CHAPTER-1
बातचीत
बालकृष्ण भट्ट
बालकृष्ण भट्ट का परिचय
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जन्म- 23 जून 1844
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निधन- 20 जुलाई 1914
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निवास- इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
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माता-पिता- पार्वती देवी एवं बेनी
प्रसाद भट्ट | पिता एक व्यापारी थे और माता एक सुसंस्कृत महिला जिन्होंने बालकृष्ण
भट्ट के मन में अध्ययन की रूचि एवं लालसा |
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शिक्षा- प्रारंभ में संस्कृत का
अध्ययन, 1867 में प्रयाग के मिशन स्कूल से एंट्रेंस की परीक्षा दी |
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वृत्ति- 1869 से 1875 तक प्रयाग के मिशन
स्कूल में अध्यापन । 1885 में प्रयाग के सी० ए० वी० स्कूल में संस्कृत का अध्यापन । 1888 में प्रयाग की
कायस्थ पाठशाला इंटर कॉलेज में अध्यापक नियुक्त, किंतु उग्र स्वभाव के कारण
नौकरी छोड़नी पड़ी और उसके बाद से लेखन कार्य पर ही निर्भर ।
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विशेष
परिस्थिति- पिता के निधनोपरांत पैतृक
व्यापार सँभालने के नाम पर गृहकलह का सामना। पैतृक घर छोड़कर घोर आर्थिक संकट से
जूझते हुए हिम्मत से काम लिया और साहित्य के प्रति समर्पित रहे ।
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चनाएँ- उपन्यास: रहस्य कथा, नूतन ब्रह्मचारी, सौ अजान एक सुजान, गुप्त वैरी, रसात्तल यात्रा, उचि दक्षिणा, हमारी घड़ी, सद्भाव का अभाव ।
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नाटक- पद्मावती, किरातार्जुनीय, वेणी संहार, शिशुपाल वध, नल दमयंती या दमयंती
स्वयंन शिक्षादान, चंद्रसेन, सीता वनवास, पतित पंचम, मेघनाद वध, कट्टर सूम की एक नकल, वृहन्न
इंगलैंडेश्वरी और भारत जननी, भारतवर्ष और कलि, दो दूरदेशी, एक रोगी और एक वैद्य, रेल विकट खेल, बालविवाह आदि ।
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प्रहसन - जैसा काम वैसा परिणाम, नई रोशनी का विष, आचार विडंबन आदि ।
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निबंध - 1000 के आस-पास निबंध
जिनमें सौ से ऊपर बहुत महत्त्वपूर्ण । 'भट्ट निबंधमाला'
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बालकृष्ण भट्ट आधुनिक काल के भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार थे |
बातचीत पाठ का सारांश
प्रस्तुत निबंध ‘बातचीत’ के लेखक महान पत्रकार
बालकृष्ण भट्ट है बालकृष्ण भट्ट जी बातचीत निबंध के माध्यम से मनुष्य की ईश्वर
द्वारा दी गई अनमोल वस्तु वाकशक्ति का सही इस्तेमाल करने को बताते हैं। महान लेखक
बताते हैं कि यदि मनुष्य में वाकशक्ति ना होती तो हम नहीं जानते कि इस गूंगी
सृष्टि का क्या हाल होता। सब लोग मानो लुंज-पुंज अवस्था में एक कोने में बैठा दिए गए होते।
लेखक बातचीत के विभिन्न तरीके भी बताते हैं। जैसे घरेलू बातचीत मन रमाने का ढंग
है। वे बताते हैं कि जहां आदमी की अपनी जिंदगी मजेदार बनाने के लिए खाने-पीने चलने
फिरने आदि की जरूरत है उसी प्रकार बातचीत की भी अत्यंत आवश्यकता है। हमारे मन में
जो कुछ गंदगी या धुआ जमा रहता है वह बातचीत के जरिए भाप बनकर हमारे मन से बाहर
निकल पड़ता है| इससे हमारा चित्त हल्का और स्वच्छ हो जाता है| हमारे जीवन में
बातचीत का भी एक खास तरह का मजा होता है| यही नहीं भट्ट जी बताते हैं कि जब मनुष्य
बोलता नहीं तब तक उसका गुण दोष प्रकट होता है| महान विद्वान वेन जॉनसन का कहना है
कि बोलने से ही मनुष्य के रूप का सही साक्षात्कार हो पाता है| वे कहते हैं कि चार
से अधिक की बातचीत तो केवल राम रामौवल कह लाएगी| यूरोप के लोग को बातचीत का हुनर है जिसे आर्ट ऑफ कन्वर्सेशन
कहते हैं| बालकृष्ण भट्ट उत्तम तरीका यह मानते हैं कि हम वह शक्ति पैदा करें कि
अपने आप बात कर लिया करो|
BAATCHIT OBJECTIVE QUESTION
1.
बातचीत शीर्षक निबंध के निबंधकार ______ है|
a) बालकृष्ण भट्ट
b)भगत सिंह
c)मोहन राकेश
d)उदय प्रकाश
2.
बालकृष्ण भट्ट किस युग के रचनाकार हैं?
a)आधुनिक युग
b)भारतेंदु
युग
c)मध्यकालीन युग
d)भक्तिकाल युग
3.
“सौ अजान एक सुजान” उपन्यास के
लेखक कौन हैं?
a) रामधारी सिंह दिनकर
b)जय प्रकाश नारायण
c)बालकृष्ण भट्ट
d)ओम प्रकाश
4.
आर्ट ऑफ कन्वर्सेशन कहां के लोगों में सर्वाधिक प्रचलित है?
a)यूरोप के
b)एशिया के
c)भारत के
d)इंग्लैंड के
5.
बालकृष्ण भट्ट ने किस पत्रिका का संपादन किया था?
a)प्रदीप
b)गुप्त वैरी
c)सौ अजान एक सुजान
d)यात्रा
6.
बातचीत के माध्यम से बाल कृष्ण भट्ट क्या बताना चाहते हैं?
a)बातचीत की शैली
b)अच्छाई
c)बुराई
d)पढने की शैली
7.
निम्नलिखित में से बाल कृष्ण भट्ट का निवास स्थान कौन सा था?
a)इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
b)फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश
c)गाजीपुर उत्तर प्रदेश
d)गया बिहार
8.
बालकृष्ण भट्ट एंट्रेंस परीक्षा कब उतीर्ण की थी?
a)1867
b)1872
c)1870
d)1854
9.
बालकृष्ण भट्ट द्वारा कौन सा उपन्यास रचित है?
b) हमारी घडी
b)जैसा काम वैसा
परिणाम
c)नई रोशनी का विष
d)सीता वनवास
10.
बालकृष्ण भट्ट के पिता कौन थे?
a)बेनी प्रसाद भट्ट
b)रामप्रसाद भट्ट
c)शिव प्रसाद भट्ट
d)गौरी शंकर
11.
भट्ट जी ने प्रदीप का सञ्चालन कितने वर्ष में किया था?
a)28
b)36
c)33
d)27
12.
बालकृष्ण भट्ट का जन्म कब हुआ था?
a)23 जून, 1844
b)22 अप्रैल 1805
c)21 मई,1812
d)15जनवरी,1806
13.
बालकृष्ण भट्ट की मृत्यु कब हुई थी?
a) 23 जून , 1844
b) 20 जुलाई , 1914
c) 15 मार्च, 1909
d) 20सितंबर 1917
14.
बालकृष्ण भट्ट की मां का नाम क्या था?
a)सावित्री देवी
b)पार्वती देवी
c)राधिका देवी
d)श्यामा देवी
15.
बातचीत के जरिये भाप बनकर क्या बाहर निकल जाता है?
a)क्लेश
b)द्वेष
c)मवाद और
धुआं
d)ईर्ष्या
16.
बालकृष्ण भट्ट जी ने किस शब्दकोश का संपादन किया?
a)अंग्रेजी शब्दकोश
b)उर्दू शब्दकोश
c)संस्कृत शब्दकोश
d)हिंदी शब्दकोश
17.
मनुष्यों में ______ न होती तो हम नहीं जानते कि इस गूंगी
सृष्टि का क्या हाल होता
A)वाक शक्ति
b) चलने की शक्ति
c)सोचने की शक्ति
d)समझने की शक्ति
18.
असल बातचीत सिर्फ दो व्यक्तियों के बीच हो सकती है | यह
किसका मत है?
a)भट्ट जी
b)एडिसन
c)तुकाराम
d)गाँधी जी
19.
बात करने का हुनर किसके पास है?
a)अमेरिकावासियों के पास
b)जापानियों के पास
c)यूरोप
के लोगो के पास
d)हमारे पास
20.
सच है, जब तक मनुष्य
बोलता नहीं तब तक उसका______.प्रकट नहीं होता?
a) अच्छाई
b) बुराई
c)गुण-दोष
d) इसमें से कोई नहीं
21.
रबिसन क्रूसो कितने वर्षो तक मानव मुख नहीं ददेखा था?
a)22
b)27
c)16
d)10
BAATCHIT QUESTION ANSWER
1.
अगर हम में वाकशक्ति न होती तो क्या होता ?
उत्तर- अगर हममें वाकशक्ति न होती तो यह समस्त
सृष्टि गूंगी प्रतीत होती | सभी लोग चुपचाप बैठे रहते और हम जो बोलकर एक दूसरे के
सुख - दुख का अनुभव करते हैं वह शक्ति न होने के कारण एक दूसरे से कह-सुन भी नहीं
पाते और नहीं अनुभव कर पाते|
2.
दो हमजोली सहेलियों की बातचीत में क्या स्थिति होती है?
उत्तर- दो हम सहेलियों की बाचीत का स्वाद ही
निराला होता है | भावविभोर होकर दो हम सहेलियां जब बातचीत करती है तब ऐसा लगता है
मनो रस का समुन्दर ही उमड़ा चला आ रहा हो|
3.
राम-रमौवल का क्या अर्थ है?
चार से अधिक लोगों की बातचीत को राम-रमौवलकहा
जाता है |
4.
बातचीत के संबंध में वेन जॉनसन और एडिशन के क्या विचार हैं
?
उत्तर- बातचीत के संबंध में वेन जॉनसन का राय है
कि बोलने से ही मनुष्य के सही रूप का पता चल पाता है । अगर मनुष्य चुप-चाप रहे तो
उसके गुण-दोष का कभी पता नहीं चल पायेगा | एडिशन का राय है कि असल बातचीत सिर्फ दो
व्यक्तियों में हो सकती है | जिसका तात्पर्य हुआ जब दो आदमी होते हैं तभी अपना दिल
एक दूसरे के सामने खोलते हैं जब तीन हुए तब वह दो बार कोसों दूर गई ।
5.
'आर्ट ऑफ कन्वर्सेशन' क्या है ?
उत्तर- आर्ट ऑफ कन्वर्सेशन बातचीत करने की एक
कला है जो यूरोप के लोगों में ज्यादा प्रचलित है । इस बातचीत कला में ऐसी चतुराई
के साथ प्रसंग छोड़े जाते हैं कि जिन्हें सुनकर कान को अत्यंत सुख मिलता है | साथ
ही इस का अन्य नाम शुद्ध कोष्टि है ।
6.
मनुष्य की बातचीत का उत्तम तरीका क्या हो सकता है ? इसके
द्वारा वह कैसे अपने लिए सर्वथा नवीन संसार की रचना कर सकता है ?
उत्तर- मनुष्य में बातचीत का सबसे उत्तम तरीका
उसका आत्मवार्तालाप है । मनुष्य अपने अंदर ऐसी शक्ति विकसित करें जिसके कारण वह
अपने आप से बात कर लिया करें | आत्मा वार्तालाप से तात्पर्य क्रोध पर नियंत्रण
जिसके कारण अन्य किसी व्यक्ति को कष्ट न पहुंचे । क्युकी हमारी भीतरी मनोवृति नए
नए रंग दिखाया करती है | वह हमेशा बदलती रहती है | इन्सान को चाहिए की अपनी जिह्वा
को काबू में रखकर मधुरता से भरी वाणी बोले | जिससे न किसी से कटुता रहेगी न बैर |
इससे दुनिया खुबसूरत हो जाएगी | बातचीत का यही सबसे उत्तम तरीका है |
7.
व्याख्या करें
a ) हमारी भीतरी मनोवृति नए नए रंग दिखाती है |
वह प्रपंचात्मक संसार का एक बड़ा भारी आईना है , जिसमें जैसी चाहो वैसी सूरत देख
लेना कोई दुर्घट बात नहीं है ।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियां विद्वान लेखक
बालकृष्ण भट्ट द्वारा रचित बातचीत शीर्षक निबंध से लिया गया है । इन पंक्तियों में
लेखक ने लिखा है कि जब मनुष्य समाज में रहता है तो समाज से ही भाषा सीखता है |
भाषा उसके विचार अभिव्यक्ति का माध्यम बन जाती है । परंतु उसके अंदर की मनोवृति
स्थिर नहीं रहती है | कहा भी गया है कि चित बड़ा चंचल होता है । इसकी चंचलता के
कारण एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को दोस्त और दुश्मन मान लेता है | वह कभी क्रोध कर
बैठता है कभी - कभी मीठी बातें करता है । इस स्थिति में मनुष्य की असली चरित का
पता नहीं चलता मनुष्य के मन की स्थिति गिरगिट के रंगजैसे बदलती रहती है । इस
स्थिति के कारण लेखक इस मन के प्रपंचों को जड़ मानते हैं | वह कहता है कि यह आईना
के समान है । इस संसार में छल - कपट झूठ फरेब सब होते हैं । इसका सबसे बड़ा कारण
मन की चंचलता है । विद्वान लेखक इस स्थिति से बचने की सलाह भी देते हैं कि अपने मन
पर नियंत्रण रखना होगा|
b ) सच है जब तक मनुष्य बोलता नहीं तब तक उसका
गुण दोष नहीं होता
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियां विद्वान लेखक बालकृष्ण भट्ट द्वारा रचित बातचीत शीर्षक
निबंध से लिया गया है | निबंध के माध्यम से यह बताना चाहते हैं कि बातचीत ही एक
विशेष तरीका होता है जिसके कारण मनुष्य आपस में प्रेम से बातें कर उसका आनंद उठाते
हैं । परंतु मनुष्य जब वाचाल हो जाता है अथवा बातचीत के दौरान अपने आप पर काबू
नहीं रख पाता है तो वह दोष है परंतु जब वह बड़ी संजीदगी से सलीके से बातचीत करता
है तो वह गुण है । मनुष्य के चुप रहने के कारण उसके चरित्र का कुछ पता नहीं चलता
परंतु वह जैसे ही कुछ बोलता है तो उसकी वाणी के माध्यम से गुण - दोष प्रकट होने
लगता है ।
बातचीत निबंध
इसे तो सभी स्वीकार
करेंगे कि अनेक प्रकार की शक्तियाँ जो वरदान की भाँति ईश्वर ने मनुष्य को दी हैं,
उनमें वाक्शक्ति भी एक है। यदि मनुष्य की और
इंद्रियाँ अपनी-अपनी शक्तियों में अविकल रहतीं और वाक्शक्ति मनुष्यों में न होती
तो हम नहीं जानते कि इस गूँगी सृष्टि का क्या हाल होता । सब लोग लुंज-पुंज से हो
मानो कोने में बैठा दिए गए होते और जो कुछ सुख-दुख का अनुभव हम अपनी दूसरी-दूसरी
इंद्रियों के द्वारा करते, उसे अवाक् होने
के कारण, आपस में एक-दूसरे से कुछ
न कह-सुन सकते । इस वाक्शक्ति के अनेक फायदों में 'स्पीच' वक्तृता और
बातचीत दोनों हैं। किंतु स्पीच से बातचीत का ढंग ही निराला है। बातचीत में वक्ता
को नाज-नखरा जाहिर करने का मौका नहीं दिया जाता है कि वह बड़े अंदाज से गिन-गिनकर
पाँव रखता हुआ पुलपिट पर जा खड़ा हो और पुण्याहवाचन या नांदीपाठ की भाँति घड़ियों
तकं साहबान मजलिस, चेयरमैन, लेडीज एंड जेंटिलमेन की बहुत सी स्तुति
करे-करावे और तब किसी तरह वक्तृता का आरंभ करे। जहाँ कोई मर्म या नोक की चुटीली
बांत वक्ता महाशय के मुख से निकली कि ताली-ध्वनि से कमरा गूंज उठा। इसलिए वक्ता को
खामख्वाह ढूँढ़कर कोई ऐसा मौका अपनी वक्तृता में लाना ही पड़ता है जिसमें
करतलध्वनि अवश्य हो ।
वहीं हमारी साधारण बातचीत
का कुछ ऐसा घरेलू ढंग है कि उसमें न करतलध्वनि का कोई मौका है, न लोगों के कहकहे उड़ाने की कोई बात ही रहती
है। हम दो आदमी प्रेमपूर्वक संलाप कर रहे हैं। कोई चुटीली बात आ गई, हँस पड़े। मुसकराहट से होठों का केवल फड़क उठना
ही इस हँसी की अंतिम सीमा है। स्पीच का उद्देश्य सुननेवालों के मन में जोश और
उत्साह पैदा कर देना है। घरेलू बातचीत मन रमाने का ढंग है। उसमें स्पीच की वह
संजीदगी बेकदर हो धक्के खाती फिरती है।
जहाँ आदमी की अपनी जिंदगी
मजेदार बनाने के लिए खाने, पीने, चलने, फिरने आदि की जरूरत है, वहाँ बातचीत की
भी उसको अत्यंत आवश्यकता है। जो कुछ मवाद या धुआँ जमा रहता है, वह बातचीत के जरिए भाप बनकर बाहर निकल पड़ता
है। चित्त हल्का और स्वच्छ हो परम आनंद में घान हो जाता है। बातचीत का भी एक खास
तरह का मजा होता है। जिनको बातचीत करने की लत पड़ जाती है, वे इसके पीछे खाना-पीना भी छोड़ बैठते हैं। अपना बड़ा हर्ज
कर देना उन्हें पसंद आता है, पर वे बातचीत का
मजा नहीं खोना चाहते। राबिंसन क्रूसो का किस्सा बहुधा लोगों ने पढ़ा होगा जिसे 16
वर्ष तक मनुष्य-मुख देखने को भी नहीं मिला। कुत्ता, बिल्ली आदि जानवरों के बीच में रह 16 वर्ष के उपरांत उसने
फ्राइडे के मुख से एक बात सुनी। यद्यपि उसने अपनी जंगली बोली में कहा था, पर उस समय रॉबिंसन को ऐसा आनंद हुआ
मानो उसने नए सिरे से फिर से आदमी का चोला पाया। इससे सिद्ध होता है कि मनुष्य की
वाक्शक्ति में कहाँ तक लुभा लेने की ताकत है। जिनसे केवल 'पत्र-व्यवहार' है, कभी एक बार भी
साक्षात्कार नहीं हुआ, उन्हें अपने
प्रेमी से बातें करने की कितनी लालसा रहती है। अपना आभ्यंतरिक भाव दूसरे पर प्रकट
करना और उसका आशय आप ग्रहण कर लेना शब्दों के ही द्वारा हो सकता है। सच है,
जब तक मनुष्य बोलता नहीं तब तक उसका गुण-दोष
प्रकट नहीं होता । बेन जानसन का यह कहना कि बोलने से ही मनुष्य के रूप का
साक्षात्कार होता है, बहुत ही उचित जान
पड़ता है।
इस बातचीत की सीमा दो से लेकर वहाँ तक रखी जा सकती है, जहाँ तक उनकी जमात मीटिंग या सभा ने समझ ली जाए। एडीसन का
मत है कि असल बातचीत सिर्फ दो व्यक्तियों में हो सकती है, जिसका तात्पर्य यह हुआ कि जब दो आदमी होते हैं तभी अपना दिल
एक दूसरे के सामने खोलते हैं । जब तीन हुए तब वह दो की बात कोसों दूर गई। कहा भी
है कि छह कानों में पड़ी बात खुल जाती है। दूसरे यह कि किसी तीसरे आदमी के आ जाते
ही या तो वे दोनों अपनी बातचीत से निरस्त हो बैठेंगे या उसे निपट मूर्ख अज्ञानी
समझ बनाने लगेंगे ।
जैसे गरम दूध और ठंढे पानी के दो बर्तन पास-पास साट के रखे जाएँ तो एक का असर
दूसरे में पहुँच जाता
है, अर्थात दूध ठंढा हो जाता
है और पानी गरम, वैसे ही दो आदमी
पास बैठे हों तो एक का गुप्त असर दूसरे पर पहुँच जाता है, चाहे एक दूसरे को देखें भी नहीं, तब बोलने को कौन कहे, एक के शरीर की विद्युत दूसरे में प्रवेश करने लगती है। जब
पास बैठने का इतना असर होता है तब बातचीत में कितना अधिक अंसर होगा, इसे कौन न स्वीकार करेगा। अस्तु, अब इस बात को तीन आदमियों के साथ देखना चाहिए ।
मानो एक त्रिकोण सा बन जाता है। तीनों चित्त मानो तीन कोण हैं और तीनों की
मनोवृत्ति के प्रसरण की धारा मानो उस त्रिकोण की तीन रेखाएँ हैं। गुप-चुप असर तो
उन तीनों में परस्पर होता ही है। जो बातचीत तीन में की गई, वह मानो अँगूठी में नग सी जड़ जाती है। उपरांत जब चार आदमी
हुए तब बेतकल्लुफी को बिलकुल स्थान नहीं रहता। खुल के बातें न होंगी। जो कुछ
बातचीत की जाएगी वह 'फॉर्मेलिटी'
गौरव और संजीदगी के लच्छे में सनी हुई होगी।
चार से अधिक की बातचीत तो केवल राम-रमौवल कहलाएगी। उसे हम संलाप नहीं कह सकते। इस
बातचीत के अनेक भेद हैं। दो बुड्ढों की बातचीत प्रायः जमाने की शिकायत पर हुआ करती
है। वे बाबा आदम के समय की ऐसी दास्तान शुरू करते हैं; जिसमें चार सच तो दस झूठ । एक बार उनकी बातचीत का घोड़ा छूट
जाना चाहिए, पहरों बीत जाने पर भी अंत
न होगा। प्रायः अंग्रेजी राज्य, परदेश और पुराने
समय की रीति-नीति का अनुमोदन और इस समय के सब भाँति लायक नौजवानों की निंदा उनकी
बातचीत का मुख्य प्रकरण होगा ! पढ़े-लिखे हुए के लिए तो शेक्सपियर, मिल्टन, मिल और स्पेंसर जीभ पर नाचा करेंगे। अपनी लियाकत के नशे में
चूर 'हमचुनी दीगरे नेस्त'
अक्खड़पन की चर्चा छेड़ेंगे। दो हम सहेलियों की
बातचीत का कुछ जायका ही निराला है। रस का समुद्र मानो उमड़ा चला आ रहा है। इसका
पूरा स्वाद उन्हीं से पूछना चाहिए जिन्हें ऐसों की रस सनी बात सुनने को कभी भाग्य लड़ा
है।
दो बुढ़ियों की बातचीत का मुख्य प्रकरण, बहू-बेटी वाली हुईं तो, अपनी बहुओं या
बेटों का गिला शिकवा होगा । या वे बिरादराने का कोई ऐसा रमरसरा छेड़ बैठेंगी कि
बात करते-करते अंत में खोढ़े दाँत निकाल लड़ने लगेंगी । लड़कों की बातचीत, खिलाड़ी हुए तो, अपनी-अपनी तारीफ करने के बाद वे कोई सलाह गाँठेंगे जिससे
उनको अपनी शैतानी जाहिर करने का पूरा मौका मिले। स्कूल के लड़कों की बातचीत का
उद्देश्य अपने उस्ताद की शिकायत या तारीफ या अपने सहपाठियों में किसी के गुन-औगुन
का कथोपकथन होता है। पढ़ने में कोई लड़का तेज हुआ तो कभी अपने सामने दूसरे को कुछ
न गिनेगा 1 सुस्त और बोदा हुआ तो दबी बिल्ली का सा स्कूल भर को अपना गुरु ही
मानेगा। इसके अलावा बातचीत की और बहुत सी किस्में हैं। राजकाज की बात, व्यापार संबंधी बातचीत, दो मित्रों में प्रेमालाप इत्यादि । हमारे देश में अशिक्षित
लोगों में बतकही होती है। लड़की लड़केवालों की ओर से एक-एक आदमी बिचवई होकर दोनों
में विवाह संबंध की कुछ बातचीत करते हैं। उस दिन से बिरादरीवालों को जाहिर कर दिया
जाता है कि अमुक की लड़की का अमुक के लड़के के साथ विवाह पक्का हो गया और यह रसम
बड़े उत्सव के साथ की जाती है। चंडूखाने की बातचीत भी निराली होती है। निदान,
बात करने के अनेक प्रकार और ढंग हैं।
योरप के लोगों में बात
करने का हुनर है। 'आर्ट ऑफ कनवरसेशन'
यहाँ तक बढ़ा है कि स्पीच और लेख दोनों इसे
नहीं पाते। इसकी पूर्ण शोभा काव्यकला प्रवीण विद्वन्मंडली में है। ऐसे चतुराई के
प्रसंग छेड़े जाते हैं कि जिन्हें सुन कान को अत्यंत सुख मिलता है। सुहृद गोष्ठी
इसी का नाम है। सुहृद गोष्ठी की बातचीत की यह तारीफ है कि बात करनेवालों की लियाकत
अथवा पंडिताई का अभिमान या कपट कहीं एक बात में भी प्रकट न हो, वरन् क्रम में रसाभास पैदा करनेवाले शब्दों को
बरकते हुए चतुर सयाने अपनी बातचीत को सरस रखते हैं। वह रस हमारे आधुनिक शुष्क
पंडित की बातचीत में, जिसे शास्त्रार्थ
कहते हैं, कभी आवेगा ही नहीं। मुर्ग
और बटेर की लड़ाइयों की झपटा-झपटी के समाज उनकी नीरस काँव-काँव में सरस संलाप की
चर्चा ही चलाना व्यर्थ है, वरन् कपट और एक
दूसरे को अपने पांडित्य के प्रकाश से बाद में परास्त करने का संघर्ष आदि रसाभास की
सामग्री वहाँ बहुतायत के साथ आपको मिलेगी । घंटे भर तक काँव-काँव करते रहेंगे तो
कुछ न होगा। बड़ी-बड़ी कंपनी और कारखाने आदि बड़े से बड़े काम इसी तरह पहले दो-चार
दिली दोस्तों की बातचीत से शुरू किए गए। उपरांत बढ़ते-बढ़ते यहाँ तक बढ़े कि
हजारों मनुष्यों की उनसे जीविका चलने लगी और साल में लाखों की आमदनी होने लगी ।
पच्चीस वर्ष के ऊपरवालों की बातचीत अवश्य ही कुछ न कुछ सारगर्भित होती होगी,
अनुभव और दूरंदेशी से खाली न होगी और पच्चीस से
नीचे की बातचीत में यद्यपि अनुभव, दूरदर्शिता और.
गौरव नहीं पाया जाता, पर इसमें एक
प्रकार का ऐसा दिलबहलाव और ताजगी रहती है जिसकी मिठास उससे दस गुनी चढ़ी-बढ़ी है।
यहाँ तक हमने बाहरी
बातचीत का हाल लिखा है जिसमें दूसरे फरीक के होने की बहुत आवश्यकता है, बिना किसी दूसरे मनुष्य के हुए जो किसी तरह
संभव नहीं है और जो दो ही तरहे पर हो सकता है-या तो कोई हमारे यहाँ कृपा करे या
हमीं जाकर दूसरे को कृतार्थ करें। पर यह सब तो दुनियादारी है जिसमें कभी-कभी
रसाभास होते देर नहीं लगती। क्योंकि जो महाशय अपने यहाँ पधारें उनकी पूरी दिलजोई न
हो सकती तो शिष्टाचार में त्रुटि हुई। अगर हमीं उनके यहाँ गए तो पहले तो बिना
बुलाए जाना ही अनादर का मूल है और जाने पर अपने मन माफिक बर्ताव न किया गया तो
मानो दूसरे प्रकार का नया घाव हुआ। इसलिए सबसे उत्तम प्रकार बातचीत करने का हम यही
समझते हैं कि हम वह शक्ति अपने में पैदा कर सकें कि अपने आप बात कर लिया करें।
हमारी भीतरी मनोवृत्ति प्रतिक्षण नए-नए रंग दिखाया करती है, वह प्रपंचात्मक संसार का एक बड़ा भारी आईना है, जिसमें जैसी चाहो वैसी सूरत देख लेना कुछ
दुर्घट बात नहीं है और जी एक ऐसा चमनिस्तान है जिसमें हर किस्म के बेल-बूटे खिले
हुए हैं, ऐसे चमनिस्तान की सर में
क्या कम दिलबहलाव है ? मित्रों का
प्रेमालाप कभी इसकी सोलहवीं कला तक भी न पहुँच सका। इसी सैर का नाम ध्यान या
मनोयोग या चित्त को एकाग्र करना है जिसका साधन एक-दो दिन का काम नहीं। बरसों के
अभ्यास के उपरांत यदि हम थोड़ी भी अपनी मनोवृत्ति स्थिर कर अवाक् हो अपने मन के
साथ बातचीत कर सकें तो मानो अहोभाग्य । एक वाक्राफ्ति मात्र के दमन से न जाने
कितने प्रकार का दमन हो गया । हमारी जिह्वा कतरनी के समान सदा स्वच्छंद चला करती
है, उसे यदि हमने काबू में कर
लिया तो क्रोधादिक बड़े-बड़े अजेय शत्रुओं को बिना प्रयास जीत अपने वश में कर डाला।
इसलिए अवाक् रह अपने बातचीत करने का यह साधन यावत् साधनों का मूल है, शक्ति परम पूज्य मंदिर है, परमार्थ का एकमात्र सोपान है।
इसे तो सभी स्वीकार करेंगे
कि अनेक प्रकार की शक्तियाँ जो वरदान की भाँति ईश्वर ने मनुष्य को दी हैं, उनमें वाक्शक्ति भी एक है। यदि मनुष्य की और इंद्रियाँ
अपनी-अपनी शक्तियों में अविकल रहतीं और वाक्शक्ति मनुष्यों में न होती तो हम नहीं
जानते कि इस गूँगी सृष्टि का क्या हाल होता । सब लोग लुंज-पुंज से हो मानो कोने
में बैठा दिए गए होते और जो कुछ सुख-दुख का अनुभव हम अपनी दूसरी-दूसरी इंद्रियों
के द्वारा करते, उसे अवाक् होने के
कारण,
आपस में एक-दूसरे से कुछ न कह-सुन सकते । इस वाक्शक्ति के
अनेक फायदों में 'स्पीच' वक्तृता और बातचीत दोनों हैं। किंतु स्पीच से बातचीत का ढंग
ही निराला है। बातचीत में वक्ता को नाज-नखरा जाहिर करने का मौका नहीं दिया जाता है
कि वह बड़े अंदाज से गिन-गिनकर पाँव रखता हुआ पुलपिट पर जा खड़ा हो और पुण्याहवाचन
या नांदीपाठ की भाँति घड़ियों तकं साहबान मजलिस, चेयरमैन, लेडीज
एंड जेंटिलमेन की बहुत सी स्तुति करे-करावे और तब किसी तरह वक्तृता का आरंभ करे।
जहाँ कोई मर्म या नोक की चुटीली बांत वक्ता महाशय के मुख से निकली कि ताली-ध्वनि
से कमरा गूंज उठा। इसलिए वक्ता को खामख्वाह ढूँढ़कर कोई ऐसा मौका अपनी वक्तृता में
लाना ही पड़ता है जिसमें करतलध्वनि अवश्य हो ।
वहीं
हमारी साधारण बातचीत का कुछ ऐसा घरेलू ढंग है कि उसमें न करतलध्वनि का कोई मौका है, न लोगों के कहकहे उड़ाने की कोई बात ही रहती है। हम दो आदमी
प्रेमपूर्वक संलाप कर रहे हैं। कोई चुटीली बात आ गई, हँस पड़े। मुसकराहट से होठों का केवल फड़क उठना ही इस हँसी
की अंतिम सीमा है। स्पीच का उद्देश्य सुननेवालों के मन में जोश और उत्साह पैदा कर
देना है। घरेलू बातचीत मन रमाने का ढंग है। उसमें स्पीच की वह संजीदगी बेकदर हो
धक्के खाती फिरती है।
जहाँ
आदमी की अपनी जिंदगी मजेदार बनाने के लिए खाने, पीने, चलने, फिरने आदि की जरूरत है, वहाँ बातचीत की भी उसको अत्यंत आवश्यकता है। जो कुछ मवाद या
धुआँ जमा रहता है, वह
बातचीत के जरिए भाप बनकर बाहर निकल पड़ता है। चित्त हल्का और स्वच्छ हो परम आनंद
में घान हो जाता है। बातचीत का भी एक खास तरह का मजा होता है। जिनको बातचीत करने
की लत पड़ जाती है, वे इसके
पीछे खाना-पीना भी छोड़ बैठते हैं। अपना बड़ा हर्ज कर देना उन्हें पसंद आता है, पर वे बातचीत का मजा नहीं खोना चाहते। राबिंसन क्रूसो का
किस्सा बहुधा लोगों ने पढ़ा होगा जिसे 16 वर्ष तक मनुष्य-मुख देखने को भी नहीं
मिला। कुत्ता, बिल्ली आदि जानवरों
के बीच में रह 16 वर्ष के उपरांत उसने फ्राइडे के मुख से एक बात सुनी। यद्यपि उसने
अपनी जंगली बोली में कहा था, पर
उस समय रॉबिंसन को ऐसा आनंद हुआ मानो उसने नए सिरे से फिर से आदमी का चोला पाया।
इससे सिद्ध होता है कि मनुष्य की वाक्शक्ति में कहाँ तक लुभा लेने की ताकत है।
जिनसे केवल 'पत्र-व्यवहार' है, कभी एक
बार भी साक्षात्कार नहीं हुआ, उन्हें
अपने प्रेमी से बातें करने की कितनी लालसा रहती है। अपना आभ्यंतरिक भाव दूसरे पर
प्रकट करना और उसका आशय आप ग्रहण कर लेना शब्दों के ही द्वारा हो सकता है। सच है, जब तक मनुष्य बोलता नहीं तब तक उसका गुण-दोष प्रकट नहीं
होता । बेन जानसन का यह कहना कि बोलने से ही मनुष्य के रूप का साक्षात्कार होता है, बहुत ही उचित जान पड़ता है।
इस
बातचीत की सीमा दो से लेकर वहाँ तक रखी जा सकती है, जहाँ तक उनकी जमात मीटिंग या सभा ने समझ ली जाए। एडीसन का
मत है कि असल बातचीत सिर्फ दो व्यक्तियों में हो सकती है, जिसका तात्पर्य यह हुआ कि जब दो आदमी होते हैं तभी अपना दिल
एक दूसरे के सामने खोलते हैं । जब तीन हुए तब वह दो की बात कोसों दूर गई। कहा भी
है कि छह कानों में पड़ी बात खुल जाती है। दूसरे यह कि किसी तीसरे आदमी के आ जाते
ही या तो वे दोनों अपनी बातचीत से निरस्त हो बैठेंगे या उसे निपट मूर्ख अज्ञानी
समझ बनाने लगेंगे ।
जैसे
गरम दूध और ठंढे पानी के दो बर्तन पास-पास साट के रखे जाएँ तो एक का असर दूसरे में
पहुँच जाता है, अर्थात दूध ठंढा हो
जाता है और पानी गरम, वैसे ही
दो आदमी पास बैठे हों तो एक का गुप्त असर दूसरे पर पहुँच जाता है, चाहे एक दूसरे को देखें भी नहीं, तब बोलने को कौन कहे, एक के शरीर की विद्युत दूसरे में प्रवेश करने लगती है। जब
पास बैठने का इतना असर होता है तब बातचीत में कितना अधिक अंसर होगा, इसे कौन न स्वीकार करेगा। अस्तु, अब इस बात को तीन आदमियों के साथ देखना चाहिए । मानो एक
त्रिकोण सा बन जाता है। तीनों चित्त मानो तीन कोण हैं और तीनों की मनोवृत्ति के
प्रसरण की धारा मानो उस त्रिकोण की तीन रेखाएँ हैं। गुप-चुप असर तो उन तीनों में
परस्पर होता ही है। जो बातचीत तीन में की गई, वह मानो अँगूठी में नग सी जड़ जाती है। उपरांत जब चार आदमी
हुए तब बेतकल्लुफी को बिलकुल स्थान नहीं रहता। खुल के बातें न होंगी। जो कुछ
बातचीत की जाएगी वह 'फॉर्मेलिटी' गौरव और संजीदगी के लच्छे में सनी हुई होगी। चार से अधिक की
बातचीत तो केवल राम-रमौवल कहलाएगी। उसे हम संलाप नहीं कह सकते। इस बातचीत के अनेक
भेद हैं। दो बुड्ढों की बातचीत प्रायः जमाने की शिकायत पर हुआ करती है। वे बाबा
आदम के समय की ऐसी दास्तान शुरू करते हैं; जिसमें चार सच तो दस झूठ । एक बार उनकी बातचीत का घोड़ा छूट
जाना चाहिए, पहरों बीत जाने पर भी
अंत न होगा। प्रायः अंग्रेजी राज्य, परदेश और पुराने समय की रीति-नीति का अनुमोदन और इस समय के
सब भाँति लायक नौजवानों की निंदा उनकी बातचीत का मुख्य प्रकरण होगा ! पढ़े-लिखे
हुए के लिए तो शेक्सपियर, मिल्टन, मिल और स्पेंसर जीभ पर नाचा करेंगे। अपनी लियाकत के नशे में
चूर 'हमचुनी दीगरे नेस्त' अक्खड़पन की चर्चा छेड़ेंगे। दो हम सहेलियों की बातचीत का
कुछ जायका ही निराला है। रस का समुद्र मानो उमड़ा चला आ रहा है। इसका पूरा स्वाद
उन्हीं से पूछना चाहिए जिन्हें ऐसों की रस सनी बात सुनने को कभी भाग्य लड़ा है।
दो
बुढ़ियों की बातचीत का मुख्य प्रकरण, बहू-बेटी वाली हुईं तो, अपनी बहुओं या बेटों का गिला शिकवा होगा । या वे बिरादराने
का कोई ऐसा रमरसरा छेड़ बैठेंगी कि बात करते-करते अंत में खोढ़े दाँत निकाल लड़ने
लगेंगी । लड़कों की बातचीत, खिलाड़ी
हुए तो,
अपनी-अपनी तारीफ करने के बाद वे कोई सलाह गाँठेंगे जिससे
उनको अपनी शैतानी जाहिर करने का पूरा मौका मिले। स्कूल के लड़कों की बातचीत का
उद्देश्य अपने उस्ताद की शिकायत या तारीफ या अपने सहपाठियों में किसी के गुन-औगुन
का कथोपकथन होता है। पढ़ने में कोई लड़का तेज हुआ तो कभी अपने सामने दूसरे को कुछ
न गिनेगा 1 सुस्त और बोदा हुआ तो दबी बिल्ली का सा स्कूल भर को अपना गुरु ही
मानेगा। इसके अलावा बातचीत की और बहुत सी किस्में हैं। राजकाज की बात, व्यापार संबंधी बातचीत, दो मित्रों में प्रेमालाप इत्यादि । हमारे देश में अशिक्षित
लोगों में बतकही होती है। लड़की लड़केवालों की ओर से एक-एक आदमी बिचवई होकर दोनों
में विवाह संबंध की कुछ बातचीत करते हैं। उस दिन से बिरादरीवालों को जाहिर कर दिया
जाता है कि अमुक की लड़की का अमुक के लड़के के साथ विवाह पक्का हो गया और यह रसम
बड़े उत्सव के साथ की जाती है। चंडूखाने की बातचीत भी निराली होती है। निदान, बात करने के अनेक प्रकार और ढंग हैं।
योरप
के लोगों में बात करने का हुनर है। 'आर्ट ऑफ कनवरसेशन' यहाँ तक बढ़ा है कि स्पीच और लेख दोनों इसे नहीं पाते। इसकी
पूर्ण शोभा काव्यकला प्रवीण विद्वन्मंडली में है। ऐसे चतुराई के प्रसंग छेड़े जाते
हैं कि जिन्हें सुन कान को अत्यंत सुख मिलता है। सुहृद गोष्ठी इसी का नाम है।
सुहृद गोष्ठी की बातचीत की यह तारीफ है कि बात करनेवालों की लियाकत अथवा पंडिताई
का अभिमान या कपट कहीं एक बात में भी प्रकट न हो, वरन् क्रम में रसाभास पैदा करनेवाले शब्दों को बरकते हुए
चतुर सयाने अपनी बातचीत को सरस रखते हैं। वह रस हमारे आधुनिक शुष्क पंडित की
बातचीत में, जिसे शास्त्रार्थ
कहते हैं,
कभी आवेगा ही नहीं। मुर्ग और बटेर की लड़ाइयों की झपटा-झपटी
के समाज उनकी नीरस काँव-काँव में सरस संलाप की चर्चा ही चलाना व्यर्थ है, वरन् कपट और एक दूसरे को अपने पांडित्य के प्रकाश से बाद
में परास्त करने का संघर्ष आदि रसाभास की सामग्री वहाँ बहुतायत के साथ आपको मिलेगी
। घंटे भर तक काँव-काँव करते रहेंगे तो कुछ न होगा। बड़ी-बड़ी कंपनी और कारखाने
आदि बड़े से बड़े काम इसी तरह पहले दो-चार दिली दोस्तों की बातचीत से शुरू किए गए।
उपरांत बढ़ते-बढ़ते यहाँ तक बढ़े कि हजारों मनुष्यों की उनसे जीविका चलने लगी और
साल में लाखों की आमदनी होने लगी । पच्चीस वर्ष के ऊपरवालों की बातचीत अवश्य ही
कुछ न कुछ सारगर्भित होती होगी, अनुभव
और दूरंदेशी से खाली न होगी और पच्चीस से नीचे की बातचीत में यद्यपि अनुभव, दूरदर्शिता और. गौरव नहीं पाया जाता, पर इसमें एक प्रकार का ऐसा दिलबहलाव और ताजगी रहती है जिसकी
मिठास उससे दस गुनी चढ़ी-बढ़ी है।
यहाँ
तक हमने बाहरी बातचीत का हाल लिखा है जिसमें दूसरे फरीक के होने की बहुत आवश्यकता
है,
बिना किसी दूसरे मनुष्य के हुए जो किसी तरह संभव नहीं है और
जो दो ही तरहे पर हो सकता है-या तो कोई हमारे यहाँ कृपा करे या हमीं जाकर दूसरे को
कृतार्थ करें। पर यह सब तो दुनियादारी है जिसमें कभी-कभी रसाभास होते देर नहीं
लगती। क्योंकि जो महाशय अपने यहाँ पधारें उनकी पूरी दिलजोई न हो सकती तो शिष्टाचार
में त्रुटि हुई। अगर हमीं उनके यहाँ गए तो पहले तो बिना बुलाए जाना ही अनादर का
मूल है और जाने पर अपने मन माफिक बर्ताव न किया गया तो मानो दूसरे प्रकार का नया
घाव हुआ। इसलिए सबसे उत्तम प्रकार बातचीत करने का हम यही समझते हैं कि हम वह शक्ति
अपने में पैदा कर सकें कि अपने आप बात कर लिया करें। हमारी भीतरी मनोवृत्ति
प्रतिक्षण नए-नए रंग दिखाया करती है, वह प्रपंचात्मक संसार का एक बड़ा भारी आईना है, जिसमें जैसी चाहो वैसी सूरत देख लेना कुछ दुर्घट बात नहीं
है और जी एक ऐसा चमनिस्तान है जिसमें हर किस्म के बेल-बूटे खिले हुए हैं, ऐसे चमनिस्तान की सर में क्या कम दिलबहलाव है ? मित्रों का प्रेमालाप कभी इसकी सोलहवीं कला तक भी न पहुँच
सका। इसी सैर का नाम ध्यान या मनोयोग या चित्त को एकाग्र करना है जिसका साधन एक-दो
दिन का काम नहीं। बरसों के अभ्यास के उपरांत यदि हम थोड़ी भी अपनी मनोवृत्ति स्थिर
कर अवाक् हो अपने मन के साथ बातचीत कर सकें तो मानो अहोभाग्य । एक वाक्राफ्ति
मात्र के दमन से न जाने कितने प्रकार का दमन हो गया । हमारी जिह्वा कतरनी के समान
सदा स्वच्छंद चला करती है, उसे यदि
हमने काबू में कर लिया तो क्रोधादिक बड़े-बड़े अजेय शत्रुओं को बिना प्रयास जीत
अपने वश में कर डाला। इसलिए अवाक् रह अपने बातचीत करने का यह साधन यावत् साधनों का
मूल है,
शक्ति परम पूज्य मंदिर है, परमार्थ का एकमात्र सोपान है।
शब्द निधि
वक्तृता : बोलने की कला, भाषण देने की कला
पुलपिट : पायदान
पुण्याहवाचन : धार्मिक कर्मकांड में मांगलिक श्लोक पढ़ना
नांदीपाठ : नाटक के प्रारंभ में मंगल पाठ
खामख्वाह : बेमतलब, बर्बस=
संलाप : हार्दिक बातचीत
संजीदगी : गंभीरता
बेकदर : सम्मानहीन
आभ्यंतरिक : हार्दिक, आंतरिक
लियाकत : योग्यता
फॉर्मेलिटी : औपचारिकता
निरस्त : बंद कर देना, स्थगित कर देना
हमचुनी
दीगरे नेस्त: हम ही सब कुछ हैं दूसरा
कुछ भी नहीं, एकोहं द्वितीयो नास्ति
बिचवई : मध्यस्थता
चंडूखाने : अफीम खानेवाले लोगों की मंडली के लिए सुरक्षित
स्थान
दिलजोई : मनबहलाव
सारगर्भित : जिसमें कुछ सार
या तत्त्व हो
प्रपंचात्मक : उलझा हुआ, पहेलीनुमा
दुर्घट : ऐसा कुछ जिसके
घटित होने की आशा न हो
चमनिस्तान : हरे-भरे बागों
का इलाका
कतरनी : कैंची
सोपान : सीढ़ी
बरकते हुए : बरतते हुए
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