लहनासिंह ने उसे तो
यह कहकर सुला दिया कि "एक हड़का हुआ कुत्ता आया था, मार दिया। और औरों से सब हाल कह दिया। सब बंदूकें लेकर
तैयार हो गए। लहना ने साफ़ा फाड़कर घाव की दोनों तरफ पट्टियाँ कसकर बाँधी। घाव
मांस में ही था। पट्टियों के कसने से लहू निकलना बंद हो गया|
उतने में सत्तर
जर्मन चिल्लाकर खाई में घुस पड़े। सिखों को बंदूकों की बाढ़ ने पहले धावे को रोका।
दूसरे को रोका। पर यहाँ थे आठ (लहना सिंह तक तककर भारं रहा था वह खड़ा था, और लो हुए थे) और वे सत्तर । अपने मुर्दा भाइयों के शरीर पर
चढ़कर जर्मन आगे घुसे आते थे। थोड़े से मिनट में वे...
अचानक आवाज आई-'वाह गुरुजी की फतह । वाह गुरुजी का खालसा !' और धड़ाधड़ बंदूक के फायर जर्मनों की पीठ पर पड़ने लगे। ऐन
मौके पर जर्मन दो चवकी के पाटों के बीच में आ गए पीछे से सूबेदार हजारासिंह के
जवान आग बरसाते थे। और सामने लहनासिंह के साथियों के संगीन चल रहे थे। पास आने पर
पीछेवालों ने भी संगीन पिरोना शुरू कर दिया ।
एक किलकारी
और-"अकाल सिक्खों दी फौज आई। वाह गुरुजी दी फतह । वाह गुरुजी खालसा !! सत्
सिरी अकाल पुरुष !!!" और लड़ाई खतम हो गई। तिरसठ जर्मन या तो खेत रहे या करा
रहे थे। सिखों में पंद्रह के प्राण गए। सूबेदार के दाहिने कंधे में से गोली आर-पार
निकल गई। लहनासिंह की पसली में एक गोली लगी। उसने घाव को खंदक की गीली मिट्टी से
पूर लिया और बाकी का साफा कसकर कमरबंद की तरह लपेट लिया। किसी को खबर न हुई कि
लहना के दूसरा घाव-भारी घाव लगा है।
लड़ाई के समय चाँद
निकल आया था। ऐसा चाँद, जिसके प्रकाश से संस्कृत
कवियों का दिया हुआ 'क्षयी' नाम सार्थक होता है। और हवा ऐसी चल रही थी जैसी कि बाणभट्ट
की भाषा 'दंतवीणोपदेशाचार्य' कहलाती | वजीरासिंह कह रहा था कि कै मन-मन भर प्राँस की
भूमि मेरे बूटों से चिपक रही थी जब में दौड़ा-दौड़ा सूबेदार के पीछे गया था।
सूबेदार लहनासिंह से सारा हाल सुन और कागजात पाकर, उसकी तुरंत बुद्धि को सराह रहे थे और कह रहे थे कि तू न होता तो आज सब मारे
जाते।
इस लड़ाई की आवाज
तीन मील दाहिनी ओर को खाईवालों ने सुनी थी। उन्होंने पीछे से टेलीफोन कर दिया था। वहां
से झटपट दो डॉक्टर और दो बीमार ढोने की गाड़ियाँ चली, , जो कोई डेढ़ घंटे के अंदर आ पहुंचीं। फील्ड अस्पताल नजदीक
था । सुबह होते-होते वहाँ पहुँच जाएँगे,
इसलिए मामूली पट्टी
बाँधकर एक गाड़ी में घायल लिटाए गए और दूसरी में लाशें रखी गई। सूबेदार ने
लहनासिंह की जांघ में पट्टी बंधवानी चाही। पर उसने यह कहकर टाल दिया कि थोडा घाव
है, सबरे देखा जाएगा। बोधासिंह ज्वर में बर्रा रहा था।
वह गादी में लिटाया गया। लहना को छोड़कर सूबेदार जाते नहीं थे। यह देख लहना ने
कहा- "तुम्हें बोधा की कसम है और सूबेदारनी की सौगंध जो इस गाड़ी में न चले
जाओ।"
"और तुम ?"
"मेरे लिए वहाँ पहुँचकर गाड़ी भेज देना। और जर्मन
मुरदों के लिए भी तो गाड़ियों आती होंगी। मेरा हाल बुरा नहीं है। देखते नहीं में
खड़ा हूँ? वजीरासिंह मेरे पास है
ही।"
"अच्छा पर..."
"बोधा गाड़ी पर लेट गया? भला। आप भी चढ़ जाओ। सुनिए तो, सूबेदारनी को चिट्ठी लिखो तो मेरा मत्था टेकना लिख देना ।
और जब घर जाओ तो कह देना कि मुझसे जो उन्होंने कहा था, वह मैंने कर
दिया।"
गाड़ियाँ चल पड़ी थीं। सूबेदार ने चढ़ते चढ़ते लहना का हाथ पकड़कर कहा- "तूने
मेरे और बोधा के प्राण बचाए हैं। लिखना कैसां ?
साथ ही घर चलेंगे।
अपनी सूबेदारनी को तू ही कह देना । उसने क्या कहा था?"
"अब आप गाड़ी पर चढ़ जाओ। मैंने जो कहा है वह लिख
देना और कह भी देना ।" गाड़ी के जाते ही लहना लेट
गया। "वजीरा पानी पिला दे और मेरा कमरबंद खोल दे। तर हो रहा है।
(5)
मृत्यु के कुछ समय
पहले स्मृति बहुत साफ हो जाती है। जन्म भर की घटनाएँ एक-एक करके सामने आती हैं।
सारे दृश्यों के रंग साफ होते हैं,
समय की धुंध बिलकुल
उन पर से हट जाती है ।
लहनासिंह बारह वर्ष
का है। अमृतसर में मामा के यहाँ आया हुआ है। दहीवाले के यहाँ सब्जीवाले के यहाँ, हर कहीं उसे एक आठ वर्ष की लड़की मिल जाती है। जब वह पूछता
है तेरी कुड़माई या हो गई ? तब 'धत्' कहकर वह भाग जाती है। एक दिन
उसने वैसे ही पूछा तो उसने कहा- "हाँ,
कल में हो गई, देखते नहीं,
यह रेशम के
फूलोंवाला सालू ?" सुनते ही लहनासिंह को दुख
हुआ। क्रोध हुआ क्यों हुआ ?
“वजीरासिंह, पानी पिला दे।"
पच्चीस वर्ष बीत गए।
अब लहनासिंह न० 77 राइफल्स में जमादार हो गया है। उस आठ वर्ष की कन्या
का ध्यान ही न रहा। न मालूम वह कभी मिली थी या नहीं। सात दिन की छुट्टी लेकर जमीन
के मुकदमें को पैरवी करने अपने घर गया। वहाँ रेजिमेंट के अफसर की चिट्ठी मिली कि फौज
लाम पर जाती है। फौरन चले आओ । साथ ही सूबेदार हजारासिंह की चिट्टी मिली कि मैं और
बोधसिंह भी लाम पर जाते हैं, लौटते समय हमारे घर होते
जाना। साथ चलेंगे। सूबेदार का गाँव रास्ते में पड़ता था और सूबेदार उसे बहुत
चाहता था। लहनासिंह सूबेदार के यहाँ पहुँचा।
जब चलने लगे तब सूबेदार बेड़े में से निकलकर आया। बोला
"लहना, सूबेदारनी तुमको जानती है।
बुलाती है। जा मिल आ। "लहनासिंह भीतर पहुँचा। सूबेदारनी मुझे जानती है? कब से ? रेजिमेंट के क्वार्टरों में
तो कभी सूबेदार के घर के लोग रहे नहीं। दरवाजे पर जाकर 'मत्था टेकना'
कहा। असीस सुने । लहनासिंह
चुप ।
"मुझे पहचाना ?"
"नहीं"
"तेरो कुड़माई हो गई ? 'धत्' कंल हो गई-देखते नहीं रेशमी बूटोंवाला सालू -अमृतसर
में-" भावों की टकराहट से मूर्च्छा खुली। करवट बदली। पसली का घाव बह निकला ।
"वजीरा पानी पिला ।" उसने कहा था।
स्वप्न चल रहा है।
सूबेदारनी कह रही है- "मैंने तेरे को आते ही पहचान लिया । एक काम कहती हूँ।
मेरे तो भाग फूट गए। सरकार ने बहादुरी का खिताब दिया है, लायलपुर में जमीन दी है, आज नमकहलाली का मौका आया है। पर सरकार ने हम तीमियों की घघरिया पलटन क्यों न
बना दी, जो मैं भो सूबेदारजी के साथ चली जाती? एक बेटा है। फौज में भरती हुए उसे एक ही वर्ष हुआ। उसके
पीछे चार और हुए, पर एक भी नहीं जिया।"
सूबेदारनी रोने लगी-"अब दोनों जाते हैं। मेरे भाग ! तुम्हें याद है एक दिन
टाँगेवाले का घोड़ा दहीवाले की दूकान के पास बिगड़ गया था। तुमने उस दिन मेरे
प्राण बचाए थे। आप घोड़े की लातों में चले गए थे और मुझे उठाकर दूकान के तख्ते पर
खड़ा कर दिया था। ऐसे ही इन दोनों को बचाना। यह मेरी भिक्षा है। तुम्हारे आगे मैं
आँचल पसारती हूँ।
रोती-रोती सूबेदारनी
ओबरी में चली गई। लहगा भी आँसू पोछता हुआ बाहर आया । "वजीरासिंह पानी
पिला।" उसने कहा था ।
X X X
लहना का सिर अपनी
गोद में रखे वजीरासिंह बैठा है। जब माँगता है, तब पानी पिला देता है। आध घंटे तक लहना चुप रहा, फिर बोला-
"कौन कीरत सिंह ?"
वजीरा ने कुछ समझकर
कहा- "हाँ ।"
"भईया,
मुझे और ऊँचा कर ले।
अपने पट्ट पर मेरा सिर रख ले।"
वजीरा ने वैसा ही
किया।
"हाँ,
अब ठीक है। पानी
पिला दें। बस, अब के हाड़ में यह आम खूब
फलेगा । चाचा-भतीजा दोनों यहीं बैठ कर आम खाना। जितना बड़ा तेरा भतीजा है उतना ही
यह आम है। जिस महीने उसका जन्म हुआ था उसी महीने मैंने इसे लगाया था।"
वजीरासिंह के आँसू टपटप
टपक रहे थे ।
X X X
कुछ दिन पीछे लोगों
ने अखचारों में पढ़ा
फ्राँस और बेल्जियम-68वीं सूची-मैदान में घावों से
मरा-नं० 77 सिख राइफल्स जमादार
लहनासिंह ।

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